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ब्लॉगर

वक्‍़त के पन्नों पर (कविता)

जिंदगी तुम कई बार मुसकराहटों के मायने बदल देती हो पढ़ती हो जब भी वक्‍़त की किताब सोच में पड़ जाती हो हर पृष्‍ठ इसका विस्मय की स्याही से भरा होता है जिसके मायने तुम्हें…


कविताः पुरानी डायरी के पन्ने

– संजय भास्कर   अक्सर जब कभी मिल जाती है पुरानी डायरी तब लगभग हर उस शख्स के चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है जिन्होंने कभी इस डायरी में कुछ सपने संजोये होंगे डायरी में…


कविताः पिता

-रचना दीक्षित जाने क्यों नहीं बदलते कभी पिता मेरे हों या मेरे बच्चों के जब देखो रहते हैं पिता बचपन में देखा तो पिता बड़ी हुई तो भी पिता उम्र के इस पड़ाव पर जब…