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लोकसभा चुनाव-2019: भारत में बेरोजगारी के आंकड़ों का पर्दाफाश, चौकिएगा नहीं

तस्वीरः गूगल साभार

साल 2011-12 से लेकर साल 2017-18 के बीच देश के ग्रामीण इलाकों में 4.3 करोड़ नौकरियां कम हुईं। इसी अवधि में शहरी इलाकों में 0.4 करोड़ नौकरियां कम हुईं।

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की रिपोर्ट के अनुसार 1993-94 के बाद देश में पहली बार 2017-18 में पुरुष कामगारों की संख्या में गिरावट आई है। साथ ही 2011-12 की तुलना में रोज़गार अवसर बहुत कम हुए हैं। यह वही रिपोर्ट है, जिसे केंद्र सरकार ने हाल ही में जारी होने से रोक दिया था।

जब बीजेपी सरकार ने साल 2014 में सत्ता संभाली थी तो भारत में रोज़गार पैदा करना सरकार की योजनाओं का मुख्य हिस्सा था

लेकिन ऐसा करने में वह सफल रही या नहीं, यह पूरी रिपोर्ट देखिए-

इंडियन एक्सप्रेस की इस रिपोर्ट में एनएसएसओ की ओर से साल 2017-2018 में किए गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के हवाले से बताया गया है कि देश में पुरुष कामगारों की संख्या तेजी से घट रही है। पिछले पांच सालों की तुलना में 2017-18 में देश में रोजगार के अवसर बहुत कम हुए हैं।

2017-18 में पुरुष कामगारों की संख्या में 28.6 करोड़ थी, जो कि 2011-12, जब एनएसएसओ द्वारा पिछले सर्वे किया गया था, में 30.4 करोड़ थी। उससे पहले साल 1993-94 में यह संख्या 21.9 करोड़ थी।

काम न मिलने की दर में गिरावट को देखें तो शहरी क्षेत्रों के मुकाबले यह गिरावट ग्रामीण इलाकों में ज्यादा है। शहरी क्षेत्र में पुरुषों को काम न मिलने की दर में 4.7 फीसद की गिरावट आयी, वहीं ग्रामीण इलाकों में यह 6.4 फीसद रही।

एनएसएसओ की जारी हुई रिपोर्ट के मुताबिक शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में पुरुषों की बेरोजगारी दर क्रमशः 7.1 फीसद और 5.8 फीसद है।

 आंकड़े- इंडियन एक्सप्रेस साभार

रिपोर्ट पर रोक लगाने के सरकार के  फैसले का विरोध करते हुए एनएसएसओ के कार्यकारी अध्यक्ष पीसी मोहन और सदस्य जेवी मीनाक्षी ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था।

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ये साफ है कि देश में नौकरियां घटी हैं और रोजगार के अवसर कम हुए हैं।

एनएसएसओ के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2011-12 से लेकर साल 2017-18 के बीच देश के ग्रामीण इलाकों में 4.3 करोड़ नौकरियां (30.9 करोड़ 2011-12 से 26.6 करोड़ 2017-18) कम हुईं। इसी अवधि में शहरी इलाकों में 0.4 करोड़ नौकरियां (11.1 करोड़ 2011-12 से 10.7 करोड़ 2017-18) कम हुईं।

                                                                  आंकड़े- इंडियन एक्सप्रेस साभार

रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण इलाकों में महिला रोजगार में 68 फीसद की कमी आई है, वहीं शहरों में पुरुष कामगारों को रोजगार में 96 फीसद की कमी आई है। साल 2011-12 से अब तक देश में कुल 4.7 करोड़ रोजगार कम हुए हैं, जो सऊदी अरब की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुष कर्मियों की संख्या में गिरावट पहली बार 1993-94 में ही देखने को मिली थी। तब ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में इनकी संख्या 6.4 फीसदी और 4.7 प्रतिशत की कमी आई थी। उसके बाद 1999-2000, 2004-05 और 2011-12 की रिपोर्टों में यह बढ़ी थी। लेकिन अब यह संख्या फिर एक बार घटी है।

पीएलएफएस की रिपोर्ट के मुताबिक, औपचारिक व्यावसायिक/तकनीकी प्रशिक्षण लेने वाले (15-59 उम्र) के कामकाजी कामगारों की संख्या में 2011-12 में 2.2 फीसदी की तुलना में 2017-18 में दो फीसदी हो गई है। वहीं, (15-29) आयुवर्ग के कामगारों में 0.1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

भारत में नौकरियों को प्रभावित करने वाले कारक

2016 में, भारत में भ्रष्टाचार और अवैध नग़दी पर रोक के लिए 500 और 1000 रुपये के नोटों पर प्रतिबंध लगाया गया था। इस प्रक्रिया को विमुद्रीकरण/नोटबंदी कहते हैं। बीबीसी की खबर के मुताबिक नोटबंदी के कारण कम से कम 35 करोड़ नौकरियां गई हैं और इससे श्रम बल में युवाओं की भागीदारी पर असर पड़ा है।

‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों के माध्यम से देश चीन और ताइवान जैसे विनिर्माण केंद्रों का अनुकरण करने की कोशिश कर रहा है ताकि महंगे आयात में कमी आए, तकनीकी आधार विकसित हो और नौकरियां पैदा हों। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि ढांचागत बाधाएं, जटिल श्रम क़ानून और नौकरशाही ने प्रगति के रास्ते को रोक दिया है।

भारत में बढ़ता मशीनीकरण एक अन्य कारण है जिसकी वजह से नौकरियों की संख्या में कमी आ रही है। क्योंकि कंपनियां भारत में विस्तार करने के लिए कर्मचारी रखने की बजाए मशीनों के इस्तेमाल को प्राथमिकता देती है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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