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इक सच्ची मुस्कान चाहिये

तस्वीरः गूगल साभार

संबंधों की मरुथली को

नेह भरी बरसात चाहिये

दुख शूल बनकर चुभे कभी न

अपनापन सौगात चाहिये ।

 

पीर परायी आँसू मेरे

कुछ ऐसे अहसास चाहिये ।

महके सौरभ रेत कणों में

हरी भरी इक आस चाहिये ।

 

चमक दिखाती इस दुनिया में

नहीं झूठी कोई शान चाहिये

मुझको तो सबके चेहरे पर

इक सच्ची मुस्कान चाहिये ।

-डॉ. रीता सिंह

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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