जग में फैलाई है,
गंदगी चंद घरानों ने।
सवर्ण, मंत्री-संत्री,
राजा-महाराजा,
और हुक्मरानों ने।
की है मेहनत,
मेहतर, मजदूरों,
और किसानों ने।
की सफाई,
दुनिया बनाई,
फसल उगाई।
कलम नहीं,
झाड़ू थमाई।
मेहनत बेमौल,
लूट मचाई।
फ़सल दाम कमतर,
बोली लगाई।
रही मुफ़्लिसी, भुखमरी,
और कम आई कमाई।
टूटेगी जंजीरें भी,
गुलामी की।
संघर्ष की राह,
जब अपनाएंगे।
आएगी चेतना भी,
बुद्ध-प्रबुद्ध हो जाएंगे।
कलम-किताब की शरण,
जब मेहनतकश आएंगे।
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