साल था 1914। पटना के एक मैदान में काफी भीड़ जमा थी। सबसे अधिक संख्या नौजवानों और कॉलेज में पढ़ने वाले लड़कों की थी। जलियांवाला बाग हत्याकांड से देश झुब्ध था। हर तरफ गम और गुस्से की लहर थी। मंच से एक वक्ता इसी के मद्देनजर सभी नौजवानों से आजादी के आंदोलन में कूद पड़ने की अपील कर रहा था। उन्होंने कहा-नौजवानों अंग्रेज़ी (शिक्षा) का त्याग करो और मैदान में आकर ब्रिटिश हुक़ूमत की ढहती दीवारों को धराशायी करो और ऐसे हिन्दुस्तान का निर्माण करो, जो सारे आलम में ख़ुशबू पैदा करे। यह आवाज सुन वहां मौजूद एक लड़के की भुजाएं फड़क उठी, सीने में चिंगारी सी जलने लगी और मस्तिष्क में कौंधने लगा बस एक ही विचार – आजादी। यह युवा थे जय प्रकाश नारायण जो बाद में लोकनायक कहलाए और वह वक्ता थे मौलाना अबुल कलाम आजाद। आज देश लोकनायक की जयंती मना रहा है।
जयप्रकाश का जन्म 11 अक्तूबर, 1902 ई. में सिताबदियारा बिहार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री ‘देवकी बाबू’ और माता का नाम ‘फूलरानी देवी’ थीं। इन्हें चार वर्ष तक दाँत नहीं आया, जिससे इनकी माताजी इन्हें ‘बऊल जी’ कहती थीं। इन्होंने जब बोलना आरम्भ किया तो वाणी में ओज झलकने लगा। 1920 में जयप्रकाश का विवाह ‘प्रभा’ नामक लड़की से हुआ। प्रभावती स्वभाव से अत्यन्त मृदुल थीं। गांधी जी का उनके प्रति अपार स्नेह था। प्रभा से शादी होने के समय और शादी के बाद में भी गांधी जी से उनके पिता का सम्बन्ध था, क्योंकि प्रभावती के पिता श्री ‘ब्रजकिशोर बापू’ चम्पारन में जहाँ गांधी जी ठहरे थे, प्रभा को साथ लेकर गये थे। प्रभा विभिन्न राष्ट्रीय उत्सवों और कार्यक्रमों में भाग लेती थीं। जयप्रकाश नारायण एक निष्ठावान राष्ट्रवादी थे और सिर्फ़ खादी पहनते थे। जयप्रकाश ने रॉलेट एक्ट जलियाँवाला बाग़ नरसंहार के विरोध में ब्रिटिश शैली के स्कूलों को छोड़कर बिहार विद्यापीठ से अपनी उच्चशिक्षा पूरी की, जिसे युवा प्रतिभाशाली युवाओं को प्रेरित करने के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और सुप्रसिद्ध गांधीवादी डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा, जो गांधी जी के एक निकट सहयोगी रहे द्वारा स्थापित किया गया था।। जयप्रकाश जी ने एम. ए. समाजशास्त्र से किया। जयप्रकाश ने अमेरिकी विश्वविद्यालय से आठ वर्ष तक अध्ययन किया और वहाँ वह मार्क्सवादी दर्शन से गहरे प्रभावित हुए।
जेपी के जीवन में भारत की आजादी के आंदोलन के तो किस्से हैं, लेकिन उन्हें मशहूर किया 1975 के दौर ने। यह आपातकाल का समय था और जयप्रकाश तब की इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ खुल कर खड़े थे। उन्होंने इंदिरा गांधी की नीतियों के विरोध में ऐसा आंदोलन खड़ा किया, जिससे देश की राजनीति ही बदल गई थी। जेपी के इस आंदोलन में आरएसएस के लोग भी बकायदा शामिल थे, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब जेपी ने इंदिरा गांधी को खत लिखा था। यह पत्र कश्मीर मुद्दे पर लिखा गया था, जिसमें उन्होंने इंदिरा गांधी से शेख अब्दुलाह की रिहाई के संबंध में कश्मीर समस्या का जिक्र करते हुए कहा था, ‘मैं ये भी नहीं सोचता हूं कि वे (कश्मीरी) देश के गद्दार हैं। नाथूराम गोडसे ने सोचा था कि गांधी जी गद्दार थे। आरएसएस समझता है कि जयप्रकाश गद्दार हैं। गोडसे एक व्यक्ति था, जबकि आरएसएस एक निजी संगठन है।’
उन्होंने आगे जिक्र करते हुए कहा कि एक लोकतांत्रिक सरकार लोगों का प्रतिनिधित्व करती है और इसके कुछ सिद्धांत होते हैं, जिसके अनुरूप वह कार्य करती है. भारत सरकार किसी को गद्दार नहीं करार दे सकती, जब तक पूरी कानूनी प्रक्रिया से ये साबित न हो जाए कि वह गद्दार है। अगर सरकार ऐसा करने में अपने को असमर्थ पाती है, तब डीआईआर का प्रयोग करना और लगातार प्रयोग करना कायरतापूर्ण है, उस समय भी जब देश की सुरक्षा को कोई खतरा महसूस न हो।
दरअसल इंदिरा गांधी और जेपी के बीच चाचा-भतीजी का संबंध था। लेकिन एक प्रतिक्रिया से दोनों के बीच संबंध बिगड़ गए। जेपी ने जब भ्रष्टाचार का मामला जोर-शोर से उठाया तो इंदिरा इससे नाखुश थीं। उन्होंने एक अप्रैल 1974 को भुवनेश्वर में बयान दिया कि जो बड़े पूंजीपतियों के पैसे पर पलते हैं, उन्हें भ्रष्टाचार पर बात करने का कोई हक़ नहीं है। इस बयान से जेपी को बहुत चोट लगी। उन्हें यह इस कदर नागवार गुजरा कि जेपी ने पंद्रह बीस दिनों तक कोई काम नहीं किया। खेती और अन्य स्रोतों से होने वाली अपनी आमदनी का विवरण जमा किया और प्रेस को दिया और इंदिरा गाँधी को भी भेजा।
जेपी के एक और क़रीबी रहे रज़ी अहमद कहते है, जयप्रकाश जी की ट्रेनिंग आनंद भवन में हुई थी। इंदिरा गांधी उस समय बहुत कम उम्र की थीं। आप नेहरू और जेपी के जितने भी पत्र देखेंगे, वो नेहरू को ‘माई डियर भाई’ कह कर संबोधित कर रहे हैं। इंदिरा को भी जेपी ने जितने पत्र लिखे हैं, ‘माई डियर इंदु’ कह कर संबोधित किया है, सिवाय एक पत्र के जो उन्होंने जेल से लिखा था, जिसमें उन्होंने पहली बार ‘माई डियर प्राइम मिनिस्टर’ कह कर संबोधित किया था।
एक और घटना ने इंदिरा और जेपी के संबंधों को ख़राब किया। जेपी को जेल से छोड़े जाने के बाद गांधी पीस फ़ाउंडेशन के प्रमुख राधाकृष्ण ने लोगों और विदेश में रहने वाले भारतीयों से अपील की कि वो जेपी के लिए डायलेसिस मशीन ख़रीदने के लिए योगदान करें। इंदिरा गांधी के सचिव पीएन धर लिखते हैं, राधाकृष्ण की सलाह और मेरे पूरे समर्थन से इंदिरा गाँधी ने जेपी की डायलेसिस मशीन के लिए एक अच्छी रक़म भिजवाई। राधाकृष्ण ने जेपी की सहमति के बाद उसकी प्राप्ति की रसीद भी भेजी। लेकिन इंदिरा गाँधी की ये पहल जेपी कैंप के कई कट्टरवादियों को नागवार गुज़री और अंतत: उनके दबाव के कारण जेपी को वो रक़म इंदिरा गांधी को वापस लौटानी पड़ी। इस घटना ने इंदिरा और जेपी की बातचीत के विरोधियों को इसका विरोध करने का एक नया बहाना दे दिया। ये कहा गया कि अगर जेपी अपने ख़ेमे के कट्टरवादियों का विरोध नहीं कर सकते, तो दूसरे गंभीर मसलों पर उनसे किसी साहसिक क़दम की उम्मीद नहीं की जा सकती।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने स्वार्थलोलुपता में कोई कार्य नहीं किया। कविवर रामधारी सिंह दिनकर ने लोकनायक के विषय में लिखा है–
है जयप्रकाश वह नाम
जिसे इतिहास आदर देता है।
बढ़कर जिसके पद चिह्नों की
उन पर अंकित कर देता है।
कहते हैं जो यह प्रकाश को,
नहीं मरण से जो डरता है।
ज्वाला को बुझते देख
कुंड में कूद स्वयं जो पड़ता है।।
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