SUBSCRIBE
FOLLOW US
  • YouTube
Loading

ओजोन दिवस और पर्यावरण- प्रदूषण का स्तर क्यों बढ़ता जा रहा है?

तस्वीरः गूगल साभार

साल था 1985। वैज्ञानिकों का एक दल ब्रिटिश अंटार्कटिक का भौगोलिक व वायुमंडलीय सर्वे कर रहा था। इस दौरान उन्होंने पाया कि धरती के इस क्षेत्र में गर्मी का असर कुछ अधिक तीक्ष्ण है। उन्होंने जलन भी महसूस की जो कि सामान्य धूप से कहीं अधिक थी। जब इस तीक्ष्ण धूप के कारण की खोज की गई तो पता चला कि अंटार्कटिक के ऊपर ओजोन परत में एक बड़ा छेद है। शोध और खोज के लंबे दौर के बाद पता लगाया गया कि इस छेद की जिम्मेदार क्लोरोफ़्लोरोकार्बन (CFC) गैस है। पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों में हड़कंप मच गया। भू वैज्ञानिकों ने इस मसले को जोर-शोर से उठाया और सभी देशों को मिलकर इस समस्या पर विचार करने के लिए बुलाया। इसके बाद इस गैस के उपयोग को रोकने के लिए दुनियाभर के देशों में सहमति बनी और 16 सितंबर 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किया गया था। इसके बाद से ओजोन परत के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने साल 1994 में 16 सितंबर की तारीख को  ‘अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस’ मनाने का ऐलान किया गया। पहली बार विश्व ओजोन दिवस साल 1995 में मनाया गया था। जिसके बाद हर साल 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है।
यह तो भूमिका था, ओजोन दिवस के नाम एक दिन किए जाने की। लेकिन, इन 25 सालों में भी हम इस ओर तनिक भी जागरूक नहीं हो पाए हैं। पर्यावरण हमारे बीच का एक ऐसा मसला है, जिसके बारे में हम जानते सब कुछ हैं लेकिन इस बारे में कदम नहीं बढ़ाना चाहते हैं या फिर नहीं बढ़ा रहे हैं। अभी हाल के दिनों में बढ़ती स्किन डिजीज, कैंसर व अस्थमा जैसे रोग हर किसी को परेशान किए हुए हैं। वैज्ञानिक इनका कारण ओजोन परत में बढ़ते होल को मानते हैं, जिससे सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट किरणें सीधे धरती पर पहुंचकर हमें नुकसान पहुंचा रही हैं। वहीं, पर्यावरणविद मानते हैं कि शहरों में कटते पेड़, कूड़े का पहाड़ व आए दिन बढ़ रहीं गाड़ियों और एसी वगैरह का इस्तेमाल ओजोन परत के लिए हानिकारक हो रहा है। बड़े शहरों मसलन दिल्ली, नोएडा, गुड़गांव में हालात और बुरे हैं। इनसे सटे शहरों गाजियाबाद, अलीगढ़, फरीदाबाद की भी हालात और खराब हैं। यहां कूड़ा निस्तारण ठीक न होने से शहर के एक इलाके में बड़े-बड़े कूड़े के पहाड़ बन गए हैं, जिनसे लगातार हानिकारक गैसें निकलती हैं। अधिक ऊंचाई हो जाने के कारण यह ओजोन परत को सीधे नुकसान पहुंचा रही हैं।

गुरुग्राम में वन विभाग के आकंड़ों के अनुसार, बीते 2 साल में विकास के नाम पर 25 हजार के करीब पेड़ों को काटा जा चुका है। वहीं, शहर के गढ़ी-हरसरु में ग्लोबल सिटी बनाने के लिए लगभग 10 हजार, व उद्योग विहार में रोड चौड़ा करने के लिए एक हजार पेड़ और कटने जा रहे हैं। इससे पहले गुरुग्राम-सोहना रोड के बीच 9 हजार पेड़, अतुल कटारिया चौक के पास एक हजार पेड़ काटे जा चुके हैं। पर्यावरणविद, डॉक्टर सारिका वर्मा ने बताया कि कुछ साल में शहर से हजारों की संख्या में पेड़ अब नहीं बचे हैं। ऐसे में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है और हम लोग ही ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
फरीदाबाद सेव अरावली के संस्थापक सदस्य जितेंद्र भड़ाना ने बताया कि ओजोन गैस को अगर कम करना है तो सबसे पहले ग्रीनरी के ग्राफ को बढ़ाना होगा। अरावली के अंदर तरह तरह के पेड़ लगाए जाएं, इसके अलावा सिटी फॉरेस्ट बनाने की जरूरत है। कई संस्थाएं अरावली को बचाने के लिए काम कर रही हैं, लेकिन अवैध कब्जों की वजह से अरावली खत्म होती जा रही है। गुड़गांव-फरीदाबाद रोड स्थित बंधवाड़ी में बना कूड़े का पहाड़ मुश्किलों को और बढ़ता जा रहा है। शहर के सभी 35 वॉर्डों के अलावा, इंडस्ट्री और कमर्शल एरिया से हर रोज 800 से एक हजार टन कूड़ा प्लांट पर जाता है।
इसी प्रकार दूसरी ओर से फरीदाबाद से भी कूड़ा आता है। ग्रामीणों का कहना है कि यहां कूड़े से निकलने वाले लीचेट से न केवल बदबू आती है, बल्कि उससे गांव की जमीन की उर्वरता भी कम हो गई है। वहीं आस-पास का पानी भी खराब होने लगा है। पर्यावरणविद, विवेक कंबोज ने बताया कि कूड़े के पहाड़ से सबसे अधिक मात्रा में मिथेन गैस निकल रही है, जोकि ओजोन परत को बहुत अधिक प्रभावित कर रही है। इस पहाड़ में अधिकतर समय कूड़े में आग लगी रहती है, जिसका प्रभाव बढ़ता जा रहा है। केवल इतना ही नहीं इस पहाड़ से आस-पास के 5 गांव प्रभावित हो चुके हैं। सिविल हॉस्पिटल के डॉक्टर नवीन कुमार का कहना हैं कि अल्ट्रावॉयलेट किरणों से लोगों में कैंसर तक हो सकता है। जानवरों की प्रजनन क्षमता पर भी इनका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है और असमय मौत हो सकती है। वहीं, फोर्टिस हॉस्पिटल के फिजिशियन, डॉ. अमिताभ ने बताया कि अधिक मात्रा में सूरज की अल्ट्रावॉयलेट किरणें आने से सनबर्न व स्किन कैंसर तक हो सकते हैं। वहीं, यह किरणें हमारी आंखों के लिए भी खतरनाक बन सकती हैं, क्योंकि इससे रेटिना खराब होने से व्यक्ति अंधापन पड़ेगा। अस्थमा जैसी सांस संबंधित बीमारियां को लोग खुद अधिक न्यौता दे रहे हैं।
अब देखना यह है कि इन तमाम हिदायतों के बाद भी हम आखिर कब तक अपने पर्यावरण के प्रति सचेत होंगे।

नोटः प्रस्तुत लेख में लेखक के निजी विचार समाहित हो सकते हैं। लेख के किसी भाग से असंतुष्टि की दशा में फोरम4 जिम्मेदार नहीं होगा। 

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

विकास पोरवाल
पत्रकार और लेखक

Be the first to comment on "ओजोन दिवस और पर्यावरण- प्रदूषण का स्तर क्यों बढ़ता जा रहा है?"

Leave a comment

Your email address will not be published.


*