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30 साल से बिना वेतन ट्रैफिक कंट्रोल का करते हैं काम, नाम है गंगाराम, बेटे के साथ हुए हादसे ने बदल दी जिंदगी

यकीं हो तो कोई रास्ता निकलता है

हवा की ओट भी लेकर चराग जलता है

लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं

मैंने उस हाल में जीने की कसम खाई है

सीलमपुर फ्लाईओवर के नीचे का ट्रैफिक। गाड़ियों की पों..पों..,टीं..टीं और ट्रकों की तेज हॉर्न के बीच खड़ा एक दुबला पतला 70 साल का आदमी। एक लाठी, और स्पोर्ट्स टोपी के साथ। सीटी बजाते और यातायात के संचालन का जिम्मा संभाले। नाम है गंगाराम। काम ट्रैफिक वार्डन का है, लेकिन आप सोच रहे होंगे इसमें आश्चर्य की क्या बात है, तो आपको बता देते हैं कि आश्चर्य की बात ये है कि इन्हें वेतन नहीं मिलता फिर भी यातायात संचालन का जिम्मा सुबह 9 बजे ही समय से आकर संभाल लेते हैं और रात के 10 बजे तक वहीं डटे रहते हैं।

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क्या वजह है, यह कैसी कहानी है…

इसी खूनी चौक पर मेरे जवान बेटे को एक ट्रक ने कुचल दिया था। वह इशारा करते हैं और फिर लाठी लेकर गाड़ियों को आगे आने को कहते हैं। मेरी टीवी रिपेयरिंग की दुकान थी सीलमपुर के अंदर। वायरलेस वगैरह भी रिपेयर करता था। मेरा बेटा भी साथ में टीवी रिपेयर करता था। ट्रैफिक वालों ने मेरा फॉर्म भर दिया ट्रैफिक वार्डन का। फिर मैं ट्रैफिक वार्डन बन गया। मैं सवेरे व शाम को इसी चौक पर ट्रैफिक सेवा करता था। फिर 10 बजे दुकान खोलता था।’  आगे बताते हैं कि इकलौता बेटा था मेरा। बुरी तरह घायल हो गया था। रीढ़ की हड्डी टूट गई थी। छह महीने तक गुरुतेग बहादुर अस्पताल के चक्कर लगाता रहा, लेकिन उसे बचा नहीं सका। बेटे की मौत के गम में कुछ दिनों बाद उसकी मां भी गुजर गई। फिर लगा अब बचा क्या… न तो पत्नी और न ही बेटा…एक झटके में घर का चिराग मानो बुझ गया…मैं टीवी रिपेयरिंग का दुकान चलाता था। इस दर्दनाक कहानी के बाद मैंने यह यातायात नियंत्रण करने का जिम्मा संभाल लिया और मन में ठान लिया कि अब किसी और के घर के चिराग इस तरह इस चौराहे पर नहीं बुझने दूंगा।

इस दर्दनाक कहानी के बाद किसे बदलना है…
गंगाराम कहते हैं, लोगों के लिए ये समझना बहुत जरूरी है कि लोग इतनी जल्दबाजी में रहते हैं कि उन्हें जरा भी अनुमान नहीं होता कि कब किसी के घर का चिराग बुझ जाए। मेरे जैसे बुजुर्ग के लिए किसी ऐसे समाज सेवा का काम ही शोभा देता है। कम से कम मैं किसी और के लिए कुछ तो कर रहा हूं। प्रेरणादायी जीवन की कहानी का अध्याय लिखते हुए उन्होंने अपना पूरा समय यातायात नियमों की जानकारी देने में व्यतीत करना ही उचित समझा, अब उन्हें यह करते 30 साल से अधिक हो गया। गंगाराम का कहना है कि सीट बेल्ट बांधकर गाड़ी चलाओगे, हेलमेट पहनकर बाइक चलाओगे, लालबत्ती पर रुकोगे तो आपका ही भला होगा।

वह कहते हैं कि बेटे की मौत के बाद मैंने अपनी दुकान बंद कर दी और ये सोच लिया कि अब यहां ट्रैफिक व्यवस्था संभालने और नियमों के बारे में लोगों को जागरूक करने का काम करूंगा। मुझे बहुत खुशी होती है।

गंगाराम कहते हैं, दिन भर गाडि़यों के शोर के बीच ट्रैफिक संभालना अच्छा लगता है। अच्छा लगता है कई बार यही बोलते है…फिर कहते हैं कि घर पर रहकर बीमार हो जाता हूं। जब तक जान है, तब तक इसी तरह सेवा करता रहूंगा। लालबत्ती से गुजरने वाले हजारों लोग ‘चचा’ कह के पुकारते हैं। यह पूछने पर कि सब आपका कहना कैसे मान लेते हैं…वह कहते हैं कि आप उन्हें अच्छे से समझाओगे, लाठी-डंडा नहीं दिखाओगे तो सब मान जाएंगे। बसें, स्कूटी, बाइक, कारें सब मेरे एक इशारे पर रुक जाती हैं। लोग हाथ मिलाते हैं, हालचाल पूछते हैं। कोई अनजान ही लालबत्ती का उल्लंघन करके निकलता है।

घर तो बहू के वेतन से चलता है…

गंगाराम कहते हैं, बेटे और पत्नी की मौत के बाद तो मैं टूट गया था, लेकिन बहू ने मुझे और अपने बच्चों को संभाल लिया। बड़ी पोती की शादी हो गई है। छोटी पोती और पोता पढ़ते हैं। बहू एक निजी अस्पताल में नर्स है। उसी के वेतन से परिवार का गुजर-बसर होता है। सभी एक साथ ही रहते हैं। यह कहते हुए काफी भावुक हो गए कि कि चौक से गुजरने वाले हर इंसान में बेटे का ही चेहरा दिखाई देता है। उनकी आंखे भर आई…

सभी ट्रैफिक पुलिसकर्मियों और अधिकारियों का मिलता है सहयोग

हर साल 15 अगस्त, 26 जनवरी को पुलिस महकमे व अन्य संगठनों की ओर से मुझे सम्मान मिलते हैं। इस अवसर पर रिवार्ड भी मिलता है। रिवॉर्ड मनी से भी मेरा खर्चा चल जाता है। एक दिन ट्रैफिक की जॉइंट सीपी, डीसीपी ने इस चौक पर गाड़ी रोक ली। उतरकर अपनी कैप मेरे सिर पर पहना कर सैल्यूट किया। मुझे बहुत अच्छा लगा। ट्रैफिक का फंक्शन हुआ। मुझे साथ ले गए। तीन साल का आई कार्ड दिया।’ सबका बहुत सहयोग मिलता है। मुझे बहत खुशी होती है।

-प्रभात

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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