दिल्ली विश्वविद्यालय व उससे सम्बद्ध कॉलेजों के शिक्षकों के लिए यूजीसी रेगुलेशन 2018 को लागू करने के लिए बनी हायर पावर्ड कमेटी के सदस्यों ने कुलपति प्रो. योगेश कुमार त्यागी को पत्र लिखकर मांग की है कि कमेटी की सुझाव व सिफारिशों को आगामी विद्वत परिषद की बैठक में शामिल किया जाए। कुलपति को सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर युक्त पत्र भेजा है। प्रो. हंसराज ‘सुमन’, डॉ. पंकज गर्ग, डॉ रसाल सिंह, डॉ गीता भट्ट, डॉ केपी सिंह ,डॉ. नचिकेता सिंह और डॉ वीएस दीक्षित ने मांग की है कि यूजीसी रेगुलेशन -2018 को विद्वत परिषद में ना केवल रखे जाएं बल्कि जिन सिफारिशों को शामिल किया गया है उन पर वे बहस करने के लिए भी तैयार हैं।
गौरतलब हो कि विश्वविद्यालय के विनियमों पर आधारित 18 जुलाई 2018 को यूजीसी के राजपत्र अधिसूचना के समर्थन हेतु दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा यूजीसी विनियमन समिति का गठन किया गया जो कि विश्वविद्यालय कैलेंडर के अनुसार अध्यादेश के रूप में होता है। कमेटी में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राचार्य, वरिष्ठ प्रोफेसर तथा विद्वत परिषद के सदस्यों शामिल किया गया था।
विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज सुमन के अनुसार कमेटी के सदस्यों ने यूजीसी रेगुलेशन 2018 की सिफारिशों को जल्द से जल्द लागू कराने के लिए 28 नवम्बर को सभी सदस्यों ने अपने हस्ताक्षर कर कमेटी को रिपोर्ट जमा करा दी थी। उन्होंने बताया है कि यूजीसी रेगुलेशन की इन सिफारिशों को स्वीकार करने के लिए 12 दिसम्बर को विद्वत परिषद की बैठक तय की गई थी लेकिन, यूजीसी रेगुलेशन को विद्वत परिषद के एजेंडे में नहीं रखा गया था। इस पर हाई पावर्ड कमेटी के सदस्यों ने अपना रोष प्रकट किया। उनका कहना है कि वह बुधवार को सम उपकुलपति से मिले थे उन्हें भी कड़े शब्दों में कहा कि डीयू ने यूजीसी रेगुलेशन को लेकर जो हाई पावर कमेटी बनाई है उसकी सिफारिशों को यदि विश्वविद्यालय प्रशासन नहीं मानता है तो कमेटी बनाने का कोई औचित्य नहीं है?
प्रो. सुमन ने बताया है कि गुरुवार को कुलपति को लिखे पत्र में कहा है कि 12 दिसम्बर को निर्धारित/प्रस्तावित विद्वत परिषद की बैठक स्थगित होने के उपरांत एक सप्ताह से अधिक समय व्यतीत होने के बाद भी अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया जबकि रजिस्ट्रार के पत्र के वायदे के अनुसार बैठक के लिए नई तिथि और संशोधित एजेंडे का प्रस्ताव किया गया था।
उनका कहना है कि वह यूजीसी के विनियमों को विश्वविद्यालय द्वारा अधिसूचना के बाद 6 महीने के भीतर अपना लिया जाना चाहिए तथा आवश्यक संशोधनों के उपरांत अध्यादेश को पूर्णरूपेण तथा प्रभावी तरीके से लागू किये जाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए परन्तु ऐसा लगता है कि हमारा महत्वपूर्ण समय चला जा रहा है और अभी तक हम कार्य सूचियों की पृष्ठभूमि में ही पड़े हैं।
सदस्यों का कहना है कि हमनें निर्धारित समय में सौंपे गए कार्य को पूरा कर लिया है जिससे यूजीसी के दिशानिर्देशों के अंतर्गत एक ड्राफ्ट प्रस्ताव तैयार करना था। यूजीसी के नियमों को ध्यान में रखते हुए वैधानिक तरीके से ऐसा अध्यादेश निमिर्त करना था जो कि हमारी योग्यता अनुसार त्रुटिरहित हो।
सदस्यों ने कुलपति से मांग की है कि आगामी दिनों में होने वाली विद्वत परिषद की बैठक में उपरोक्त प्रस्ताव को यूजीसी/विश्वविद्यालय द्वारा राजपत्र अधिसूचना समर्थन करने के लिए सम्मिलित किया जाए ताकि आगे की कार्यवाहियों को और विधिक निकायों के समय उस पर व्यापक चर्चा संभव हो सके। उपरोक्त प्रस्ताव विनियमों को अपनाने पर ही दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों/प्रोफेसरों को एक नई ऊर्जा मिलेगी जो कि लगातार एक दशक से अपनी स्थायी नियुक्तियों तथा पदोन्नतियों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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