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विश्व मानवाधिकार दिवस पर विशेष

तस्वीरः गूगल साभार

आइए हम सभी मिलकर बातें करते हैं मानवाधिकार की,

है तो ये बहुत ही साधारण सब बात पर है ना बेकार की

 

सबसे खास अधिकार रोटी, कपड़ा और मकान

साथ ही साथ मिले सबको थोड़ा प्यार और सम्मान

ये सब तो है मौलिक आवश्यताएं जिंदगी की

जिनको हक से हासिल करें दुनिया का हर इक इंसान

 

हँसना-खेलना, घूमना-फिरना स्वतंत्र होकर बोलना

अपने फैसले आप करना जिंदगी में मिठास घोलना

अपने दिल की बातों को ना दबाना सिर्फ अपने ही दिल में

बल्कि अपनों के समक्ष खुलकर अपने दिल के राज खोलना

 

मिले सबको उचित शिक्षा जो दिलाए समाज में सबको सही स्थान

शिक्षित हों सभी ताकि कर पाएं सही गलत का फर्क पाकर सच्चा ज्ञान

है ये बहुत ही जरूरी कि रखें हम ख्याल अपनी इज्जत प्रतिष्ठा का

पर ये भी कि ना तो होने दें और ना हीं करें किसी दूसरे लोगों का अपमान

 

ना तो हम करें किसी पर और ना ही हम बिल्कुल सहें कभी कोई अत्याचार

क्योंकि ऐसा करने से ये देंगे हम सब लोगों की शख्सियत को बिगाड़

यकीन मानो आएगी ना ऐसी स्थिति कभी भी किसी व्यक्ति के लिए

जब होंगे हम सभी लोग अपने तमाम हकों के जानकार

 

खैर, अधिकारों की ये सारी बातें तो हैं बहुत साधारण

पर अब भी इन सब बातों से महरूम है दुनिया के अधिकांश जन

इसलिए इस कविता के माध्यम से सबको संदेश है ये मेरा

ना छीने कोई अधिकार किसी का जिससे ना रहे किसी का भी व्यथित मन

 

-रचनाकार प्रिया सिन्हा हैं जो मूलतः बिहार की रहने वाली हैं

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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