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व्यस्तताओं के जाल में

तस्वीरः गूगल साभार

अक्सर हो जाती हैं
इकट्ठी
ढेर सारी व्यस्तताएँ
और आदमी
फंस जाता है इन व्यस्तताओं
के जाल में
पर आदमी सोचता जरूर
है कि छोड़ आएं
व्यस्तताएं कोसों दूर अपने से
पर जब हम निकलते
व्यस्तताओं को
दूर करने के लिए
तब लाख कोशिशों
के बाद पीछा नहीं छोड़ती
ये व्यस्तताएं हमारा
और हमे
मजबूरन जीना पड़ता है
ये व्यस्तताओं भरा जीवन
और लड़ना पड़ता है अपने आपसे
और व्यस्तताओं से
तब इन व्यस्तताओं से बचने के बहाने
तलाशता आदमी
हमेशा व्यस्त नजर आता है

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

संजय भास्कर
संजय भास्कर ब्लॉगर हैं और कविता लिखने का शौक रखते हैं

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