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त्याग और तपस्या से अब तक किसानों ने क्या पाया?

भारत के लगभग सभी राज्यों से किसान राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में अपनी मांगों को लेकर हाल ही में पहुंचे हुए थे। किसानों की मांग थी कि उनका कर्ज माफ किया जाए,न्यूनतम समर्थन मूल्य और गन्ने का मूल्य समय से दिया जाए। साथ ही स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू कराना भी उनका मकसद रहा। हजारों किसानों का हुजूम रामलीला मैदान से संसद भवन के लिए अपने मांगो के साथ कूच भी किया था।

बहरहाल, वर्तमान संदर्भ में हमारे देश में किसान आधुनिक विष्णु है। वे देशभर को अन्न, फल, साग, सब्जी आदि देते हैं। लेकिन, बदले में उन्हें इसके एवज में पारिश्रमिक तक नहीं मिल पा रहा है। प्राचीन काल से लेकर अब तक किसान का जीवन अभावों में ही गुजरा है। अशिक्षा, अंधविश्वास तथा समाज में व्याप्त कुरीतियां उसके साथी हैं। सरकारी कर्मचारी, बड़े जमींदार, बिचौलिया तथा व्यापारी उनके दुश्मन हैं, जो जीवन भर उसका शोषण करते रहते हैं।

अब जबकि वैज्ञानिक युग में वे कृषि को वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार व्यावहारिक रूप से अपनाने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं। ऐसे में सरकारी नीतियां और योजनाएं उनके लिए लाभकारी होते हुए भी प्रभावी सिद्ध नहीं होती हैं। वर्तमान व्यवस्था भी कम दोषपूर्ण नहीं है, जिसमें भ्रष्टाचार का बोलबाला है। बिचौलिये और दलाल उसे कहीं का नहीं छोड़ते। सामाजिक रूढ़ियां एवं उनकी स्वयं की संकीर्ण विचारधारा भी उनके सुविधासम्पन्न जीवन के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। वे कृषि के नये-नये वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं।

शिक्षा एवं गरीबी के कारण उसका स्वास्थ्य भी प्रभावित हो जाता है, जिसकी वजह से उसकी कार्यक्षमता भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहती। ऋणग्रस्तता ने उन्हें गरीबी के मुंह में धकेल दिया है। जमींदारों के कर्ज के बोझ तले दबा हुआ उसका जीवन कभी अकाल, तो कभी महामारी तो कभी बाढ़ या सूखे की चपेट में आ जाता है। ऐसी स्थिति में उन्हें असमय ही मृत्यु वरण करने को विवश होना पड़ता है। कई बार तो उन्हें सपरिवार सामूहिक रूप में भीषण गरीबी से जूझते हुए आत्महत्या भी करनी पड़ जाती है।

एक कृषक राष्ट्र की आत्मा होता है। हमारे दिवंगत राष्ट्रपति श्री लाल बहादुर शास्त्री ने नारा दिया था ‘जय किसान जय जवान’। उन्होंने कहा था कि कृषक राष्ट्र का अन्नदाता है। उसी पर कृषि उत्पादन निर्भर करता है। उन्हें कृषि के सभी आधुनिकतम यंत्र एव उपयोगी रसायन और आर्थिक जटिलताओं को उपलब्ध कराने चाहिए ताकि वह आत्महत्या जैसे पथ से लौट सकेत्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान। वह जीवन भर मिट्‌टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है। तपती धूप, कड़ाके की ठंड तथा मूसलाधार बारिश भी उसकी इस साधना को तोड़ नहीं पाती। हमारे देश की लगभग 70 फीसद आबादी आज भी गांवों में निवास करती है, जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। एक कहावत है कि भारत की आत्मा किसान है।

क्या किसानों की अनदेखी कर रही है मोदी सरकार?

लेकिन मौजूदा समय में जिस तेज़ी से हज़ारों,सैकड़ों किसान हर रोज़ देश के अलग-अलग राज्यों और राजधानी में अपना रोष रैलियों और सभाओं के माध्यम से प्रकट कर रहे हैं वो पूरे देश के लिए विशेष विचारयुक्त मुद्दा है। राज्य सरकारें और केंद्र सरकार को ख़ासा ध्यान देने की ज़रूरत है जो वादे सरकार ने किसान के प्रति किया है उसे पूर्ण करने की ज़रूरत है। सरकार के साथ साथ विपक्ष भी चुनावी भाषण में हज़ारों वादे तो कर देते हैं, लेकिन उस का निदान कोइ नहीं करता। अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए किसानों को सिर्फ़ चुनावी मुद्दों तक ही सीमित रख देते हैं। लिहाज़ा,सरकार को किसानों के प्रति अपनी प्रतिबंधिता का रूख नरम करना चाहिए और उनके मांगों को लेकर सरकार को कार्य करना चाहिए।

(यह लेखक साहित्य मौर्य के निजी विचार हैं। वह जामिया मिल्लिया इसलामिया में पत्रकारिता के छात्र हैं)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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