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अरबिंदो कॉलेज में विश्व हिंदी दिवस पर ‘विश्व पटल पर हिंदी की स्थिति’ पर परिचर्चा

अरबिंदो कॉलेज ने विश्व हिंदी दिवस मनाया, विश्व पटल पर हिंदी की स्थिति विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई

विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में श्री अरबिंदो कॉलेज के हिंदी विभाग द्वारा ‘विश्व पटल पर हिंदी की स्थिति’ विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा में हिंदी की भारत में स्थिति तथा विश्व में उसकी बढ़ रही संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की गई। चर्चा के दौरान यह बात सामने आई कि आज हिंदी बाजार की भाषा बनती जा रही है।

कार्यक्रम से पूर्व छात्रों को बताया गया कि हिंदी के विश्व में प्रचार प्रसार के लिए आज ही के दिन 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। पहली बार 10 जनवरी 1975 में नागपुर में पहला विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किया गया था तब से इस तारीख को विश्व हिंदी दिवस मनाने की परम्परा शुरू हो गई।

परिचर्चा में छात्रों को संबोधित करते हुए हिंदी विभाग के शिक्षक व विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज ‘सुमन’ ने कहा कि हिंदी आज विश्व बाजार की भाषा बनती जा रही है, दुनिया के विभिन्न विश्वविद्यालयों में खासतौर से विश्व शक्ति अमेरिका में लगभग 100 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। उन्होंने बताया कि अब हिंदी भारत से बाहर भी मान्यता प्राप्त कर रही हैं। वह दिन दूर नहीं जब संयुक्त राष्ट्र द्वारा हिंदी को भी संयुक्त राष्ट्र की भाषा मान लिया जायेगा। हिंदी अभी वहां संघर्षरत है जबकि अंग्रेजी चीनी जैसी भाषाएं संयुक्त राष्ट्र की भाषा बन चुकी है।

भारत में आज बड़े पैमाने पर विदेशी छात्र सिर्फ हिंदी सीखने के लिए आ रहे हैं, हिन्दुतान की कंपनियों में विदेशों में काम कर रहे हैं साथ ही भारतीय संस्कृति को समझने और आत्मसात करने के लिए हिंदी को ही वे भारत की राष्ट्रभाषा मानते हैं। अब हिंदी उपेक्षा की शिकार नहीं बल्कि अपने गौरवशाली भविष्य की राह पर है।

प्रो. सुमन ने आगे कहा कि विश्व स्तर पर भारत के बाजार को ले जाना हो तो हिंदी में विदेशी साहित्य का व्यापक पैमाने पर अनुवाद कार्य, फिल्मों की डबिंग, पाठ्यक्रमों में हिंदी को पहुंचाना आदि ऐसे कार्य है जिसके माध्यम से भारतीयता को विदेशों में आसानी से स्थापित किया जा सकता है और भारत में भी इन कार्यो के द्वारा अनेकानेक रोजगार के अवसरों का निर्माण होगा इसलिए आज जरूरत अकादमिक संस्थानों में भाषा स्तर पर तुलनात्मक अध्ययन के विभाग बनाये जाए। आज देश में भाषा को लेकर तुलनात्मक अध्ययन को लेकर एक भी विभाग नहीं है, विदेशी भाषा ही नहीं अपनी देश की तमाम भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन के विभाग बमुश्किल देखने को मिलेंगे। आज भाषाओं के बीच आदान प्रदान होना आवश्यक है, राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए भाषाओं का आपसी मेल-मिलाप अति आवश्यक है।

विदेशी छात्रों को हिंदी पढ़ाने वाले डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने छात्रों को अपने संबोधन में बताया कि उनका मानना है कि यदि भारत का आत्मीय संबंध अन्य देशों के साथ बढ़ाना है तो हिंदी एक मात्र उसकी वाहक हो सकती है और विदेशी लोगों के व्यवहार और उनके तौर तरीकों को समझने के लिए विदेशों में हिंदी का विस्तार बहुत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जो विदेशी विद्यार्थी हिंदी बोलने लगते हैं वो हिंदी ही नहीं बल्कि भारत को दिल से अपना लेते हैं क्योंकि भाषा एक ऐसा माध्यम है जो उस देश की संस्कृति की आत्मा तक पहुंचा देती है और दिल का दिल का रिश्ता तभी स्थापित हो सकता है जब लोग हिंदी भाषा को सीखेंगे और तभी हिंदी को पूर्ण रूप से राष्ट्रभाषा बनने में आसानी होगी।

हिंदी अनुवादक और शिक्षक डॉ. रोशनलाल मीणा ने बताया कि हिंदी के प्रचार प्रसार में हिंदी फिल्मों को श्रेय दिया जा सकता है। आज चीन, पाकिस्तान, श्रीलंका, रूस, अमेरिका, इंग्लैंड व अफ्रीकी देशों ईरान, सऊदी अरब में भारतीय फिल्में अपनी धाक जमा रही है। हिंदी ना सिर्फ भाषा के रूप में विश्व में जानी जाती हैं बल्कि इसके माध्यम से लोग भारतीय संस्कृति, धर्म, रीति रिवाज, लोक व्यवहार को भी समझने का प्रमुख जरिया मानते हैं।

परिचर्चा में हिंदी के छात्रों ने अनेक सवाल-जवाब किए और कहा कि भारत की संस्कृति को यदि सही से जानना है तो हिंदी को जानना जरूरी है। साथ ही हिंदी में रोजगार के अवसरों की चर्चा की गई। कार्यक्रम में डॉ शिवमंगल कुमार, डॉ. सीमा, डॉ. प्रदीप ने अपने विचार रखे और हिंदी को विश्व पटल पर हिंदी की स्थिति को सामने रखा। अंत में सभी का धन्यवाद किया गया।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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