-अंकित कुंवर
जेई न समझे मित्र का मान,
होई दुखदायी कहूँ महान।
सच्चा मित्र सम्मान पाहिजे,
शत्रु विधाता पापित काहिजे।
केहू कहि दुख हरि हमारो,
देखत देखत गुण बौछारो।
अवगुण अस्त व्यस्त रह जावे,
मित्रगुण जब प्रकट हो जावे।
संगत सुधारे मीत हमारे,
राह दिखावे जग सारे।
मीत मीत का रखहूं सम्मान,
कठिन राह हो जावे आसान।
जे मित्र नाहीं दुख सहाई,
कहत कवि शत्रु कहाई।
(प्रस्तुत रचना के रचयिता अंकित कुंवर युवा कवि और लेखक हैं)
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