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प्रेम की प्रतीक्षा में, किस तरह उठते हैं प्रार्थना के स्वर

आज हम साहित्य जगत से कुंदन सिद्धार्थ और उनकी कविताओं से रूबरू करा रहे हैं।

बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के कवि कुंदन सिद्धार्थ की कविताओं में जीवन की सहज अनुभूतियों का समावेश है ।

यहाँ प्रस्तुत है उनसे राजीव कुमार झा की बातचीत, लेकिन उससे पहले उनकी ये रचनाएं भी पढ़ लीजिये-

          पृथ्वी

कुंदन सिद्धार्थ

चिड़िया उदास होती है

तो पृथ्वी के माथे पर पड़ती हैं लकीरें

 

एक पेड़ मरता है

तो सबसे ज्यादा चिंतित होती है

पृथ्वी

 

जब स्त्री रोती है

उस रात

पृथ्वी को नींद नहीं आती

 

     उन्हीं दिनों जाना

 

प्रार्थना के दिन थे

क्योंकि प्रतीक्षा के दिन थे

 

प्रतीक्षा के दिन थे

क्योंकि प्रेम के दिन थे

 

प्रेम की प्रतीक्षा में

किस तरह उठते हैं प्रार्थना के स्वर

उन्हीं दिनों जाना

 

कविता लेखन में अपनी अनुभूतियों के बारे में बताएं।

अपने आसपास का जीव-जगत, जिसमें मनुष्य के साथ पशु-पक्षी, कीट-पतंग, दूब और पेड़-पौधे, खेत, नदियाँ, पहाड़ सभी जड़-चेतन तत्व हैं, मेरी कविताएँ के लिए उत्प्रेरक का काम करते हैं। इस पूरी प्रकृति का एक अंश होने के नाते इनसे मैं एक गहरा जुड़ाव व आत्मीयता महसूस करता हूँ। इनके सुख-दुख, इनकी हँसी, इनकी व्यथा, इनकी चिंताएं, सभी मुझे छूते हैं, प्रभावित करते हैं। अपनी कविताओं के माध्यम से मैं समग्रतः इन्हीं की बात करता हूँ।

कविता लेखन में व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन की अनुभूतियों का क्या अर्थ और महत्व है?

व्यक्ति वस्तुतः समाज की एक इकाई है, इसलिए हमारे आसपास समाज में जो कुछ घटित होता है, वह निश्चित रूप से एक संवेदनशील व्यक्ति होने के नाते कवि के रूप में मुझे प्रभावित करता है। मेरे लिए कविता एकांत-आलाप नहीं है, और न ही मनोरंजन का साधन। समाज प्रेम से भरा रहे, सुखी रहे, समृद्ध रहे; और सबसे बढ़कर जाति, वर्ग, संप्रदाय आदि भेदों से मुक्त आपसी सौमनस्यता में जिये, तभी व्यक्ति भी सुखी, समृद्ध, आनंदित रहेगा। मेरी कविताएं एक सुंदर, सुखी व प्रेम से भरा समाज बनाने का आग्रह करती हैं।

कविता लेखन की ओर आपका झुकाव कैसे कायम हुआ?

मेरी कोई साहित्यिक पृष्ठभूमि नहीं है। घर-परिवार, सगे-संबंधियों में कोई ऐसा नहीं था, जहां से मुझे प्रेरणा मिली हो। हाईस्कूल के दिनों में हिंदी की पाठ्यपुस्तकों में उपलब्ध कवियों को पढ़कर मेरे भीतर के कवि को संजीवनी मिलती रही होगी, ऐसा लगता है। हाँ, मैं भावुक रहा हूँ, लोगों के सुख-दुख मुझे छूते थे, प्रेम मेरे भीतर खिल रहा था, विकसित हो रहा था। इन्हीं भावों को शब्दों में पिरोना शुरू किया, और कविताएँ बनने लगीं। कॉलेज के दिनों में जब समकालीन कवियों को पढ़ने लगा, तो मुझे अपना रास्ता साफ हो गया, भीतर के कवि को अब अपनी अभिव्यक्ति की दिशा मिल गयी थी।

अपने प्रिय कवियों के बारे में बताएं।

कबीर पहले कवि हैं, जिन्होंने मुझे गहरे प्रभावित किया। निराला, नागार्जुन ने हृदय को छुआ। समकालीन कवियों में अज्ञेय, शमशेर, मुक्तिबोध से लेकर कुँवर नारायण, लीलाधर जगूड़ी, नरेश सक्सेना, अशोक वाजपेयी, भगवत रावत, आलोक धन्वा, ज्ञानेन्द्रपति, स्वप्निल श्रीवास्तव, लीलाधर मंडलोई, जीतेंद्र श्रीवास्तव, बोधिसत्व आदि मेरे प्रिय कवि रहे हैं। गहरे जीवन-बोध, भावों की गहराई, विचारों के विस्तार और सहज, सुंदर शिल्प के कारण इनकी कविताएँ मुझे सदैव प्रेरणा देती रही हैं।

कविता को अन्य विधाओं से कैसे पृथक् महसूस करते हैं?

कविता भावों व विचारों की सहज, सुगम व त्वरित अभिव्यक्ति है। अन्य विधाएं कथा, उपन्यास आदि विस्तृत फलक को लेकर चलती हैं जिसके लिए पर्याप्त समय और धैर्य के साथ-साथ घटनाक्रमों की बुनावट के लिए अधिक मानसिक ऊर्जा की अपेक्षा रहती है। कविता कम शब्दों में, छोटे फलक पर बहुत कुछ कह जाती है।

अपने जनपद चंपारण से जुड़ी स्मृतियों के बारे में बताएं।

चंपारण हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों की तराई में स्थित होने के कारण छोटी-छोटी नदियों से भरा हुआ है। ये नदियाँ इस जनपद को हरा-भरा रखने के साथ ही यहाँ की मिट्टी को उपजाऊ बनाये हुए हैं। गांव में बिताये मेरे बचपन की स्मृतियों में धान, गेहूँ और गन्ने से पटी हरी-भरी धरती के चित्र बसे हुए हैं। आज भी नदियों के प्रति मेरा गहरा अनुराग है। मैंने यहाँ बाढ़ की विनाशलीला भी देखी है और गरीबी को बड़े नजदीक से महसूस किया है। कुल मिलाकर, मेरे जनपद ने मुझे भावनात्मक स्तर पर समृद्ध किया है।

जबलपुर और इसके आसपास के इलाके के बारे में बताएं।

जबलपुर गोंडवाना काल की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ एक सुंदर, आकर्षक शहर है। मैं यहां 2009 के दशहरे में आया। यहाँ के निवासियों में पेड़-पौधों के प्रति सहज लगाव और रख-रखाव मुझे भाता है। नर्मदा के तट पर बसा यह शहर अपनी स्वच्छता, सुव्यवस्थित सड़कें और विधिवत योजना के अनुसार बसी हुई कालोनियों के कारण मन को मोहता है। भेड़ाघाट की संगमरमरी चट्टानें, धुंआधार जलप्रपात, चौसठ योगिनी मंदिर यहाँ की दर्शनीय स्थल हैं। मैहर जो निकटवर्ती छोटा शहर है, माँ शारदा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। पचमढ़ी सतपुड़ा की पहाड़ियों में स्थित सुप्रसिद्ध हिल स्टेशन है, जो जबलपुर से ज्यादा दूर नहीं है।

मध्यप्रदेश में नौकरी करते कैसा महसूस करते हैं?

मध्यप्रदेश हिंदी भाषी राज्य है, और बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश का पड़ोसी होने के कारण भोजन और रहन-सहन के मामले में बहुत अलग नहीं है। सुव्यवस्थित शहर, नगरनिगम की सुदक्ष कार्यशैली और आवश्यक संसाधनों की सहज उपलब्धता के कारण मैं अपेक्षाकृत ज्यादा अच्छा और खुशहाल महसूस करता हूँ। जबलपुर शहर एक कॉस्मोपॉलिटन शहर है, इसलिए यहां की विविधता मुझे और परिवार को बहुत कुछ सीखने, समझने और जीने के अवसर देती है।

आप भोजपुरी भाषी हैं। इस भाषा के माध्यम से अपनी लोक-संस्कृति से कैसा जुड़ाव महसूस करते हैं?

भोजपुरी भाषा निश्चित रूप से एक अत्यंत समृद्ध भाषा है। भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिए इस भाषा में इतने शब्द हैं कि आश्चर्य होता है। अपनी लोक-संस्कृति के गहरा जुड़ाव बना हुआ है, और जब भी अपने गाँव और शहर जाता हूं, तो मेरी भरसक कोशिश होती है कि भोजपुरी में बोलूं। शादी-ब्याह में गाये जाने गीत हों, या पर्व-त्यौहारों में गाये जाने वाले गीत, सभी हृदय को छूते हैं। कुछ लोक-संस्कृति के तत्व समय के प्रवाह में नष्ट हो रहे हैं, जिसे बचाने की जरूरत है। भोजपुरी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में भी बहुत सकारात्मक काम करने की जरूरत है, ताकि अपसंस्कृति से बचा जा सके।

परिचय- एक नजर

नाम: कुंदन सिद्धार्थ

जन्मतिथि: 25 फरवरी, 1972

जन्म स्थान: बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के एक गांव हरपुर में

साहित्यिक कृतित्व: ‘अक्षरा’, ‘आवर्त’, ‘समकालीन परिभाषा’, ‘वागर्थ’, ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ में कविताएं प्रकाशित, ‘हंस’, ‘धर्मयुग’ ‘संडे ऑब्जर्वर’ में आलेख प्रकाशित, मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के मंचों पर काव्य-पाठ, गणेश गनी के संपादन में संयुक्त कविता-संकलन ‘यह समय है लौटाने का’ प्रकाशित, पहला काव्य-संग्रह शीघ्र प्रकाश्य

सम्प्रति: आजीविका हेतु पश्चिम मध्य रेल, जबलपुर के लेखा विभाग, मुख्यालय में कार्यरत

वर्तमान पता: आई सी 16, सैनिक सोसाइटी, शक्तिनगर, जबलपुर, मध्यप्रदेश 482001

मोबाइल नंबर: 7024218568, 9009309363

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

राजीव कुमार झा
शिक्षक व लेखक

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