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आखिर किसानों ने सरकार के प्रस्ताव को क्यों ठुकराया, अब आगे क्या होगा?

सरकार की तरफ से कई दौर की बातचीत हो गई, लेकिन अभी तक मामला वहीं का वहीं है। किसानों के दिल्ली सीमा पर आंदोलन के 13 वें दिन भारत बंद के दिन गृह मंत्री से बातचीत और अगले दिन सरकार के लिखित प्रस्ताव पर बात नहीं बनी, किसानों  ने उस प्रस्ताव को ही ठुकरा दिया। इतना ही नहीं किसानों ने अब अपनी आगे की रणनीति भी बता दी है कि वे 14 दिसंबर को सभी ज़िला मुख्यालयों का घेराव करेंगे। उससे पहले 12 तारीख़ को दिल्ली-जयपुर हाईवे, दिल्ली आगरा एक्स्प्रेसवे को बंद किया जाएगा और एक दिन के लिए पूरे देश के टोल प्लाज़ा फ्री कर दिए जाएंगे। रिलायंस के माल, उनके उत्पाद के बहिष्कार का भी एलान किया है। बीजेपी के जितने मंत्री हैं उनका घेराव किया जाएगा और पूरी तरीक़े से उनका बहिष्कार किया जाएगा।

सरकार के प्रस्ताव में क्या है-

राज्य सरकार चाहे तो प्राइवेट मंडियों पर भी शुल्क/फीस लगा सकती है।

राज्य सरकार चाहे तो मंडी व्यापारियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर सकती है।

किसानों को कोर्ट कचहरी जाने का विकल्प भी दिया जाएगा।

किसान और कंपनी के बीच कॉन्ट्रैक्ट की 30 दिन के अंदर रजिस्ट्री होगी।

कॉन्ट्रैक्ट कानून में स्पष्ट कर देंगे कि किसान की जमीन या बिल्डिंग पर ऋण या गिरवी नहीं रख सकते।

किसानों के जमीन की कुर्की नहीं हो सकेगी।

एमएसपी की वर्तमान खरीदी व्यवस्था के संबंध में सरकार लिखित आश्वासन देगी।

बिजली बिल अभी ड्राफ्ट में है, लागू नहीं हुआ है।

एनसीआर में प्रदूषण वाले कानून पर किसानों की आपत्तियों को समुचित समाधान किया जाएगा।

सरकार कृषि कानूनों को रद्द नहीं करेगी।

किसान संगठनों ने क्‍या कहा है?

केंद्र के प्रस्‍ताव को पूरी तरह से रद्द करते हैं।

रिलायंस के जितने भी प्रॉडक्‍ट्स हैं, सभी का बायकॉट करेंगे।

पूरे देश में हर जिले के मुख्‍यालय पर 14 दिसंबर को मोर्चा लगेगा।

पूरे देश में रोज प्रदर्शन जारी रहेंगे। जो धरने नहीं लगाएंगे, वे किसान दिल्‍ली कूच करेंगे।

दिल्‍ली की सड़कों को एक-एक करके जाम करने की तैयारी है।

12 दिसंबर तक दिल्‍ली-जयपुर हाइवे और दिल्‍ली-आगरा हाइवे को रोक दिया जाएगा।

बीजेपी के सभी मंत्रियों का घेराव होगा।

12 तारीख को पूरे एक दिन के लिए टोल प्‍लाजा फ्री कर दिए जाएंगे।

मालूम हो कि 9 दिसंबर की दोपहर सरकार ने 20 पन्नों का प्रस्ताव भेजा। प्रस्ताव केवल एक दो पंक्ति में लिखा था मगर भूमिका बनाकर केवल खातापूर्ति करने के लिए पन्ने भरे हुए थे। सरकार ने अपने लिखित प्रस्ताव में कहा कि वे समर्थन मूल्य पर लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार हैं। किसानों की मांग यह भी थी कि समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाया जाए। लेकिन, किसान आंदोलन सिर्फ MSP को लेकर नहीं हो रहा है। सरकार ने तीनों कानूनों को वापस लेने के बजाए एक नए बनने वाले कानून को वापस लेने की बात ज़रूर कह दी।

प्रस्ताव के अनुसार सरकार बिजली संशोधन विधेयक 2020 नहीं लाएगी और बिजली बिल भुगतान की वर्तमान व्यवस्था चलती रहेगी। इस कानून में किसानों की आशंका थी कि सिविल अदालत की तरह शक्ति देकर इसके लिए एक इलेक्ट्रिसिटी कांट्रेक्ट एनफोर्समेंट अथॉरिटी बनाकर बिजली कंपनियों द्वारा उन्हें अपना गुलाम बनाया जायेगा। लेकिन अब यह विधेयक नहीं इस प्रस्ताव में कानून वापस लेने की जगह संशोधन और कंफ्यूज़न दूर करने का भाव ही किसानों को नज़र आया।

इसी तरह किसानों के अन्य मुद्दों पर प्रस्ताव में जैसे एनसीआर में प्रदूषण वाले कानून पर (पराली जलाने) किसानों की आपत्तियों को समुचित समाधान किया जाएगा। किसानों की भूमि के विरुद्ध किसी प्रकार की वसूली हेतु किसानों की जमीन की कुर्की नहीं की जायेगी। किसान की जमीन या बिल्डिंग पर ऋण या गिरवी नहीं रख सकते। राज्य सरकार चाहे तो प्राइवेट मंडियों पर भी शुल्क/फीस लगा सकती है।

राज्य सरकार चाहे तो मंडी व्यापारियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर सकती है। किसानों को कोर्ट कचहरी जाने का विकल्प भी दिया जाएगा। किसान और कंपनी के बीच कॉन्ट्रैक्ट की 30 दिन के अंदर रजिस्ट्री होगी।

इस प्रस्ताव के आने के बाद किसानों की बैठक हुई, साथ ही प्रेस कांफ्रेंस भी हुई, जिसमें किसानों ने सभी तीनों कानूनों की वापसी ही अंतिम विकल्प मानने की बात कही औऱ सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

स्वराज पार्टी के नेता योगेन्द्र यादव ने कहा है कि “सरकार के प्रस्ताव में संशोधन का सुझाव था। किसान संगठनों ने एक स्वर से इन प्रस्तावों को ख़ारिज कर दिया है।”

जिस वक़्त किसान नेता संवाददाता सम्मेलन में किसानों का फ़ैसला बता रहे थे उसी दौरान कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात करने पहुँचे।

इसी तरह जिस वक्त किसान नेता सरकार के भेजे प्रस्ताव पर विचार करने के बाद प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे उसी वक्त शाम पांच बजे पांच विपक्षी दलों के नेता राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात करने जा रहे थे। 

विपक्ष एकजुट हो रहा है, लेकिन अब सवाल उठता है कि क्या विपक्ष जियो, रिलायंस और अडाणी के उत्पादों आदि के बहिष्कार में किसानों का साथ देगा? किसान आंदोलन ने बड़ी लड़ाई का एलान कर दिया है। इस लड़ाई के निशाने पर सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि प्राइवेट कंपनियां जैसे रिलायंस भी हैं।  

संसद के मॉनसून सत्र में पारित किए गए कृषि विधेयकों के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर पिछले 14 दिनों से किसानों का प्रदर्शन जारी है। इसी गतिरोध को तोड़ने की सरकार द्वारा एक कोशिश थी। लेकिन, अब जबकि किसानों के प्रस्ताव ठुकराने के बाद स्थिति साफ हो गई है कि आंदोलन अभी लंबा चलने वाला है।

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Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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