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विश्वविद्यालयों में दूषित राजनीति, कैसे हो बेहतर भविष्य (छात्र की डायरी)

तस्वीरः गूगल साभार

-साहित्य मौर्या

हाल में संपन्न हुए देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव मीडिया में काफ़ी छाया रहा। इनमें दिल्ली विश्वविद्यालय,उत्तराखंड और जेएनयू छात्र संघ का चुनाव प्रमुख हैं। ऐसा लगा मानो ये छात्र संघ का चुनाव न होकर देश में लोक सभा का चुनाव हो। इन सभी विश्वविद्यालयों के छात्र संघ चुनाव में छात्र सरोकार के मुद्दे से ज्यादा हिंसात्मक विचार ही दिखे। कई जगह मारपीट की घटनाएं भी हुईं।

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव के दौरान शाब्दिक विचारों और आरोप-प्रत्यारोप से परे हट कर जिस प्रकार से जगह-जगह हिंसा और ख़ून-ख़राबे का रूप धारण किया। यह विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्र संगठन समूहों पर एक गंभीर प्रश्न उठाता है। साथ में चुनाव के निष्पक्षिता पर एक गम्भीर प्रश्न छोड़ जाता है क्योंकि कहा जाता है यहीं से राजनीतिक करियर की शुरुआत होती है। यहां वोटर और कार्यकर्ता दोनों ही पढ़े लिखे होते हैं।

छात्र संघ चुनाव में हिंसा

उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के सबसे बड़े पीजी कॉलेज एसएमजेएन के छात्र संघ चुनाव में दो छात्र संघ गुटों के बीच आपसी भिड़ंत के बाद स्थानीय पुलिस को छात्रों के ऊपर लाठीचार्ज करना पड़ा और छात्र संघ चुनाव अनिश्चित काल के लिए स्थगित करना पड़ा।

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) का छात्र संघ चुनाव मीडिया में सुर्ख़ियो का सबसे बड़ा केंद्र रहा। चुनावों के दौरान छात्र संगठनों के नेताओं के भाषण में पूर्ण रूप से देखा गया कि किस तरह छात्र नेता छात्र हित और छात्र सरोकार की बातों पर न रह कर एक राजनीतिक और राष्ट्रवाद के विचारधाराओं पर अग्रसर होने की बात करते हैं। वे अपना वास्तविक मूल मंत्र खोते जा रहें हैं। मतगणना के मध्य में जिस तरह से हिंसा की घटना जेएनयू परिसर से निकल कर सामने आया और विरोध प्रदर्शन हुए, उसको देखते हुए सीआरपीएफ सैनिकों ने पूरे जेएनयू को छावनी में तब्दील कर दिया।

यह सिलसिला इन्ही विश्वविद्यालयों में नहीं चलता बल्कि देश के अधिकत्तर विश्वविद्यालयों में आज ये आम बातें होती जा रही हैं।

शिक्षा होनी चाहिए विश्वविद्यालय की प्राथमिकता

जिस रूप से देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव अपना वास्तविक महत्व को दरकिनार करते हुए दिख रहे हैं और हिंसात्मक रुख अख्तियार कर रही हैं। यह देश के लिए काफी निराशा का विषय है। कहीं न कहीं युवा छात्रों को यह अपनी पढ़ाई से दूर भी करती नजर आ रही है। लिहाज़ा, देश के सभी विश्वविद्यालयों के छात्र संगठनों को छात्रों के बेहतर शिक्षा, माहौल और शैक्षणिक पद्धति पर कार्य करने की आवश्यकता है। विश्वविद्यालयों के सभी छात्र संगठनों को छात्र राजनीतिक अस्मिता और गरिमा को बचाने की ख़ासा ज़रूरत है।

(साहित्य मौर्या, जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पत्रकारिता के छात्र हैं)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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