लगभग 70 हजार फीस लेकिन, सुविधा प्राइमरी स्कूल के बराबर भी नहीं, छात्र भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) आए दिन किसी न किसी विवाद की वजह से चर्चा में बना रहता है। यहां कभी एक ओर शिक्षक प्रशासन से अपनी मांगों को लेकर धरने पर बैठ जाते हैं तो कभी छात्र। हम बात कर रहे हैं-दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म की। इसे दिल्ली विश्वविद्यालय ने खोलकर काफी प्रशंसनीय कार्य किया है। लेकिन, 2017 में इसकी बुनियाद रखकर कक्षाएं जब से शुरू की गई तभी से इस पाठ्यक्रम के छात्र बस किसी तरह से पढ़ ही रहे हैं। देश का सबसे खास और अहम विश्वविद्यालय में छात्र पठन-पाठन के लिए बुनियादी चीज़ों के न होने से लगातार धरना प्रदर्शन और भूख हड़ताल करते नजर आ रहे हैं। अब जबकि प्राइमरी स्कूल कितनी भी सुविधाएं छात्रों को नहीं मिल पा रही हैं। ऐसे में छात्र नॉर्थ कैम्पस स्थित स्टेडियम जिसमें स्कूल ऑफ जर्नलिज्म खोला गया है, में भूख हड़ताल पर बैठे हैं। प्रशासन थोड़ा भी ध्यान इस ओर नहीं दे रहा है, उल्टे प्रोक्टर नीता सहगल को यह कहना पड़ा कि आधारभूत समस्याओं के ठीक होने में समय लगता है। विश्वविद्यालय का मामला है इसमें वक्त लगता है। सारे काम विश्वविद्यालय की अपनी प्रक्रिया के अनुसार किए जाते हैं।
भूख हड़ताल पर बैठे छात्रों में रोशन कुमार, अम्बुज भारद्वाज, प्रशांत यादव, मोहम्मद अली, विपुल शर्मा, सुमन शेखर शामिल हैं। इन छात्रों का कहना है कि हम तब तक भूख हड़ताल करेंगे जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जातीं।
इसकी कहानी कुछ इस प्रकार है
दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म का पाठ्यक्रम 5 साल का है। छात्र इसे 3 साल में ही पूरा कर स्नातक की उपाधि ले सकते हैं। वे चाहें तो 5 साल पूरे कर मास्टर डिग्री ले सकते हैं। इसका उद्घाटन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के हाथों 2017 में हुआ था। इस स्कूल की स्थापना का मुख्य पत्रकारिता की बेहतर गुणवत्ता के साथ छात्रों को शिक्षा देना था। ताकि यह अन्य संस्थानों जैसे आईआईएमसी, जामिया या अमिटी की तरह अपना वजूद कायम कर सके औऱ कम फीस में ही पढ़ाई करा सके। अपने बुकलेट में आईआईएमसी की फीस जोकि लगभग 70000 है, से तुलना करते हुए इसने अपनी फीस 67500 प्रति साल की लिखा है। बुकलेट में सारी सुविधाओं के देने की बात की गई है जिसमें कम्प्यूटर कक्ष, कैंटीन, क्लास रूम, लाइब्रेरी आदि की तस्वीरें भी लगाई गई हैं।
लेकिन मामला क्या है, भूख हड़ताल पर बैठने के पीछे की वजह
पत्रकारिता के पहले और दूसरे वर्ष के छात्रों ने सोमवार को विश्वविद्यालय स्टेडियम के गेट पर चढ़ाई कर प्रदर्शन और नारेबाजी किया। दरअसल ऐसा उन्हें इसलिए करना पड़ा क्योंकि कुलपति योगेश त्यागी से उनकी मुलाकात नहीं हो पाई। छात्र आधारभूत संरचना न मिल पाने की वजह से लगातार कुलपति से मिलने की मांग कर रहे थे।
छात्रों के अनुसार पुलिस ने इस पर एक छात्र को प्रदर्शन समाप्त करने के लिए पकड़ भी लिया और उन्हें प्रताड़ित भी किया गया। हालांकि डीसीपी (उत्तर) नुपूर प्रसाद का कहना है कि “किसी भी छात्र को हिरासत में नहीं लिया गया।
छात्र ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योकि प्रशासन की तरफ से उन्हें 14 सितंबर तक के लिए रुकने को कहा गया था। प्रोक्टर नीता सहगल ने 28 सितंबर को लिख कर कहा था कि 14 सितंबर को मैं इस मामले के बारे में स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के छात्रों से बात करुंगी। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से छात्रों की बुनियादी समस्याओं को दूर करने के लिए य़ह समय बताया गया था। लेकिन जब 14 सितंबर तक प्रशासन ने कुछ नहीं किया और प्रोक्टर से भी कोई सटीक जवाब नहीं मिल सका तो छात्र अब भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं।
आखिर क्या-क्या हैं मांगे
छात्रों की प्रमुख मांग है कि
प्रशासन इस संस्था को यूजीसी से अफिलिएशन प्रदान कराए क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो हमारा भविष्य अधर में होगा।
प्रशासन सरकार या विभाग की ओर से वित्तीय सहायता सुनिश्चित करे ताकि फीस कम हो सके जोकि काफी ज्यादा है।
छात्रावास की सुविधा भी प्रदान कराई जाए
स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति हो ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके
प्रायोगिक तौर पर शिक्षा प्रदान करने के लिए इंटर्नशिप की व्यवस्था हो
हिंदी पत्रकारिता के साथ किसी प्रकार का भेदभाव न हो।
छात्र क्या कहते हैं व्यवस्था के बारे में
अनशन पर बैठे छात्र रौनक का कहना है कि हमें अभी भी लैपटॉप नहीं दिए गए हैं। इस वजह से हम पढ़ाई के सारे काम कर पाने में असमर्थ हैं। किसी भी तरह के कंप्यूटर प्रयोगशाला का कोई इंतजाम नहीं है। उनका कहना है की 67500 रुपए प्रति वर्ष फीस का भुगतान करने के बावजूद हमें मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है।
अगस्त 2018 में, कक्षाओं को इसी मुद्दे की वजह से पूरे माह निलंबित रखआ गया था। महीने के अंत में छात्रों ने पूरी रात परिसर में ही टिककर विरोध प्रदर्शन किया था। इसके बाद ही डीयू प्रशासन ने समस्या के हल के लिए 14 सितंबर तक समय दिया था।
स्कूल के ओएसडी, मानसविनी एम योगी के अनुसार “हमने छात्रों से ओपन लर्निंग स्कूल में मीडिया प्रयोगशाला का उपयोग करने के लिए कहा है। हम उन्हें लैपटॉप देने की प्रक्रिया में हैं। चूंकि यह एक विश्वविद्यालय प्रणाली है, इसमें समय लगता है।
14 सितंबर से अब व्यवस्था में क्या बदलाव आया ?
सभी छात्रों का अब भी कहना है कि स्थिति वही बनी है। मीडिया प्रयोगशाला का प्रबंध नहीं किया गया। प्रथम वर्ष के छात्रों के लिए कोई उचित डेस्क और कुर्सियां का भी इंतज़ाम नहीं है। कैंटीन को ही कक्षा में परिवर्तित कर दिया गया है। कोई लैपटॉप नहीं दिया गया और कोई उचित लाइब्रेरी की सुविधा नहीं है।
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