यूजीसी की तरफ से देशभर की तमाम विश्वविद्यालयों को एससी/एसटी/ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को अतिरिक्त कक्षाएं (शिक्षा) देने का प्रावधान है। इसके लिए कॉलेज व विश्वविद्यालय स्तर पर कई तरह की योजनाएं हैं, लेकिन ये योजनाएं सिर्फ सरकारी कागजों में चल रही हैं। ऐसा ही एक उदाहरण डीयू का है जहां यूजीसी ने 2015-16 में चार मामलों में क्रमशः रेमिडियल कोचिंग, सरकारी नौकरियों के लिए एससी, एसटी, ओबीसी छात्रों की तैयारी, नेट कोचिंग के अलावा इक्वल अपॉर्चुनिटी सेल के लिए 38 लाख रुपये 12 वीं योजनाओं के अंतर्गत दिया था, लेकिन इन पैसों का प्रयोग छात्रों के कल्याण के लिए नहीं किया गया।
यूजीसी के पत्र में एफ डी डायरी नम्बर-2638, 28 जुलाई 2015 की अगर बात करें तो डीयू को साल 2015-16 में 12-12 लाख रुपये और सेल के लिए 2 लाख रुपये आवंटित करने का आदेश रजिस्ट्रार को दिया गया था। इन सारी बातों का जिक्र रजिस्ट्रार को लिखे गए यूजीसी के उप सचिव के पत्र द्वारा पता चला है।
यह है मामला
डीयू विद्वत परिषद (एसी) के सदस्य प्रो. हंसराज सुमन ने बताया है कि यूजीसी ने अपने पत्र में डीयू के रजिस्ट्रार को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि इस संदर्भ में यूजीसी की गठित विशेषज्ञों की कमेटी द्वारा की गई अनुशंसा के आधार पर उपरोक्त चार मामलों में धन आवंटित करने का है। उनका कहना है कि धन आवंटित करने के बाद आदेश दिया गया कि आवर्ती योजना के अंतर्गत 2015-16 में इस धन को खर्च किया जाना है, लेकिन डीयू ने आज तक उपरोक्त योजनाओं का लाभ उन वंचित वर्गों के छात्रों तक नहीं पहुंचाया गया है और सरकार तथा यूजीसी के आदेश की अनदेखी की गई।
इन सवालों के मांगे जवाब
प्रो. सुमन ने रजिस्ट्रार से जवाब मांगा है कि यूजीसी द्वारा डीयू में पढ़ने वाले एससी, एसटी ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों के लिए आए 38 लाख रुपयों का क्या हुआ। यदि फंड दिया गया तो वह किस मद में है और उसकी कोचिंग क्लासेज कहां चलाई जा रही है, किस कोचिंग संस्थान के बैंक एकाउंट्स में ये पैसा पहुंचा है, इसकी स्प्ष्ट जानकारी लाभार्थी छात्रों तक पहुंचाएं।
उन्होंने कहा कि भविष्य में जब भी यूजीसी की इन योजनाओं को आरम्भ करे तो इस योजना का समुचित लाभ पहुंचाने के लिए आवश्यक है कि हर क्लास रूम की ऑडियो-वीडियो लेक्चर रिकॉर्ड किया जाएं और छात्रों की उपस्थिति अनिवार्य हो।
उच्च स्तरीय जांच की आवश्यकता, ताकि मिल सके लाभ
प्रो. सुमन का कहना है कि देशभर में एससी, एसटी और ओबीसी के छात्रों के लिए केंद्र सरकार और यूजीसी ने अनेक योजनाएं लागू की हुई है, लेकिन देखने में आया है कि उन योजनाओं का वास्तविक लाभ जो उसके हकदार हैं उन तक नहीं पहुंच पाता है। डीयू में भी पिछले तीन साल से आया हुआ आरक्षित वर्गों के छात्रों का पैसा किस मद में या कहां खर्च हुआ है, यह बताने को तैयार नहीं है। दो बार शैक्षणिक परिषद में उठाने के बाद योजना का क्या हुआ? उन्होंने इसकी उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग डीयू के कुलपति से की है।
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