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कुछ तुझमें हूं मैं, कुछ मुझमें है तूः भारत-पाक

तस्वीरः गूगल साभार

भारत-पाकिस्तान की सरहदें भले ही बंटती हों, लेकिन दोनों मुल्कों में कुछ ऐसी मूक निशानियां है जो आज भी सीमाओं और अपने-पराये के भेद को तोड़ कर कुछ अपना सा बयां करती हैं। इतिहास के आइने से झाकते कुछ नाम आज भी उसी ख़ामोशी से तुझमें भी मैं हूंका संदेश देते हैं।

ये हिंदुस्तान का गुजरात वो पाकिस्तान का गुजरात, ये हमारा हैदराबाद तो वो उनका हैदराबाद…। सरहद के उस पार लाहौर में भी दिल्ली की महक बिखेरता दिल्ली गेट मिलेगा, तो भारत के पटियाला में लाहौरी गेट से आज भी उस देश की खुशबू आती है। भारत में कराची हलवे के शौक़ीन हर नुक्कड़ पर मिल जाएंगे, तो पाकिस्तान में भी बंगाली समोसेके मुरीद कम नहीं हैं।

विभाजन के बाद दशकों से चलाई आ रही अशांति के बीच ये कुछ नाम आज भी ऐसे जिद से खड़े हैं, मानों शत्रुता से भरे माहौल में भी एकता और अखंडता का सन्देश देते हुए कहते हों कि दोनों पड़ोसी मुल्क न सिर्फ सीमाएं सांझा करते हों बल्कि सदियों पुरानी सांस्कृतिक विरासत भी एक दूसरे में बांटते हैं।

भारत और पाकिस्तान का अतीत साझा, लेकिन वर्तमान बंटा हुआ है। यह भी सच है कि भारत-पाकिस्तान का नाम आज सिर्फ आपसी मनमुटाव के बारे में लिया जाता है। लेकिन दोनों मुल्कों में करीब सात दशक बाद आज भी आपसी एकता की नई निशानियां मौजूद हैं। फिर चाहे वो गलियां, दुकानें, स्मारक, खाने-पीने की चीजें हों या और भी बहुत कुछ, इनका जिक्र दोनों देशों के इतिहासकार करते हैं।

मगर पुलवामा हमले के बाद तनाव बढ़ने से यह विरासत भी बढ़ते तनाव के साये में है। 14 फ़रवरी के आतंकवादी हमले की घटना के बाद अमदाबाद और बंगलुरु में कराची बेकरीलोगों के कोप का शिकार बनी। कुछ लोगों ने अपने साइनबोर्ड से कराचीनाम ढकने की हिदायत दी क्योंकि बेकरी के नाम के साथ कराची शहर का नाम जुड़ा है। इसके बाद उन्होंने अपने भारतीयता के प्रर्दशन के लिए एक पोस्टर के साथ तिरंगा भी लगाया, जिसमें लिखा था कि इस ब्रैंड की स्थापना विभाजन के बाद भारत आए खानचंद रामनानी ने 1953 में की थी और वह दिल से पूर्ण भारतीय हैं

हाल में प्रकाशित किताब द पार्टीशन ऑफ इंडियाके संपादक अमित रंजन ने बताया, भारत में भी गुजरात (राज्य) है, तो पाकिस्तान के पंजाब में एक जिले को गुजरात कहते हैं। सिंध में एक शहर हैदराबाद है, तो हमारे यहाँ भी हैदराबाद है। यहां तक की बाजवा, सेठी, राठौर और चौधरी आदि जैसे उपनाम भी दोनों देशी में इस्तेमाल किए जाते हैं। हम लोग भूगोल नहीं बदल सकते और ना ही अपने इतिहास को मिटा सकते हैं।’

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

साहित्य मौर्या
लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पत्रकारिता के छात्र हैं।

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