-विवेक आनंद सिंह
“ऐ ख़ाक-ए-वतन अब तो वफ़ाओं का सिला दे
मैं टूटती सांसों की फ़सीलों पे खड़ा हूँ”
-जावेद अकरम फ़ारूक़ी
बचपन बीता, जवानी ढलने को आई है, बहुतों की ढल भी गई और बहुतेरों की खत्म भी हो गई है लेकिन, हमने आजादी का मतलब 1947 के बाद से अब तक न सीखा। क्यों? क्योंकि स्वतन्त्रता दिवस एक एलोपैथिक दवा की माफ़िक है, जिसके विकट से विकट साइड इफ़ेक्ट हैं। …और ये आजादी हमें बपौती के रूप में अनुवांशिक मिली है अर्थात इसको पाने और बनाए रखने में हमारी शून्य बटे सन्नाटा पुरुषार्थ लगा है!
आजादी ऐसी मिली है जैसे दहेज में मिली हीरो होंडा मोटरसाइकिल (स्वादानुसार ब्रांड परिवर्तनीय) या फिर चार पहिया, तो भैया कदर कैसे होगी? ये भी महत्वपूर्ण प्रश्न है।
अब देखिए, स्वतन्त्रता दिवस की सबसे बड़ी समस्या है कि कहीं यह रविवार को न पड़ जाए। संयोगवश अगर रविवार या वीकेंड डेज में पड़ा तो वीकेंड खराब होने का लोचा रहता है। ऐसे में देशभक्ति जमीन की धूल चाट रही होती है। लोग गालों पर ध्वज और अपनी बाहुबली छाती पर कैसे झंडा और भारत माता की जय लिखवाएं? अब वीकेंड डेज न होते तो जरूर छाती में ब्रह्मांड की सारी प्राणवायु भर भारत माता की जय और वन्दे मातरम दिन भर चिल्लाया जाता।
हालांकि ये कार्य काफ़ी जोखिम भरे हैं, तो जुकरबर्ग चच्चा की कृपा से फेसबुक की असीम अनुकम्पा से सभी तथाकथित देश भक्तों की देशभक्ति फेसबुक पर दिख जाती है, घर बैठे ही…हैशटैग वन्दे मातरम, हैशटैग शहीद, हैशटैग देशभक्त, फीलिंग सेंटी, फीलिंग देशभक्त विथ राष्ट्रवादी खूंखार सिंह/पांडे ईटीसी एंड 99 अदर्स…
अब घर बैठे ही देशभक्ति पूरी हो जाये तो क्या जरूरत है बाहर निकल कर देश का हाल जानने की? हाँ, हम तभी निकलेंगे जब हमें मोटरसाइकिल पर झंडा लहराने को मिले उसकी वीडियो बने और वो वायरल हो जाए, अन्यथा न जी न।
एक देश भक्त ऐसे भी होते हैं जो स्वतन्त्रा दिवस पर कुछ गरीब बच्चों के साथ बैठकर उन्हें झंडा या फिर कुछ खिला कर, मस्त मस्त वाली सेल्फ़ी/फ़ोटो लेकर फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर जैसी देशभक्त प्लेटफॉर्म पर चस्पा कर देते हैं, जिससे लोग इन्हें देख कर ये कह सकें- देख भाई देख, क्या दानवीर कर्ण पैदा हुआ है। माँ बाप का नाम रोशन करेगा ये लौंडा एकदिन। क्या बात। बहुत खूब।
अब कौन ये बताए कि चचा ये बच्चा अपनी अच्छी छवि बनाने के चक्कर मे मरा जा रहा है, इसे भार की सूक्ष्म इकाई के बराबर भी फर्क नहीं पड़ता कि वो गरीब बच्चे अन्य दिनों पर क्या करेंगे। स्कूल जायेंगे या नहीं? खाना मिलेगा उन्हें की नही? भैया ऐसे लोग खतरनाक प्रजाति के लोग हैं, क्योकि जो लोग सच मे चिंता करते हैं और सच मे उन बच्चों के लिए कुछ न कुछ नित्य करते हैं वो कभी शो ऑफ नहीं करते हैं, वे बस अपना काम करते हैं।
स्वतंत्रता दिवस पर ऑनलाइन शॉपिंग पर सेल चल रही होगी कि नहीं? मॉल्स में कितने परसेंट का ऑफ चल रहा है? न्यू अराइवल आया है कि नही? आज का युवा इसी में परेशान है। कुछ दिनों पहले की बात है मेरे एक विकट राष्ट्रवादी मित्र ने मुझसे पूछा “भाई 15 अगस्त आने वाला है क्या प्लान है?” हालांकि उनकी बातों में एन्जॉय को लेकर ज्यादा उत्साह था लेकिन, मुझे थोड़ा अटपटा लगा। चार वर्षों से फेसबुक पर मित्र हैं। राष्ट्रवाद में मर मिटे हैं वो, पोस्ट पर पोस्ट इतनी चेप देते हैं कि कई बार मैं सोच में पड़ जाता हूँ कितनी उपजाऊं खोपड़ी ईश्वर ने इन्हें दिया है। खैर राष्ट्रवाद हैं भाई। अब 15 अगस्त को नई मूवी देखना, सेल्फी लेना, प्रेमी प्रेमिकाओं का आलिंगनबद्ध होकर आजादी का आंनद लेना। उसके साथ-साथ कुछ भी बोलने करने का अधिकार तो हइये है। आजादी मिली ही हमें इसी लिए है न ?
स्वतन्त्रता दिवस अब एक सेलिब्रेशन सा हो गया है। लेकिन, इसमें बाधा है ड्राई-डे होना। इसलिए पहले से ही सोमरस औऱ सोमसुरा को एकत्र कर लिया जाता है। आखिर में जब तक मेरा रंग दे बसंती चोला के रीमिक्स पर डीजे डांस न हो। वो भी सोमरस चाटने के बाद, तो भइये काहें की आजादी।
आज ये आजादी की लेटेस्ट परिभाषा बन चुकी है। महान स्वतन्त्रता सेनानियों के आजादी के मायने जो उनके लिए थे और जो मायने हमने खोज लिए हैं। उनमें बड़ा अंतर आ चुका है।
अब देखिए न। गाँधी दर्शन से ही तो आज पूरा देश प्रेरणा ले रहा है। हर सरकारी दफ्तर में मेज के नीचे अलमारी के पीछे नोट पर छपे गांधी दर्शन से ही तो देश चल रहा है। यही दशा गाँधी जी के तीन बन्दरों का भी है…बापू का वह बन्दर जो आँख बंद कर बुरा न देखो की सीख देता था अब वह कानून बन चुका है। उसे सबूतों के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता है। कान बंद कर बुरा न सुनो कहने वाला बन्दर अब प्रशासन बन गया है जो किसी की नहीं सुन रहा है। मुंह पर हाथ ढक कर बुरा न बोलो का सन्देश देने वाला बन्दर अब देश के हर बन्दे का आदर्श बन चुका है। चाहे जितना भ्रष्टाचार हो जाए जनता अपना मुंह बंद किये रहती है। चाहे समाज में कितनी भी असमानताएं पनप जाएं लोग झूठी शान के लिए मुंह सिले रहते हैं।
पहले (सम्भवतः ज्यादा दिन नहीं हुए होंगे) सत्य, अहिंसा, समानता, कर्मठता, त्याग, बलिदान, स्वाभिमान और अभिमान की बातें जो हमारी प्रेरणा होती थीं वो अब सिर्फ मीटिंगों, सम्मेलनों, भाषणों, गोष्ठियों, संकल्पों, परिकल्पनाओं में ही दिखती हैं। प्रोजेक्टों व वातानुकूलित कमरों के अन्दर चल रहे वाद विवाद में और लाइब्रेरी में सजी किताबों में ये सारी बातें बखूबी आज भी अंगद के पैर की तरह डटी हुई हैं। पन्द्रह अगस्त को इन्हीं भूली बिसरी बातों को झाड़-पोछकर इस्तेमाल किया जाएगा और सोलह अगस्त को फिर से इन्हें अगले साल तक के लिए लालच, स्वार्थ, झूठ, फरेब, हिंसा के लाकरों में सुरक्षित कर लिया जाएगा।
पहले भारत माता ही थी अब गौ माता भी आ गई है। गौ माता की रक्षा मतलब भारत माता की रक्षा। इस रक्षा के चक्कर मे किसी को लट्ठ लगा दो, जान से मार दो क्या फर्क पड़ता है। आखिर में ऐसे ही लोगों को तो इतिहास में जगह मिलेगी। ये सब आधुनिक भगत सिंह, आजाद, विस्मिल हैं।
अच्छा इनमें सरकारों का भी योगदान भरपूर है। सत्ता पक्ष हमेशा ऐसे ही लोगों को पोषित करती है और करे भी क्यों न भाई। आखिर राष्ट्रवाद की पुड़िया में अराजकता का माल भरा हो तो चुनावी फायदा जबर मिलता है। पिछले कुछ सालों से ये भी देखने को मिल ही जाता है कि अतीत में उलझा कर भविष्य चाट जाना अपने आपमें एक अद्भुत कला है और धीरे-धीरे सब इसमें पारंगत भी हो रहे हैं।
अगर स्वतंत्रता दिवस न होता तो हमारे आधुनिक वीर रस के कवि भूखे मर जाते। पाकिस्तान के चार-चार चौरासी टुकड़े तो हमारे फेसबुक मठाधीस लोग करेंगे ही।
हाँ, इतने सालों में कुछ नही बदला तो वो दूरदर्शन पर आने वाली मूवी तिरंगा। शाम में बैठिये जनाब ब्रिगेडियर सूर्यदेव अभी आयेंगे और गैंडास्वामी की मिसाइल का फ्यूज निकालेंगे।
हाँ, इन सबके बीच मैं किसी भी स्वतन्त्रा सेनानी के दर्शन की बात कतई नही करना चाहूँगा, क्योकि क्या पता किसी की भावना आहत हो जाये। यह सिर्फ एक अच्छी सोच का परिचायक है कि हम सब उनके महान आदर्शो को खोजें, चिंतन करे और आत्मसात कर उसे व्यवहार में लाएं। अन्यथा राष्ट्रगान के समय थियेटरों में ऐसे ही बवाल काटे जाएंगे।
आज भी भारत में राष्ट्रवाद नवजात दशा में है। वो भी इसलिए क्योंकि ये आजादी हमे अपने पुरुषार्थ से नहीं, बल्कि राजनीति से मिली है। अगर आप सच में इस दिन के महत्व को समझते हैं तो कुछ मत करिए, बस इतना ही करिए की उनके आदर्शों और विचारों को पढ़िए। उस पर विमर्श करिए। परिवर्तन तब आएगा और यही उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
तो मितरो सोचिए समझिए और स्वतंत्रा दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं।
जय हिंद
वन्दे मातरम।
(नोटः यह लेखक के स्वतंत्र विचार हैं। फोरम 4 का सहमत या असहमत होना कतई जरूरी नहीं है)
बहुत शानदार भाई साब ??
उम्दा…