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डीयू में शिक्षक डॉ. सुरेंद्र के अनिश्चितकालीन अनशन का 16 वां दिन, संस्थाओं से मिला समर्थन

डॉ सुनील कुमार के अनशन के 16वें दिन की तस्वीर है। छवि आभार: डॉ सुरेंद्र कुमार की फेसबुक वॉल से

-सुकृति गुप्ता

डॉ. सुरेंद्र कुमार का आरोप है कि इतिहास विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सुनील कुमार यूजीसी और विश्वविद्यालय के नियमों की अनदेखी कर रहे हैं

दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के शिक्षक और डूटा एक्ज़ीक्यूटिव डॉ. सुरेंद्र कुमार पिछले पंद्रह दिनों से अनिश्चितकालीन अनशन पर नार्थ कैम्पस के कला संकाय में बैठे हैं। उनका यह अनशन 4 सितंबर को शुरू हुआ था जो अभी भी जारी है। अब उन्हें कई संस्थानों का समर्थन भी मिल रहा है। उनका आरोप है कि इतिहास विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सुनील कुमार यूजीसी और विश्वविद्यालय के नियमों की अनदेखी कर रहे हैं। अपने तानाशाही रवैये को अपनाते हुए वे नियमों को ताक पर रखकर एडहॉक शिक्षकों की नियुक्तियाँ कर रहे हैं जिनमें सभी को समान अवसर नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने उन पर ऐसे नियम बनाने का आरोप लगाया है जिनसे एनसीवेब के कई शिक्षकों की नौकरियाँ छिनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। साथ ही उन्होंने उन पर दिल्ली  विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. खुशबू कुमारी का अपमान करने का भी आरोप लगाया है। डॉ. खुशबू कुमारी दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में एडहॉक शिक्षक के रूप में नियुक्ति होने वाली पहली आदिवासी महिला हैं।

क्या है पूरा मामला

डॉ. खुशबू कुमारी और डॉ. सुरेंद्र कुमार का आरोप है कि इतिहासविभागाध्यक्ष एडहॉक शिक्षकों की नियुक्ति से संबंधित यूजीसी रेग्युलेशन 2018 और ईसी रिज़ोल्युशन 2007 के नियमों की अनदेखी कर रहे हैं और उनमें छेड़छाड़ कर रहे हैं। उन पर आरोप है कि वे ऐसे नियम बना रहे हैं जिसके चलते एनसीवेब के कई शिक्षक अपनी नौकरियाँ खो सकते हैं। अनुभव की बजाय मेरिट को वरीयता दी जा रही है।

डॉ. खुशबू कुमारी का कहना है कि ईसी नियमों में बदलाव कर ईसी पैनल में केवल उन्हें रखे जाने का नियम बनाया जा रहा है जिन्होंने इतिहास विभाग से पढ़ाई की है। जबकि यूजीसी के नियम के अनुसार वे लोग भी इसके लिए दावेदार हैं जिन्होंने इतिहास से संबद्ध विषयों से एमफिल या पीएचडी किया है। उनका कहना है कि इतिहास से एमए किए हुए कई विद्यार्थी बुद्धिस्ट, अफ्रीकन या साउथ-ईस्ट एशियन विभाग से एमफिल या पीएचडी कर लेते हैं। ये सभी इतिहास से संबद्ध विषयों में गिने जाते हैं। यूजीसी के नियमों के अनुसार वे भी इतिहास विभाग में शिक्षक के पद पर नियुक्त होने के दावेदार हैं। एनसीवेब में बहुत से शिक्षक ईसी रिज़ोल्युशन 2007 के नियमों के अनुसार ही नियुक्त हुए हैं। ऐसे में नियमों में बदलाव से उन पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा।

इससे पहले फोरम फोर न्यूज़ को दिए साक्षात्कार में विद्वत परिषद की सदस्य डॉ. लता ने भी यह बात स्पष्ट करते हुए कहा था कि दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के 4500 शिक्षक पढ़ाते हैं। इनमें से करीब 1100 शिक्षक एनसीवेब में पढ़ाते हैं। इन शिक्षकों की नियुक्ति ईसी रिज़ोल्युशन 2007 के अनुसार ही हुई है। पर, नए नियमों के तहत कई एनसीवेब शिक्षकों को उनकी नौकरी से हटा दिया गया। हालांकि अनशन को देखते हुए एनसीवेब ने तत्काल नोटिस जारी करते हुए ईसी रिज़ोल्युशेन के छठी श्रेणी के लोगों को 14 सितंबर को बातचीत के लिए बुलाया था।

 

     एनसीवेब द्वारा जारी नोटिस

डॉ. खुशबू कुमारी का यह भी आरोप है कि डिपार्टमेंट काउंसिल की बैठक में उन्होंने जब इतिहास विभागाध्यक्ष के मनमाने रवैये पर आपत्ति ज़ाहिर करते हुए अपनी बात रखी तो उनकी बात को तवज्जों नहीं दी गई। इसके विरोध में वे ज़मीन पर बैठ गईं। उनका आरोप है कि वे 3 घंटे तक ज़मीन पर बैठी रहीं, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई। इसके विरोध में अनिश्चितकालीन अनशन शुरू कर दिया गया। अनशन को 15 दिन हो चुके हैं जो अब भी जारी है। कला संकाय के गेट नंबर 4 के पास अनशन पर बैठे शिक्षकों का आज 16वां दिन है।

                                           डीसी में उनकी बात न सुनने पर विरोध जताते हुए डॉ. खुशबू कुमारी ज़मीन पर बैठे गईं 

क्या है इनकी मांग

डॉ. सुरेंद्र कुमार और डॉ. खुशबू कुमारी का आरोप है कि प्रोफेसर सुनील कुमार तानाशाही रवैया अपना रहे हैं। उन्होंने उन्हें महिला-विरोधी कहते हुए मांग की है कि उन्हें उनके पद से हटाया जाए और उनके खिलाफ़ जांच कमिटी गठित की जाए। इसके अलावा उन्होंने एनसीवेब के चेयरमैन प्रोफेसर राजीव गुप्ता को भी उनके पद से हटाए जाने की मांग की है। जिन एनसीवेब शिक्षकों को निकाला गया है, उन्हें पुन: नियुक्त किया जाए। आगे नए शिक्षकों की नियुक्ति भी ईसी रिज़ोल्युशन 2007 के नियमों के अनुसार की जाए।

कई संस्थाओं का मिल रहा है समर्थन

सुरेंद्र कुमार के अनशन को कई शैक्षिक संस्थानों और सामाजिक संस्थाओं का समर्थन मिल रहा है। इन्होंने अपनी तरफ़ से दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर विश्वविद्यालय में हो रही इस तरह की असंवैधानिक घटनाओं की निंदा की है तथा कुलपति से डॉ. सुरेंद्र कुमार की बात पर तवज्जों देने को कहा है। इन पत्रों में दिल्ली विश्विद्यालय में एक आदिवासी महिला शिक्षिका के अपमान की विशेष रूप से निंदा की गई है।

पुदुचेरी विश्वविद्यालय के एससी/एसटी एम्पलोईज वेलफेयर एसोसिएशन के प्रेसिडेंट डॉ. जिरोम समराज और जेनेरल सेक्रेटरी डॉ. एन रवि ने कुलपति को पत्र लिखा है। इसके अलावा बिहार के प्रोग्रेसिव टीचर्स एसोसिएशन (भागलपुर, बिहार), झारखंड एकता संघ (मुंबई), नेशनल फ्रंट ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन, महाविद्यालय अनुसूचित जाति-जनजाति शिक्षक संघ, डॉ. अम्बेडकर अनुसूचित जाति अधिकारी कर्मचारी एसोसिएशन (राजस्थान), डॉ. अम्बेडकर अधिवक्ता संस्था (राजस्थान) ने भी कुलपति को पत्र लिखते हुए इस मामले की जांच कराए जाने की मांग की है। इसके अलावा महाराष्ट्र ऑल इंडिया बहुजन टीचर्स एसोसिएशन समेत कई शिक्षकों ने डॉ. सुरेन्द्र कुमार को समर्थन पत्र लिखा है। मंगलवार 18 सितंबर को भी यूथ बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया के कई सदस्यों ने डॉ. सुरेंद्र कुमार का हौसला बढ़ाने के लिए उनसे मुलाकात की।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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