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कवि मलखान सिंह के निधन पर आयोजित हुई स्मृति सभा, डीयू के प्रो. श्योराज सिंह ‘बेचैन’ को मिलेगा स्मृति सम्मान

अखिल भारतीय अम्बेडकरवादी स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक संघ के तत्वावधान में 17 अगस्त को दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर केपी सिंह की अध्यक्षता में हिंदी दलित साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि, लेखक और मूर्धन्य साहित्यकार मलखान सिंह के आकस्मिक निधन पर स्मृति सभा का आयोजन किया गया। दिल्ली यूनिवर्सिटी की विद्वत परिषद के पूर्व सदस्य, संघ के महासचिव प्रो. हंसराज ‘सुमन’ ने मलखान सिंह के चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

इस अवसर पर मलखान सिंह के “साहित्य की प्रासंगिकता और दलित साहित्य” विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा में बोलते हुए प्रोफेसर हंसराज ‘सुमन’ ने कहा कि मलखान “सुनो ब्राह्मण” कविता से दलित साहित्य में अपनी पहचान बनाने वाले उत्तर भारत के पहले ऐसे कवि हैं जिनकी कविताओं में कबीर जैसा क्रांतिकारी स्वर दिखाई देता है। वह कबीर से प्रभावित थे इसलिए उनकी अधिकांश कविताएं आक्रोश पैदा करती हैं। मलखान सिंह की कविता के सभी पात्र आज भी समाज में जीवंत हैं। उनका मानना था कि आजादी के बहत्तर सालों के बाद भी दलित, पिछड़े, आदिवासियों की बदहाल स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। गांवों में आज भी दलितों का शोषण और दमन का सिलसिला बदस्तूर जारी है ऐसे में मलखान सिंह का समूचा साहित्य आज भी प्रासंगिक है।

प्रो. सुमन ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मलखान सिंह का जीवन शुरू से ही गरीबी, अभाव और शोषण के बीच गुजरा है परंतु उन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपनी लेखनी को नहीं छोड़ा जो उन्होंने जिया, जो उनके साथ घटित हुआ, जैसा समाज को देखा हूबहू वह सब कुछ उनकी कविताएं कहती हैं। उनकी भाषा बेहद सरल, सहज आमजन की बोली का प्रयोग किया है, वे खुद नहीं बल्कि उनके पात्र बोलते हैं इसलिए उनकी कविताएं गायन की दृष्टि से अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने आम आदमी की भाषा का कवि बताते हुए कहा कि मलखान सिंह की कविताओं में अभिव्यक्ति में मौलिकता और ताजगी है। इसलिए उनकी कविताओं में जातिवाद का विश्लेषण व्यापकता लिए हुए है। उन्होंने जाति के दंश को गांव में झेला इसलिए वे सुनो ब्राह्मण जैसी रचना लिख पाये। सुनो ब्राह्मण समाज में घटित घटनाओं को आम लोगों के बीच दर्शाकर बताया है कि दलित भी प्रतिभा के क्षेत्र में किसी से कम नहीं है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे संघ के अध्यक्ष प्रोफेसर केपी सिंह ने कहा कि “सुनो ब्राह्मण” कविता से चर्चा में आए मलखान सिंह की पहचान एक दलित कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुई। साहित्य जगत में इसकी खूब चर्चा हुई जो बाद में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में लगी। उनके दूसरा कविता संग्रह ‘ज्वालामुखी के मुहाने’ भी क्रांतिकारी कवि और विद्रोही कवि के रूप में पाठकों के सामने आते हैं। प्रो. सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश के जिस गांव में उनका जन्म हुआ वह दलित परिवार था जो आर्थिक विपन्नता को झेलते हुए उच्च शिक्षा प्राप्त कर महानगर में आते हैं, लेकिन जाति वहां भी व्याप्त है। इसलिए वे जाति पर चोट करते हैं और सवर्णों को सुनने के लिए कहते हैं कि हमारा दुःख, वेदना किसी से कमत्तर नहीं, भोगा हुआ यथार्थ है। वहीं उनकी कविताओं में उभर कर सामने आता है।

मलखान सिंह स्मृति सम्मान की घोषणा

संघ के महासचिव ने मलखान सिंह स्मृति सम्मान की घोषणा करते हुए बताया कि इस वर्ष का पहला “मलखान सिंह स्मृति सम्मान” दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व वरिष्ठ दलित साहित्यकार श्योराज सिंह बेचैन को दिया जाएगा। प्रो. बेचैन की आत्मकथा मेरे बचपन मेरे कंधों पर दलित साहित्य की अमूल्य निधि है जो विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुई है तथा दलित साहित्य के अंतर्गत विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में लगी हुई है।

प्रो. बेचैन के अलावा शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में जिन लोगों को यह सम्मान दिया जाना है उनमें डॉ. रमा (प्राचार्या, हंसराज कॉलेज), डॉ. गीता सहारे (डिप्टी डीन ,डीयू), शेखर पंवार (कवि, लेखक), डॉ. आशा जस्सल (कवयित्री, लेखिका), डॉ. कुसुम वियोगी (कवि, साहित्यकार), डॉ. ज्ञान प्रकाश (युवा लेखक, कवि). डॉ. धर्मवीर गगन (युवा आलोचक ), डॉ. रूपचंद गौतम (दलित पत्रकार, लेखक) के अलावा शिक्षाविद डॉ. विनय कुमार को दिया जाएगा। उन्होंने बताया है कि यह सम्मान सितम्बर के अंतिम सप्ताह में दिया जाएगा।

स्मृति सभा में अनेक लोगों ने मलखान सिंह के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला जिनमें डॉ. विनय कुमार, डॉ. अनिल काला, डॉ. संदीप, डॉ. राजेश कुमार आदि ने पुष्पांजलि अर्पित कर उनके साहित्य पर चर्चा की और कहा कि दलित साहित्य में उत्तर भारत के पहले कवि हैं जिन्हें सदैव याद किया जाएगा।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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