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डॉ. रीता सिंह

वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

वह सुबह कब यहाँ आयेगी ? जब सूनी सड़कों पर बेटी हो निडर घूम – फिर पायेगी । वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?   मुखौटा पुरुषों का पहनकर दानव वहशी बन डोल रहे लगती…


इक सच्ची मुस्कान चाहिये

संबंधों की मरुथली को नेह भरी बरसात चाहिये दुख शूल बनकर चुभे कभी न अपनापन सौगात चाहिये ।   पीर परायी आँसू मेरे कुछ ऐसे अहसास चाहिये । महके सौरभ रेत कणों में हरी भरी…