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कवयित्री नलिनी पुरोहित की कविताएं और उनका साक्षात्कार

आज हम साहित्य जगत से नलिनी पुरोहित से रूबरू करा रहे हैं। नलिनी पुरोहित गुजरात की हिंदी कवयित्री हैं। काव्य लेखन के अलावा देश विदेश में हिंदी के प्रचार प्रसार का काम भी किया है।

प्रस्तुत है उनसे राजीव कुमार झा की बातचीत, लेकिन उससे पहले नलिनी पुरोहित की ये रचनाएं भी पढ़ लीजिये।

  1. वसंत

    कवयित्री नलिनी पुरोहित

वसंत पहले मुझे ।

आ कर कहता था

तुम्हें कैसे पता चला

मैं आ गया…

अब मैं उससे पूछती हूं

कब आओगे भला

और वह कहता…

अभी अभी तो

आकर गया

तुम्हें पता भी नहीं चला

 

  1. रामायण

रामायण कल भी थी

रामायण आज भी है

फर्क सिर्फ इतना …

आज की रामायण में

 राम हैं

पर आदर्श नहीं

भरत है

पर भाव नहीं

लक्ष्मण है पर त्याग नहीं

सीता है

पर सहनशीलता नहीं

उर्मिला है पर मौन नहीं

विभीषण है

पर भक्ति नहीं

इसलिए आज तक…।

रामायण का मोह है

पर तृप्ति नहीं, पर तृप्ति नहीं


राजीव कुमार झाः  अपने बचपन, घर-परिवार, पढ़ाई-लिखाई के बारे में बताएं? कविता लेखन की ओर आपका झुकाव कैसे कायम हुआ?

नलिनी पुरोहितः एक उच्च मध्यम-वर्गीय गुजराती परिवार में मेरा जन्म झारखंड के रांची शहर में हुआ। व्यापार के सिलसिले में पिताजी गुजरात (कच्छ) से वहां आए और वहीं बस गए। मेरे पूज्य पिताजी स्वतंत्र सेनानी, प्रखर गांधीवादी के साथ-साथ मातृभाषा गुजराती के अनन्य भक्त एवं प्रेमी थे जिस वजह से मेरी बड़ी बहनों ने, गुजरात में न रहने के बावजूद, वहीं से गुजराती माध्यम में ही शिक्षा ली। किंतु मेरी शिक्षा रांची में ही हिंदी एवं अंग्रेजी माध्यम में हुई। घर पर गुजराती अध्ययन का झुकाव हमेशा बना रहता था। यही वजह है कि गुजराती माध्यम में अध्ययन न होने के बावजूद ,आज मैंने गुजराती के कई काव्य संग्रह प्रकाशित किए।

जिस जमाने की मैं विद्यार्थी थी, उन दिनों पढ़ाई स्वतः हो जाती थी। अच्छे विद्यार्थी हो तो विज्ञान, नहीं तो कला और बाकी बचे वो वाणिज्य में। कहीं कोई ज्यादा विकल्प नहीं हुआ करता था । मैं विज्ञान की विद्यार्थी थी ,अतः दसवीं कक्षा तक संस्कृत विषय था और मैट्रिक तक हिंदी पढ़ने का अवसर मिला। कॉलेज में आते ही एक तरह से साहित्य से नाता टूट ही गया था। रसायन शास्त्र में ऑनर्स करना, वह भी रांची के संत जेवियर्स कॉलेज जैसी जगह से, विद्यार्थी को विषय प्रधान बना ही देता है। किंतु मानवीय संवेदना, कला प्रेम इन सब से परे है। अतः अनजाने ही मैं अपने मनः स्थिति अनुरूप काव्य सृजन करती थी। इसका सही रूप क्या है, वह भी पता नहीं था। मुझे सुकून मिल रहा है- यही मेरे लिए यथेष्ठ था और मैं अनजाने लिखती रहती थी। पहली कविता मैंने नवीं कक्षा में लिखी थी। मित्रों, शिक्षकों से भी बहुत प्रोत्साहन मिला था । विज्ञान की विद्यार्थी होते हुए भी हिंदी में हमेशा अव्वल रहती थी। मेरा स्वतः लिखना मुझे अपने पूज्य पिताजी से विरासत में प्राप्त हआ। वह स्वयं गुजराती के बहुत अच्छे लेखक थे। उनकी लेखनी कच्छ की भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक स्थिति पर अविरल बहती थी। इसके साथ प्रकृति के प्रति भी मेरा झुकाव रहा। मुझे नृत्य में भी काफी लगाव था और मैंने कत्थक नृत्य भी सीखा है। इसके साथ गरबा, रास वगैरह में काफी पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। साथ ही रंगमंच में भी काम किया है ।

राजीव कुमार झाः  आपकी कविताओं में वर्तमान परिवेश का यथार्थ अपने राग विराग में जिस मौन और कोलाहल-दोनों को समेटे हैं, इसके बारे में क्या कहना चाहती हैं?

नलिनी पुरोहितः वर्तमान परिवेश में मेरा कवि हृदय भावनात्मक परिस्थितियों से जुड़कर हमेशा सुकून पाना चाहता है। मन का उद्गार मौन और कोलाहल को समेटे भावनाओं का रूप ले प्रगट होने को आमादा हो जाता है। ऐसे में मेरी कलम, मेरी अंतरात्मा को झकझोरती, यथार्थ की मिट्टी में भावों को शब्दों में बांध, समाज को नया आयाम दे, संतोष पाती है। यह कोलाहल और मौन-दोनों मेरी लेखनी द्वारा प्रवाहित हो मुझे आत्मिक शांति प्रदान करते हैं।

राजीव कुमार झाः  कविता लेखन में यथार्थ और कल्पना के द्वंद के साथ कला के सामंजस्य की प्रेरणा आपको कहां से प्राप्त होती है? इस रूप में अपनी कला साधना को आप किस तरह से देखती हैं?

नलिनी पुरोहितः आजू बाजू की परिस्थितियां, वर्तमान में होती घटनाओं ने हमेशा ही मुझे कलम उठाने को प्रेरित किया। मेरा दिल उन सबके बीच आहत के साथ-साथ, प्रभावित भी होता है। खासकर आधुनिक परिवेश में जूझती नारी, उसकी संवेदनाएं, पारिवारिक/ सामाजिक द्वंद, उसकी अस्मिता ने मेरे अंतर्द्वंद से प्राप्त होती नारी शक्ति को हमेशा नया रूप देने का प्रयास किया है। मैं उसे एक बाजू खड़ी होकर निहारती नहीं, अपितु तन-मन से उसमें संलग्न हो ,उसी में जीती हूं । इसलिए मेरी कविताएं, नारी संवेदना के इर्द-गिर्द ही विचरित होती रहतीं हैं । मेरी साहित्य की दूसरी विधाएं भी नारी प्रधान ही हैं। यह तो अंतर्मन झकझोरने की बात हुई ।

किंतु सच्ची प्रेरणा तो हमेशा मुझे प्रकृति से ही मिली है। जहां कोई प्रयास नहीं, कहीं कोई अभाव नहीं, अनवरत मेरी कलम पन्ने बांधती रहती है। मैं उसे प्रेरक मानती हूं ,जहां कोई क्षोभ ,आक्रोश , अस्तित्व की जोरा जोरी नहीं, जिसमें मानो सूर्योदय की प्रथम किरण दिन के उजाले को भरपूर जीती

है ।

मैं कई मायनों में खुद को सौभाग्यशाली मानती हूं कि मुझे कई प्रेरणाशील, विद्वान साहित्यकारों का स्नेह ,आशीर्वाद मिला कि मैं यहां तक यात्रा कर सकी। इनमें खासकर गुजरात के मूर्धन्य साहित्यकार डॉ. अंबाशंकर नागर, मध्यप्रदेश की डाँ. मालती जोशी, दिल्ली के डॉ. गंगा प्रसाद विमल, बम्बई की डॉ सूर्यबाला वगैरह के साथ ने हमेशा ही मुझ में सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर मेरी लेखनी को संबल दिया।

राजीव कुमार झाः  अपने प्रिय रचनाकारों के बारे में बताएं ?

नलिनी पुरोहितः बचपन से ही मैंने शिवानी, मेहरून्निसा परवेज, मालती जोशी, मन्नू भंडारी, मृणाल पांडे, सूर्यबाला को पढ़ा और उनको पढ़कर ही बड़ी हुई। उन दिनों 70-80 के दशकों में, धर्मयुग प्रिय पत्रिका हुआ करती थी। लगभग वहीं से मैंने इन कहानीकारों को पढ़ा। बाद में उनकी नवलकथाएं वगैरह भी पढ़ीं। स्कूल के दिनों में प्रेमचंद, शरद चंद्र की कहानियां अक्सर नई सोच की ओर अग्रसर करती थीं। मैं प्रायः कहानियां पढ़ कर भावुक हो जाया करती थी।

सर्वश्री माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्रा देवी चौहान, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, रसखान वगैरह जिन की कविताएं आज भी मुझे जबानी याद हैं एवं आज भी इन्हें पढ़ने का मोह रखती हूं। बचपन से आज तक उनकी कविताएं गुनगुनाती गौरवान्वित होती हूं।

राजीव कुमार झाः  कविता के अलावा हिंदी में अन्य विधाओं के अपने अध्ययन/लेखन के बारे बताएं?

नलिनी पुरोहितः कविता अभिव्यक्ति का सशक्त एवं त्वरित माध्यम है। मैंने आज तक ज्यादा कविताएं ही लिखी हैं, वह भी बिना विशेष प्रयास के। मन में विचार आए, दिल आहत हुआ, प्राकृतिक सुंदरता ने मन मोह लिया और अनायास कलम चल पड़ी। मैंने आज तक कविता लिखकर उसे दूसरी बार कभी भी पढ़कर सुधारा नहीं। जो एक बार लिख दिया वही सही।

एक महत्वपूर्ण बात कहना चाहूंगी कि जीवन के इतने उतार चढ़ाव में, इसके साथ ने ही मुझे आज तक जीवंत रखा है। हिंदी सम्मेलनों वगैरह के लिए, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख लिखे। मैंने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पेपर प्रस्तुति की। इसके साथ ही विदेश में मॉरीशस, सिंगापुर, दुबई वगैरह में भी अपने देश का गौरव बढ़ाया।

हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर 2015 में अमेरिका के वॉशिंगटन में मुझे पेपर प्रस्तुति का गौरव प्राप्त हुआ। 2016 में पेरिस में पेपर प्रस्तुति एवं कवि सम्मेलन में भाग लेने का अवसर मिला। इस दौरान, मेरी लघु कथा में भी रुचि प्रारंभ हुई। मैं कहानियाँ लिखना भी पसंद करती हूं।

राजीव कुमार झाः  आपके राज्य में हिंदी के प्रति लोगों की किस प्रकार की सांस्कृतिक सोच दिखाई देती है? राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में हिंदी की भूमिका को किस तरह से देखती हैं?

नलिनी पुरोहितः हमारे देश में शायद गुजरात ही एक ऐसा राज्य होगा, जहां गुजराती भाषा जबरन कहीं भी लागू नहीं की गई है। हिंदी का व्यवहार, यहां लगभग अन्य किसी हिंदी भाषी राज्य की तरह ही होता है। हिंदी के प्रति लोगों में अत्यंत आदर एवं सम्मान है। वे जानते हैं कि हिमालय से कन्याकुमारी, जामनगर से ईटानगर तक जोड़ने वाली अगर कोई एक भाषा है, तो वह हिंदी ही है। मैं दूसरे कई राज्यों में भी रह चुकी हूं।

मेरा अनुभव बताता है कि राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में भी गुजरात में हिंदी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। इसे बोलने, समझने,जानने एवं प्रयोग करने की उत्कंठा जितनी गुजरातियों में है, वह शायद ही दूसरी जगह मिले। इसके साथ ही हिंदी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए आए दिन यहां राष्ट्रीय स्तर पर कवि सम्मेलन का आयोजन प्रायः राज्य के सभी मुख्य शहरों में होते रहता है। सभी शहरों से हिंदी की पत्रिकाएं, समाचार पत्र वगैरह प्रकाशित होते रहते हैं। गुजरात साहित्य अकादमी के अंतर्गत हिंदी के प्रोत्साहन के लिए कविता, कहानी, अनुवाद इत्यादि सभी विधाओं में विद्वानों को पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जाता है। सभी विश्वविद्यालयों में हिंदी के स्नातकोत्तर संशोधन कर रहे विद्यार्थियों की संख्या भी बहुत बड़ी है। मैं स्वयं गुजराती होते हुए भी हिंदी भाषी क्षेत्र से आई हूँ। यहां मेरी लेखनी को जितना सम्मान, प्रोत्साहन, प्यार मिला है, शायद हिंदी भाषी क्षेत्र में न मिलता।

राजीव कुमार झाः अपने कार्य व्यवसाय के बारे में बताएं?

नलिनी पुरोहितः कर्म से रसायन शास्त्र की प्रोफेसर, अन्वेषण-कर्ता एवं वैज्ञानिक, दिल से एक भावुक कवयित्री, जब ऐसी स्थिति हो तो दोनों के बीच संतुलन अनिवार्य हो जाता है। यदि मैं साइंस की विश्वविद्यालय प्रोफेसर न होती तो साहित्य की और ज्यादा सेवा कर पाती जो मैं सेवानिवृत्ति के पश्चात आज 3 साल से कर रही हूं।

रांची में अध्ययन पूर्ण करने के पश्चात रांची विवि में ही केमिस्ट्री की अध्येता के रूप में 12 साल सेवाएं प्रदान कीं। इसी बीच दिल्ली विश्वविद्यालय में पीएचडी शुरू किया, किंतु निजी कारणवश अंततः रांची विश्वविद्यालय से ही इसे पूर्ण किया। वर्ष1991 से महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय , वडोदरा, गुजरात में 25 साल सेवाएं अर्पित कीं। शोध के क्षेत्र में मस विश्वविद्यालय देश में अव्वल है, अतः रांची से आने के बाद अनुसंधान क्षेत्र पर पीएचडी होने के बावजूद विद्यार्थियों की तरह ही पुनः काम किया। वेनिस, यूके, ऑस्ट्रेलिया, बैंकॉक के विवि में पेपर प्रस्तुति की और मेरे बहुत सारे शोध पत्र अनेक अंतरराष्ट्रीय रिसर्च जर्नल में भी प्रकाशित हुए हैं। कई डिज़र्टेशन एवं पीएचडी के विद्यार्थियों को भी गाइड किया। इतनी व्यस्तताओं के बावजूद मेरा कवि हृदय हमेशा जागरूक रहा। मेरी कविताओं का प्रसारण आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं साहित्यिक सम्मेलनों में होता रहा। अपने व्यवसाय के प्रति जहां मैं हमेशा सजग रही। वहीं अपनी लेखनी के प्रति हमेशा भावुक। संतुलन बनाये रखने की कोशिश में दोनों क्षेत्रों से मुझे पूरा सहयोग मिला। कविता लिखने का संतोष, उससे मिलती सकारात्मक ऊर्जा मेरे अनुसंधान क्षेत्र में सहयोगी बनकर मेरे कार्यशाला क्षेत्र को भी आगे बढ़ाती गयी। इधर तीन-चार सालों से मैं पूर्णतः साहित्य की सेवा कर रही हूं। अभी भी केमिस्ट्री के परीक्षक, पीएचडी में वाइवा वगैरह के लिए जाती रहती हूं। मैंने केमिस्ट्री में भी किताब लिखी है, जिसे एक जर्मन पब्लिशर ने पब्लिश किया है। किताब का नाम है “जर्नी ऑफ द कार्बोहाइड्रेट”। यह बीएससी, एमएससी एवं पीएचडी छात्रों के काम में आ सकती है। केमिस्ट्री के साथ-साथ हिंदी में भी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ख्याति के लिए 2007 में मुझे कुलपति महोदय, महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के हाथों स्वर्ण पदक भी प्राप्त हुआ है।

राजीव कुमार झाः आधुनिकता की पृष्ठभूमि में महिलाओं के जीवन में सकारात्मक नकारात्मक बदलाव को किस रूप में देखती हैं?

नलिनी पुरोहितः आधुनिक जीवन में आने वाले इस बदलाव को मैं चुनौती के रूप में देखती एवं स्वीकार करती हूं। समाज के नकारात्मक रवैयै को किस तरह सकारात्मकता में बदला जा सके, उसके लिए सतत प्रयत्नशील भी रहती हूं। महिलाओं की प्रतिभा जो सुषुप्त अवस्था में है अथवा सामाजिक/पारिवारिक स्थिति के कारण जो अंदर ही अंदर निष्क्रिय बन रही है। उसे समाज के समक्ष क्रियाशील करने का भरसक प्रयास भी करती हूं। प्रतिभाओं को उजागर करने के लिए समय-समय पर अपनी संस्था के माध्यम से साहित्यिक गतिविधियां भी करवाती हूं।

राजीव कुमार झाः अपने अन्य सामाजिक अभिरुचियों के बारे बताएं?

नलिनी पुरोहितः आज के युवा वर्ग के मध्य हिंदी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए मैंने “साहित्य प्रवाह “नामक संस्था की स्थापना 2007 में की। इसके तहत संपूर्ण देश में विभिन्न स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय में एक विषय देकर लघु कथा, काव्य, वक्तव्य स्पर्धा का आयोजन किया जाता है। यह प्रतियोगिता गुजरात के विभिन्न शहरों के साथ देश के विभिन्न राज्यों जैसे झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, असम ,बंगाल, कश्मीर में भी कराया जाता है। तदुपरांत 2015 में अमेरिका के विभिन्न शहरों, ओहायो वाशिंगटन, शिकागो में भी कराया गया था। इस संस्था के अंतर्गत महिलाओं के लिए भी कार्यक्रम रखे जाते हैं। परंतु इसकी प्रमुख भूमिका युवाओं के बीच हिंदी की लोकप्रियता बढ़ाना ही है। आध्यात्मिक व्याख्यान मैं खुद भी साहित्य प्रवाह संस्था के तले करती हूं और दूसरे विद्वानों को भी आमंत्रित कर समाज /शहर में नवचेतना के लिए जागृत रहती हूं। युवा वर्ग के लिए मैं ज्यादा ही सचेत हूं ताकि उन्हें भारतीय भाषा, भारतीय संस्कृति एवं हमारी परंपरा को जानना/समझना चाहिए। इसी हेतु, 2017 में मैंने “सरल रामायण” सरल शब्दों का उपयोग कर, काव्यात्मक शैली में लिखी क्योंकि भाषा की क्लिष्टता कभी-कभी युवा वर्ग को किताबों से दूर कर देती है। सरल शब्दों का उपयोग कर हम उनकी रुचि हिंदी साहित्य के प्रति बढ़ा सकते हैं, ऐसा मेरा मानना है ।

परिचयः एक नजर

डॉ. नलिनी पुरोहित (पूर्व प्रो. रसायन शास्त्र, महाराजा सयाजी राव विश्वविद्यालय, वडोदरा, गुजरात।

साहित्य क्षेत्र- हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी में कविताएं, लेख,कहानी। अब तक कविताओं की 13/14 पुस्तकें प्रकाशित ।

देश- विदेश में कविता पाठ। दूरदर्शन से एवं आकाशवाणी से कविता का नियमित प्रसारण।पने इस विधा के लिए वाइस चांसलर के हाथों स्वर्ण पदक प्राप्त।

विभिन्न स्थलों से सम्मानित, मंच संचालन हिंदी एवं गुजराती में।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

राजीव कुमार झा
शिक्षक व लेखक

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