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क्या हारना इतना आसान है?

क्या हारना इतना आसान है?

कि उस पर आंसू न निकले

आगे बढ़ने का प्रयास तक न करें

 

क्या हमारी असफलता में

सिर्फ हमारा दोष होता है?

चाह कर भी कुछ ना कर पाने पर

रोकने वालों का नहीं

तुम्हारी सुरक्षा के नाम पर

कदमों को समेट देने वालों का नहीं?

 

तुम चाह कर भी

पर नहीं फैला सकती

तुम लड़की हो

नाच -गा नहीं सकती

सपने भूल जाओ

परीक्षाओं के दिनों में भी

घर के 8 लोगों की रोटी पकाओ

 

करो तुम सब कुछ

किसने रोका है

कह देने वाले अक्सर

हर कदम पर रास्ते बंद कर दिया करते हैं

शायद वह तुम्हें बस मां, बहन, बेटी के सिवा

सिर्फ बहू, पत्नी के रूप में ही देख सकते हैं

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

प्रीत भारद्वाज
स्वतंत्र लेखिका और कवयित्री

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