दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) से संबद्ध कॉलेजों में स्नातक व स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में दाखिला लिए छात्रों के लिए विभिन्न कॉलेजों/विश्वविद्यालय छात्रावास में विकलांगों को दिए जाने वाले 5 फीसद आरक्षण की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के नियमों का छात्रावास पालन नहीं कर रहे हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रति वर्ष स्नातक स्तर पर लगभग 500 और स्नातकोत्तर में 70 छात्र दाखिला लेते हैं। स्नातक स्तर पर जिन कॉलेजों में छात्रावास की सुविधाएं उपलब्ध हैं उन्हें कॉलेजों में छात्रावास मिल जाता है। इसी तरह से स्नातकोत्तर स्तर पर विभिन्न विभागों में प्रवेश लेने वाले एमए, एमफिल और पीएचडी के छात्रों को पोस्ट ग्रेजुएट छात्रावास दिया जाता है। ये छात्रावास अभी भी पुराने नियमों के तहत विकलांगों को 3 फीसद ही आरक्षण दे रहे हैं जबकि 2016 के बाद से इन्हें 5 फीसद आरक्षण दिए जाने का प्रावधन लागू किया जा चुका है।
दिल्ली विश्वविद्यालय विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज सुमन ने बताया है कि यूजीसी की ओर से देशभर के विश्वविद्यालयों को 2016 में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम-2016 के तहत विकलांगों को 3 फीसद से बढ़ाकर 5 फीसद आरक्षण देने के निर्देश दिए गए थे।
उनका कहना है कि वर्तमान सत्र में विभिन्न कॉलेजों ने स्नातक स्तर पर ऐसे छात्रों को 5 फीसद आरक्षण देकर उनका दाखिला किया है जबकि छात्रावास में दिव्यांगजन के लिए केवल 3 फीसद सीटें आरक्षित की गई है।
डीयू के बुलेटिन में 5 फीसद आरक्षण का प्रावधान जबकि दिया जा रहा 3 फीसद आरक्षण
प्रो सुमन के अनुसार डीयू ने अपने स्नातक के प्रवेश (एडमिशन) बुलेटिन में छात्रावास दाखिले में विकलांगजनों को 5 फीसद आरक्षण दिए जाने के लिए लिखा है। लेकिन, ज्यादातर छात्रावासों में इस नियम का पालन नहीं किया जा रहा है।
इन-इन छात्रावास में 3 फीसद ही आरक्षण
उन्होंने बताया है कि छात्रों ने उन्हें एक ज्ञापन दिया है जिसमें उन्होंने बताया है कि जुबिली हॉल, राजीव गांधी हॉस्टल फॉर गर्ल्स, यूनिवर्सिटी हॉस्टल फॉर वीमेंस, इंटरनेशनल स्टूडेंट हाउस आदि छात्रावास (हॉस्टल) में छात्रों के लिए 3 फीसद ही आरक्षण दिया जा रहा है।
शोध के लिए कम ही छात्र पहुंच पाते हैं डीयू
प्रो सुमन ने यह भी बताया है कि स्नातकोत्तर के बाद रिसर्च करने के लिए एमफिल और पीएचडी में बहुत कम दिव्यांग छात्र पहुंचते हैं। इसके बावजूद ऐसे छात्रों के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय उन्हें रिसर्च करने में बढ़ावा नहीं देता। दिव्यांग छात्रों को रहने की सुविधा न मिलने की स्थिति में उन्हें पीजी स्तर या उच्च दामों पर बाहर रहना पड़ता है, जिससे उनका आने-जाने मे ही ज्यादातर समय व्यतीत हो जाता है। साथ ही रिसर्च करने में दिक्कतों को सामना करना पड़ता है। सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं से इतर उन्हें ख़ुद ही सुविधाएं जुटानी पड़ती है। बहुत से छात्र सुविधाओं के अभाव में उच्च शिक्षा में प्रवेश नहीं ले पाते।
कुलपति को पत्र लिखकर की मांग
प्रो सुमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रो. योगेश कुमार त्यागी को पत्र लिखकर मांग की है कि दिव्यांगों को कॉलेजों व विश्वविद्यालय स्तर पर प्रशासन की ओर से छात्रावास में 5 फीसद आरक्षण के तहत प्रवेश करने की अधिसूचना जारी की जाये।
साथ ही उन्होंने यह भी मांग की है कि छात्रावास के बुलेटिन, उनकी वेबसाइट पर दिव्यांगों के लिए 5 फीसद आरक्षित सीटों की संख्या के आधार पर उन्हें दाखिला करने के निर्देश जारी करें। उन्होंने यह भी मांग की है कि दिव्यांगों के छात्रावास दाखिले के लिए उनका प्रवेश केन्द्रीयकृत किया जाये। इसमें छात्र एक ही स्थान पर आवेदन करें और एक ही लिस्ट जारी की जाये ताकि किसी तरह की धांधली न हो और छात्रों को कई जगह आवेदन करने के लिए फीस न भरनी पड़े।
उनका यह भी कहना है कि डीयू के कॉलेजों और विभागों का यह पता लगाया जाए कि किन-किन कॉलेजों में दिव्यांगों के लिए 5 फीसद आरक्षण सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, उनके आंकड़े एकत्र किए जाएं और पता लगाया जाए कि उन्होंने अभी तक दिव्यांगों को 5 फीसद आरक्षण दिया है या नहीं। अगर नहीं तो सरकार व यूजीसी द्वारा दी जा रही सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं वरना उनकी ग्रांट कट कर दी जाए।
Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।
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