संबंधों की मरुथली को
नेह भरी बरसात चाहिये
दुख शूल बनकर चुभे कभी न
अपनापन सौगात चाहिये ।
पीर परायी आँसू मेरे
कुछ ऐसे अहसास चाहिये ।
महके सौरभ रेत कणों में
हरी भरी इक आस चाहिये ।
चमक दिखाती इस दुनिया में
नहीं झूठी कोई शान चाहिये
मुझको तो सबके चेहरे पर
इक सच्ची मुस्कान चाहिये ।
-डॉ. रीता सिंह
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