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पहली पुण्यतिथिः अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व से जुड़ी 7 दिलचस्प बातें

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी

अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी

हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं

गीत नया गाता हूं

-अटल बिहारी वाजपेयी

कई युगों के बाद जन्म लेते हैं ऐसे महापुरुष जिनके अवतरण से धन्य हो उठती है ये धरा, जो कभी भी जीते नहीं हैं स्वयं के निर्माण के लिए जो खुद को समर्पित कर देते है केवल और केवल राष्ट्र निर्माण के लिए। ऐसे ही थे भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी (२५ दिसंबर १९२४ – १६ अगस्त २०१८) भारत के दसवें प्रधानमंत्री थे। वे पहले १६ मई से १ जून १९९६ तक, तथा फिर १९ मार्च १९९८ से २२ मई २००४ तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।  वे हिन्दी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता थे।  वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में एक थे, और १९६८ से १९७३ तक उसके अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया।

आइए जानते हैं वाजपेयी जी के बारे में 7 बातें, जिसकी बदौलत वह आम से बेहद खास बन गए।

  1. उदारवादी व्यक्तित्व

अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद को किसी खास विचारधारा के पहरेदार के रूप में स्थापित नहीं होने दिया। उनके प्रधानमंत्रित्व काल में कश्मीर से लेकर पाकिस्तान तक से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था। अलगाववादियों से बातचीत के फैसले पर सवाल उठा कि क्या बातचीत संविधान के दायरे में होगी? तो उनका जवाब था, इंसानियत के दायरे में होगी।

  1. विरोधियों को साथ लेकर चलने की कला

अटल बिहारी वाजपेयी को एक ऐसे नेता के तौर पर याद किया जाएगा जिन्होंने विपरीत विचारधारा के लोगों को भी साथ लिया और गठबंधन सरकार बनाई। विपक्षी पार्टियों के नेताओं की वह आलोचना तो करते ही थे साथ ही अपनी आलोचना सुनने का भी साहस रखते थे। ऐसे में विरोधी भी उनकी बात को बड़ी तल्लीनता से सुनते थे।

  1. हिंदी प्रेम

अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदी को विश्वस्तर पर मान दिलाने के लिए काफी प्रयास किए। वह 1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री थे। संयुक्त राष्ट्र संघ में उनके द्वारा दिया गया हिंदी में भाषण उस समय काफी लोकप्रिय हुआ था। उनके द्वारा हिंदी के चुने हुए शब्दों का ही असर था कि यूएन के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर वाजपेयी के लिए तालियां बजाईं थीं। इसके बाद कई बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर अटल ने हिंदी में दुनिया को संबोधित किया।

  1. कुशल वक्ता

उन्हें शब्दों का जादूगर माना गया। विरोधी भी उनकी वाकपटुता और तर्कों के कायल रहे। 1994 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का पक्ष रखने वाले प्रतिनिधिमंडल की नुमाइंदगी अटल जी को सौंपी थी। किसी सरकार का विपक्षी नेता पर इस हद तक भरोसे को पूरी दुनिया में आश्चर्य से देखा गया था।

  1. अपने-पराये का भेद नहीं

अपने-पराए का भेद किए बिना सच कहने का साहस उनमें था। गुजरात दंगों के समय सीएम रहे नरेंद्र मोदी के लिए उनका यह बयान आज भी मील का पत्थर बना हुआ है- मेरा एक संदेश है कि वह राजधर्म का पालन करें। राजा के लिए, शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता। न जन्म के आधार पर, न जाति के आधार पर और न संप्रदाय के आधार पर।

  1. डरना नहीं सीखा

1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण उनकी इस सोच का परिचायक था कि भारत दुनिया में किसी भी ताकत के आगे घुटने टेकने को तैयार नहीं है। उन्होंने एक मौके पर कहा भी कहा था कि भारत मजबूत होगा, तभी आगे जा सकता है। कोई उसे बेवजह तंग करने की जुर्रत महसूस न करे, उसके लिए हमें ऐसा कर दिखाना जरूरी है।

  1. कवि हृदय

अटल जी के दिल में एक राजनेता से कहीं ज्यादा एक कवि बसता था। उनकी कविताओं का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता रहा है। हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं… उनकी लोकप्रिय कविताओं में से एक है। संसद से लेकर जनसभाओं तक में वह अक्सर कविता पाठ के मूड में आ जाते थे।

अटल जी कविताओं की सूची

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविताएं

  • मेरी इक्यावन कविताएँ- 1959
  • संवेदना – जगजीत सिंह के साथ एक एल्बम – 1995
  • नयी दीशा – जगजीत सिंह के साथ एक एल्बम – 1995
  • Sreshtha Kabita – 1997
  • क्या खोया क्या पाया: अटल बिहारी वाजपेयी, व्यक्तित्व और कविताएं – 1999
  • Twenty-One Poems – 2003

अटल जी को प्राप्त पुरुस्कार इस प्रकार हैं

पुरस्कार

१९९२ : पद्म विभूषण

१९९३ : डी लिट (कानपुर विश्वविद्यालय )

१९९४ : लोकमान्य तिलक पुरस्कार

१९९४ : श्रेष्ठ सासंद पुरस्कार

१९९४ : भारत रत्न पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार

२०१५ : डी लिट ( मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय )

२०१५ : ‘फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवॉर्ड’, ( बांग्लादेश सरकार द्वारा प्रदत्त)

२०१५ : भारतरत्न से सम्मानित

राजनीति में बहुत कम लोग ऐसे है जिनके सम्मान में सिर श्रद्धा से अपने आप झुक जाते है, अटल जी ऐसे ही थे, विरोधी भी उनका सम्मान करते थे। हिंदी और हिंदी कविताओं से उन्हें बहुत प्रेम था। देश ने कुछ दिन पहले ही पूर्व  विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी खो दिया , सभी देशवासी धारा 370 और 35A हटने की खुशियां मना रहे थे और सुषमा जी चली गयी , अटल जी उनके राजनीतिक गुरु थे , अटल जी हमेशा से ये चाहते थे कि कश्मीर से ये धारा हट जाए पर उनके रहते ये न हो सका, जब ये संभव हुआ तब सुषमा जी भी चली गयी ऐसा लगता है जैसे वो अपने राजनीतिक गुरु को ये बताने गयी हो आपका सपना पूरा हो गया।

कुछ इन्ही भावो के साथ देश के सुप्रसिद्ध कवि औरैया की शान कवि अजय अंजाम जी ने अपनी कविता में सुषमा जी , अटल जी के संवाद को लिखा है कि क्या नजारा होगा उस वक़्त स्वर्ग में

“भैया,,मैं, सुषमा पहचाना?? जिसको बेटी कहते थे

याद आया,,जिस के भाषण पर गर्वित होते रहते थे

 

वही,,वही,,जिसको संसद में मंत्री का सम्मान दिया

राजनीति के गुरुवर बन कर देशधर्म का ज्ञान दिया

 

हां,, हां भैया,,वही ,,वही,,जो हर दिन मिथक तोड़ती थी

हां,, जो स्वयं नाम के आगे  शब्द ‘स्वराज’ जोड़ती थी

 

हां ,,हां बेटी याद आ गया तू संसद की सुषमा थी

मैं अक्सर सोचा करता तू बेटी थी या फिर माँ थी

 

ऐसा कह कर ‘अटल बिहारी’ मुस्काये फिर घबराए

इतनी जल्दी भारत छोड़ा? ऐसा कह कर झल्लाये

 

सुषमा बोल उठी,,भैया ! जो खबर आज सीने में थी

उसके बाद नहीं अब कोई रुचि मेरी जीने में थी

 

उसी खबर के इंतजार में आप तड़पते रहे सदा

कब ऐसा दिन आएगा,,बस यही सोचते रहे सदा

 

मुझे लगा ,,मैं सबसे पहले खबर आपको दूँ आकर

अपने अटल बिहारी दादा को खुश खबरी दूँ जाकर

 

सुनो आज कश्मीर हिन्द का पक्का अंग बन गया है

जिसके लिए आप जूझे थे,वो सत्संग बन गया है

 

जिसके लिए ‘मुखर्जी जी’ हंस कर बलिदान हो गए थे

धरती के उस स्वर्ग की खातिर जो कुर्बान हो गए थे

 

आज आपके दो बेटों ने वो कर्तव्य निभाया है

स्वप्न आपका था जिसको अमली जामा पहनाया है

 

इतना था उत्साह हृदय में जिसका झुकना मुश्किल था

बिना आपको बात बताए मेरा रुकना मुश्किल था

 

मुझको,,लगता है सुषमा जी फर्ज निभाने चली गयीं

अपने ‘गुरुवर’ को जल्दी खुश खबर सुनाने चली गयीं”

 

कवि अजय अंजाम (औरैया)

 

एक कुशल वक्ता, अजातशत्रु , जिन्होंने अपना सर्वस्व राष्ट्र को समर्पित कर दिया उनका कहना था  “परंपरा बनी रहनी चाहिए सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए” अटल जी की पंक्तियों के साथ उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि

 

ठन गई!

मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,

यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,

जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,

लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?

(नोट- प्रस्तुत लेख में लेखिका के अपने विचार हो सकते हैं। किसी भी विवाद की स्थिति में फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

पूजा वर्मा
कविताएं लिखने का शौक है, कई काव्य संग्रह किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। समसामयिक विषयों पर लेख भी लिखती हैं।

1 Comment on "पहली पुण्यतिथिः अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व से जुड़ी 7 दिलचस्प बातें"

  1. कुमार कौशल | August 16, 2019 at 8:38 PM | Reply

    बहुत सुंदर शब्दों में अटल जी का जीवन परिचय दिया है बहन पूजा तुमने।
    अटल जी को विनम्र श्रद्धांजलि

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