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कर्नाटकः क्या है कांग्रेस-जदएस गठबंधन का भविष्य

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ललित मोहन बेलवाल

भारतीय राजनीति का इतिहास गठबंधन सरकारों से भरा पड़ा है। केंद्र से लेकर राज्यों तक गठजोड़ से बनी हुकूमतों की भूमिका अहम रही है। हालांकि, यहां यह गौर करना जरूरी है कि राजनीतिक समझौता करके बनी सरकारें न तो हमेशा सफल रही हैं और न ही हमेशा विफल। यह प्रयोग कभी औंधे मुंह गिरा है तो कभी तमाम अड़चनों को पार पाकर अपने अंजाम तक पहुंचा है। हाल ही में संपन्न हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। भाजपा ने 104 सीटों पर जीत का परचम लहराया तो कांग्रेस 78 और जनता दल (सेक्युलर) 37 सीटों पर सिमट कर रह गई। त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में उठापटक होनी तय थी। तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा सकी, जिस कारण महज 55 घंटों में बीएस येदियुरप्पा ने शक्ति परीक्षण से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। अब 23 मई को कांग्रेस-जदएस गठजोड़ के नेता एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। साथ ही उनका दावा है कि वह शपथ लेने के 24 घंटे के अंदर बहुमत साबित कर देंगे। उधर, सियासी हलकों में गठबंधन के भविष्य पर तमाम कयास लगाए जा रहे हैं तो जनता भी जानना चाहती है कि यह गठबंधन कब तक चलेगा?

कुमारस्वामी पहले भी कांग्रेस को दे चुके हैं झटका

इतिहास के पन्ने पलटकर देखें तो वर्ष 2004 के विधानसभा चुनावों में भी कर्नाटक में कोई भी पार्टी बहुमत का जादुई आंकड़ा नहीं छू पाई थी। तब भाजपा 79 सीटों की बदौलत सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन सरकार कांग्रेस (65 सीटें) और जदएस (58 सीटें) ने मिलकर बनाई थी। मगर, यह गठबंधन 21 महीने ही चल सका। एचडी कुमारस्वामी ने फरवरी 2006 में मुख्यमंत्री एन धरम सिंह की सरकार को झटका देते हुए कांग्रेस से समर्थन वापस ले लिया और भाजपा की मदद से वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो गए।

गठबंधन को लेकर नाखुश हैं कांग्रेस के कार्यकर्ता

मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक, गठजोड़ को लेकर जमीन पर तस्वीर अलग नजर आ रही है। कांग्रेस-जदएस के बीच सियासी दरारें कितनी गहरी हैं, इसका अंदाजा इस गठबंधन के मुख्य सूत्रधारों में से एक कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार के एक बयान से लगाया जा सकता है। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस अखबार से कहा है कि वह जदएस के मुखर विरोधी हैं, फिर भी उन्हें इस कड़वाहट को निगलना पड़ा, क्योंकि सभी विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। वहीं, द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तमाम कांग्रेसी कार्यकर्ता इस मिलन से नाखुश हैं। श्रीरंगपट्टनम् के टाडागवड़ी गांव में तो कांग्रेस और जदएस कार्यकर्ताओं के बीच तीन बार झड़पें हो चुकी हैं, जिन्हें सुलझाने के लिए आला दर्जे के नेताओं को बीच में आना पड़ा। ऐसी ही स्थिति मांड्या जिले में भी है।

ऑपरेशन कमल II की आशंका

वर्ष 2008 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा सकी थी। हालांकि, 110 सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा ने निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बना ली थी, मगर येदियुरप्पा अपनी सरकार को लेकर आश्वस्त होना चाहते थे। यही कारण है कि भाजपा ने कांग्रेस और जदएस के खेमे में सेंध लगाई। नतीजतन, चार जदएस और तीन कांग्रेस के विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उपचुनावों में सातों भाजपा के टिकट पर चुनावी वैतरणी में उतरे, लेकिन पांच ही पार कर सके। मगर, इससे भाजपा अकेले दम पर बहुमत में आ गई। इस प्रकरण में भाजपा ने यह बाजीगरी की कि उसने सातों विधायकों को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिलवाया, इसके बाद अपने टिकट पर चुनाव लड़वाया। यदि ये सीधे भाजपा के पाले में चले जाते तो एंटी डिफेक्शन एक्ट 1985 के तहत अयोग्य हो जाते। इसे ही ऑपरेशन कमल कहा गया। माना जा रहा है कि यदि भाजपा को आगे मौका मिला तो वह इस बार भी अपनी सरकार बनाने के लिए ऑपरेशन कमल II करने से नहीं चूकेगी। इस पर प्रोफेसर पीसी सिंह कहते हैं, ‘जो लोकतंत्र में बहुमत साबित करता है, अंततः सरकार वही बनाता है और अभी कांग्रेस-जदएस के पास बहुमत है। हालांकि, चुनावी नतीजे स्पष्ट तौर पर भाजपा के पक्ष में थे, मगर उसके पास पर्याप्त संख्या बल नहीं था। जहां तक गठबंधन के भविष्य की बात है तो इसकी कोई गारंटी नहीं है कि यह सफल होगा या विफल होगा। मसलन, अटल बिहारी वाजपेयी ने गठबंधन की बदौलत अपना प्रधानमंत्रित्व काल पूरा किया तो वीपी सिंह, चंद्रशेखर सरीखे असफल रहे। हां, अगर भाजपा को अवसर मिला तो वह ऑपरेशन कमल II की मदद से सरकार बनाने की कोशिश जरूर करेगी।’

 

क्या अगले नीतीश कुमार होंगे एचडी कुमारस्वामी?

इस सवाल पर प्रोफेसर पीसी सिंह का मानना है कि इसे खारिज नहीं किया जा सकता है। जिस तरह बिहार में भाजपा ने जदयू-राजद के गठबंधन में खाई पैदा कर नीतीश कुमार को अपने पाले में किया, हो सकता है कुमारस्वामी भी बाद में पलट जाएं। इसके लिए तो इंतजार करना होगा। बकौल पीसी सिंह, ‘यदि शक्ति परीक्षण के दौरान वीडियोग्राफी नहीं होती और सीक्रेट बैलेट पर वोट दिया जाता तो बीएस येदियुरप्पा को इस्तीफा देने की नौबत नहीं आती। भाजपा किसी तरह बहुमत का जुगाड़ कर लेती। ऐसा नहीं है कि यह सब भाजपा ही कर रही है बल्कि आज जो भाजपा कर रही है, वह कांग्रेस पहले ही कर चुकी है।’

वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव तय करेगा आगे की दिशा

अभी तय होना है कि किस दल को कितने मंत्रालय मिलेंगे? इसके अलावा देखना होगा कि दोनों दल सरकार चलाने के लिए कॉमन मिनिमम प्लान की शरण में जाते हैं या नहीं। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण आगामी लोकसभा चुनावों में कर्नाटक में कांग्रेस और जदएस का प्रदर्शन होगा, जो गठबंधन का भविष्य तय करेगा। यदि लोकसभा चुनावों में जदएस की तुलना में कांग्रेस बेहतर करती है तो जाहिर तौर पर वह सरकार में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहेगी। ऐसे में हो सकता है दोनों दलों के बीच मतभेद उत्पन्न हों, जो गठबंधन की सेहत के लिए नुकसानदेह होगा।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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