SUBSCRIBE
FOLLOW US
  • YouTube
Loading

साक्षरता दिवस- अखरने वाली है अक्षर से दूरी

भारत में छत्तीसगढ़ राज्य की एक लोकविधा है पांडवानी। यह लोकगायकी की एक शैली है, जिसे शाब्दिक अर्थ में पांडवों की कहानी कहते हैं। इस विधा को देश-विदेश में मशहूर बनाने वाली लोक गायिका हैं तीजनबाई। बेबाक अंदाज और आत्मविश्वास के साथ तीजनबाई जब गायकी करती थीं, महाभारत की कहानी आंखों के आगे उतर आती थी। कई सम्मान और पुरस्कारों से नवाजी जाने वाली तीजन को भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। विदेश में कहीं उनकी प्रस्तुति से विभोर होकर एक प्रशंसक ने जब उनका ऑटोग्राफ मांगा तो तीजनबाई ने अंगूठा आगे कर दिया। यह एक तरीके से गौरव की बात तो है कि बिना किसी स्कूली शिक्षा के अभावयुक्त तीजनबाई ने देश-विदेश में भारत का नाम ऊंचा किया, लेकिन यह भी एक स्याह पक्ष है कि देश में एक बड़ी जनसंख्या ऐसी है जो आज भी साक्षर नहीं है।

साक्षरता की दर में इसी कमी को देखते हुए साल 1966 में यूनेस्को ने शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने और दुनियाभर के लोगों का ध्‍यान इस तरफ आकर्षित करने के लिए हर साल 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस मनाने का निर्णय लिया था। मानव विकास और समाज के लिए उनके अधिकारों को जानने और साक्षरता की ओर मानव चेतना को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है। सफलता और जीने के लिए साक्षरता बेहद महत्वपूर्ण है।

अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाने को लेकर पहली बार साल 1965 में 8 से 19 सितंबर के बीच ईरान के तेहरान में शिक्षा के मंत्रियों के विश्व सम्मेलन के दौरान चर्चा की गई थी। इसके बाद 26 अक्टूबर, 1966 को यूनेस्को ने 14वें जनरल कॉन्फ्रेंस में घोषणा करते हुए कहा कि हर साल दुनियाभर में 8 सितंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।

भारत भले ही विकसित देशों की सूची में बहुत पीछे है लेकिन विकासशील देशों की लिस्ट में उसकी स्थिति बेहतर है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में जहां 79 फीसदी पुरुष 61 फीसदी महिला और 71 फीसदी युवा साक्षर हैं, वहीं भारत में पुरुष 88 फीसदी, महिला 74 फीसदी और युवा पीढ़ी के साक्षर होने का प्रतिशत 81 है। बात नेपाल की करें तो यह मुल्क भारत से बराबरी जरूर कर रहा है। यहां पुरुष 88 फीसदी,महिलाएं 78 और युवा पीढ़ी 83 फीसदी साक्षर है।

साक्षरता का मतलब केवल सिर्फ पढ़ने-लिखने या शिक्षित होने से ही नहीं है। यह लोगों के अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता लाकर सामाजिक विकास का आधार बन सकती है। संयुक्त राष्ट्र के एक आंकड़े के मुताबिक, दुनियाभर में चार अरब लोग साक्षर हैं और आज भी 1 अरब लोग पढ़-लिख नहीं सकते हैं।

2018 में जारी एमएचआरडी की शैक्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की साक्षरता दर 69.1% है। यह नंबर गांव और शहर दोनों को मिलाकर है। ग्रामीण भारत में साक्षरता दर 64.7 फीसद  है जिसमें महिलाओं की साक्षरता दर 56.8 फीसद तो पुरुषों का 72.3 फीसद है। बात करें शहरी भारत की तो इसमें साक्षरता दर 79.5 फीसद है जिसमें 74.8 फीसद महिलाएं पढ़ी-लिखी हैं। वहीं, 83.7 फीसद पुरुष पढ़े-लिखे हैं। भारत में साक्षरता दर कम होने के पीछे कई कारण हैं। इनमें विद्यालयों की कमी, स्कूल में शौचालय आदि का ना होना, जातिवाद, गरीबी, लड़कियों से छेड़छाड़ होने का डर, जागरूकता की कमी जैसी कई चीजें शामिल हैं।

वर्ष 2011 में हुई जनगणना के आकड़ों पर हम नजर डालें तो हमारी पुरुष साक्षरता 80 फीसद तक आती है। 2001 से 2011 के मध्य 10 वर्षों की अवधि के दौरान मात्र 4 फीसदी ही महिलाएँ साक्षर हो पाई हैं। जहाँ 2001 की जनगणना में महिलाओं की साक्षरता दर 60 फीसदी के आस-पास थी वह अब तक 64 फीसदी तक ही बढ़ पाई हैं। बिहार, उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में महिला शिक्षा का स्तर बेहद न्यून हैं जो चिंता का विषय है।

दरअसल, शिक्षा को लेकर हमारे पिछड़ेपन की वजह सरकारी नीतियों के साथ सामाजिक जागरूकता की कमी भी है। शिक्षा नीति का ठीक होना न होना एक अलग विषय है, हालांकि यह भी एक जरूरी मुद्दा है जिस पर बात की जा सकती है। लेकिन साक्षरता की दर में कमी का यह मुख्य विषय बिल्कुल भी नहीं है। आज भी गरीब तबके व्यक्ति अपनी संतानों को कमाने वाले हाथ के तौर पर ही देखता है। उनकी निम्न स्तरीय आय रोज की जरूरत भी पूरी करने में सक्षम नहीं होती है। इससे निबटने के लिहाज से भारत सरकार ने मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत की, लेकिन धांधली और भ्रष्ट तंत्र के कारण यह योजना अक्सर डांवाडोल की स्थिति में रहती है। दूसरा यह कि कई योजनाओं के बाद भी हम अभी तक लोगों को शिक्षा के लिए जागरूक ही नहीं कर सके हैं। साक्षरता की परिभाषा में इतना ही शामिल है कि व्यक्ति को अक्षर ज्ञान हो, अंक ज्ञान हो, वह अपना नाम लिख सके और अधिकारों पर नजर रख सके। स्कूल चलो अभियान ने भले ही इस दर में तेजी से वृद्धि की है, लेकिन देशभर के आंकड़े के लिहाज से वह थोड़ा ही है। यूनेस्को के अनुसार भारत पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा अनपढ़ों का मुल्क है। NSSO की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक देश के शहरी क्षेत्रों में साक्षरता दर जहां 86 फीसदी थी वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 71 फीसदी तक ही सीमित रहा। अगर हमारी साक्षरता में विकास इसी दर से रहा तो हमें वैश्विक लक्ष्य को पाने में कम से कम 45 साल लगेंगे। वर्ष 2011 में संपन्न हुई जनगणना के मुताबिक देश में साक्षरता 9.2 फीसदी की दर से बढ़ी है। यूनेस्को के अनुसार दुनिया भर में करीब 78 करोड़ लोग अशिक्षित हैं। इन 78 करोड़ लोगों का 75 फीसदी केवल इन 10 देशों में है जिनमें भारत, चीन, बांग्लादेश, नाइजीरिया, पाकिस्तान, इथियोपिया, ब्राजील, इंडोनेशिया और कांगो शामिल है। हालांकि इन 10 मुल्कों में से कुछ ऐसे भी हैं जिनकी साक्षरता दर बीते कुछ सालों में तेजी से बढ़ी है। इसमें नेपाल, इथोपिया और बांग्लादेश शामिल है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

विकास पोरवाल
पत्रकार और लेखक

Be the first to comment on "साक्षरता दिवस- अखरने वाली है अक्षर से दूरी"

Leave a comment

Your email address will not be published.


*