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खेत बचे ही कहां…

राजेश पिछले कई सालों से कॉलेज व सरकारी नौकरी की परीक्षाओं की तैयारी के लिए घर से दूर दूसरे राज्य में रह रहा था। आठ साल बाद वह अपने घर लौटा। राजेश का रिहायशी इलाका पहले गांव हुआ करता था, गांव तो आज भी है, लेकिन पहले और अब के गांव में काफी बदलाव हो चुका है। पहले जहां लोग कच्चे घरों में रहा करते थे, वहां अब ईटों की इमारतें खड़ी हैं। वैसे राजेश जिस शहर में रह रहा था, उसे ऐसी परिस्थिति की आदत सी पड़ गई थी, इसलिए उसे गांव का यह परिवर्तन ज्यादा नहीं अखरता। हां उसे अगर किसी चीज से दिक्कत होती है, तो वह है धीरे-धीरे लालडोरे से बाहर की जमीन (खेती की जमीन) का खत्म होना और उसकी जगह असंख्य अनधिकृत कॉलोनियों का ले लेना है। लालडोरा अंग्रेजों के जमाने में गांव के रिहायशी इलाके से चारों ओर खिंची जाने वाली एक लाल रेखा के रूप में होता था। नियमों के मुताबिक ग्रामीण अपना मकान या घर, लालडोरे के अंदर ही बना सकते हैं। उसके बाहर सिर्फ खेती की जमीन ही होगी। अगर कोई व्यक्ति लालडोरे के बाहर कोई निर्माण कार्य या आवासीय कार्य करता है तो वह गैरकानूनी होगा और उस व्यक्ति को सजा भी हो सकती है।

राजेश का एक बचपन का दोस्त है, आलोक। वह उसी के साथ रोजाना गांव का भ्रमण करता और धड़ल्ले से गायब होते इन खेतों के बारे में भी आलोक से बातचीत करता है। आलोक ने राजेश को सब कुछ बताया कि किस तरह से जमींदारों व जिनके पास खेती की जमीन काफी तादाद में है। वे लोग अधिक धनी होने के लिए प्रशासन को अपने साथ मिलाकर अपने खेतों की प्लॉटिंग कर उसे अनधिकृत कॉलोनियों में तब्दील कर रहे हैं। गांव के लोगों ने मिलकर इसका विरोध भी करना चाहा, लेकिन उनके विरोध करने से होता भी क्या। प्रशासन जमींदारों की जेब में था और जो वह चाहे वहीं होता। यहां तक की प्लॉटिंग करते वक्त पुलिस की गाड़ियां तक वहां मौजूद रहती है, तो ऐसे में इन लोगों को कौन इन सब कार्यों से रोक सकता है। साथ ही आलोक उसे यह भी बताता है कि ऐसा सिर्फ उन्हीं के गांव में नहीं हो रहा, बल्कि यह तो आसपास के व दूरदराज के गांव में भी हो रहा है।

राजेश के पिता भी किसान है और उनकी भी काफी जमीने गांव के रिहायशी इलाके से बाहर है। जिसमें वह हर साल खेती भी करते हैं। राजेश ने अपना स्नातक भूगोल ऑनर्स से ही किया है, इसीलिए वह पर्यावरण से छेड़छाड़ के नतीजे भी जानता है। तभी उसे खेतों का कम होना और वहां धड़ल्ले से कॉलोनियां बसना व फैक्ट्रियों का खुलना बिलकुल भी रास न आता है, लेकिन वह करे भी तो क्या। ज्यादा धनी बनने के नशे ने आज लोगों द्वारा यह परिस्थिति खड़ी कर दी है कि वे न तो खुद खुलकर स्वच्छ हवा ले पा रहे हैं और न ही आने वाली पीढ़ी को लेने देंगे। हालांकि कितनी जगहों पर जनता के जागरूक होने के कारण ऐसे गैरकानूनी तरीके से होने वाले प्लॉटिंग को लेकर प्रशासन से विरोध करने पर ऐसे मामलों में शिकंजा भी कसा गया है, जिसमें उन लोगों की जमा पूंजी बर्बाद हो जाती है, जो अपने घर का सपना पूरा करने के लिए ऐसी जगहों पर प्लॉट खरीद लेते हैं पर स्थानीय लोगों के विरोध करने पर प्रशासन द्वारा वहां शिकंजा कस दिया जाता है।

राजेश रोजाना की तरह आलोक के साथ गांव के चारों ओर खेत – खलिहानों व बागों में घूमते हुए ढेरों बाते करते रहते हैं। राजेश शहरों की आधुनिकता के बारे में आलोक को एक से बढ़कर एक बाते बताता है। इन सब बातों पर आलोक राजेश से कहता है कि दोस्त शहर कितना भी आधुनिक हो जाए व कई गुना रफ्तार से विकास करे, लेकिन दोस्त गांव, गांव ही होता है। जहां शुद्ध वातावरण, खेत – खलिहान, बाग, नहर आदि आगे की बात कहते– कहते उन दोनों ने देखा कि चौधरी राम सिंह का खेत जो अनधिकृत कॉलोनी से लगा हुआ है उस पर चौधरी बुलडोजर चलवाकर उसे समतल करवा रहा है, जिससे कि वह इस जमीन का प्लॉटिंग करवा सके और इतने में राजेश बोल पड़ता है कि खेत…. खेत बचे ही कहां……।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

संजय बर्मन
अभी लेखक के रूप में स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे हैं। इसके पहले वह प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में सेवाएं दे चुके हैं।

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