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विश्वविद्यालयों से आरक्षित वर्गों की सीटें गायब, शिक्षकों में दहशत

देश भर के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती यूजीसी की आरक्षण विरोधी जारी सर्कुलर के अनुसार होने से शिक्षक वर्ग काफी चिंतिंत है। शिक्षक संघ पूरी तरह इसका विरोध कर रहा है, क्योंकि इससे आरक्षण का लाभ शिक्षकों को नहीं मिल पा रहा है। तमाम विश्वविद्यालयों में भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण वर्ग में सीटों को खत्म कर दिए जाने से शिक्षकों के बीच दहशत का माहौल पैदा हो गया हैं।

गौरतलब हो कि यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों के लिए 5 मार्च को सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कहा गया कि “उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की भर्ती में एससी, एसटी व ओबीसी आरक्षण का आधार कुल सीट नहीं, बल्कि डिपार्टमेंट में खाली सीट होना चाहिए”। खाली पदों पर भर्ती का आधार डिपार्टमेंट होने से आरक्षित सीटों की संख्या में लगातार कमी हो रही है। पहले केंद्र, राज्य और उच्च शिक्षण संस्थानों में कुल खाली सीटों के आधार पर एससी के 15 फीसदी, एसटी के 7.5 फीसदी और ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण के तहत नौकरी दी जाती थी, लेकिन यूजीसी के नए नियम से डिपार्टमेंट में कुल स्वीकृत पदों के आधार पर आरक्षण दिया जाएगा।

ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी एंड कॉलेजिज एससी, एसटी, ओबीसी टीचर्स एसोसिएशन के नेशनल चेयरमैन व दिल्ली विश्वविद्यालय विद्वत परिषद सदस्य प्रो. हंसराज सुमन ने फोरम4 से विशेष बातचीत में बताया कि हाल ही में कुछ विश्वविद्यालयों ने सहायक प्रोफेसरों के पदों के विज्ञापन निकाले जहां आरक्षण के हिसाब से जो पद बनते थे, उन्हें सामान्य वर्ग में बदल दिया गया। इससे अब आरक्षित वर्गों को सामाजिक न्याय न मिलने का खतरा बन गया है।

इन-इन विश्वविद्यालयों में आरक्षित वर्गों की सीटें न के बराबर

विश्वविद्यालय विज्ञापित पद सामान्य एससी एसटी ओबीसी पीडब्ल्यूडी
अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल 18 (सहायक प्रोफेसर)   0

 

0

 

0

 

 
तमिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय, तमिलनाडु

 

प्रोफेसर-13 (13पदों को ही सामान्य कर दिया)

एसोसिएट प्रोफेसर- 30 (30 पदों को ही सामान्य कर दिया)

सहायक प्रोफेसर- 22

18 0

 

0

 

02

 

02
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय केंद्रीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक 52 51 0 0 01  
हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय कांट्रेक्चुअल आधार पर पद 80 0 0 0  
राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, जयपुर 33 33 0 0 0  
काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी 99 79 07 0 13  
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी 60 52 03 0 05  
इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, इलाहबाद 163 126 07 0 30  
सीएसजेएम विश्वविद्यालय, कानपूर 15 15 0 0 0  
झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय 63 58 01 0 04  
पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय, पंजाब 58 51 0 0 02 05

 

एसटी, एससी, ओबीसी के पदों को इस तरह किया जा रहा समाप्त

इन सभी विश्वविद्यालयों में 706 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। यदि भारत सरकार के आरक्षण नीति के हिसाब से देखा जाए तो इनमें 353 पदों पर एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के उम्मीदवारों से पदों को भरा जाना चाहिए लेकिन, केवल एससी के 18 और ओबीसी कोटे के 57 पद ही हैं। जबकि एसटी का एक भी उम्मीदवार की भर्ती नहीं हुई।

मानव संसाधन मंत्री के आश्वासन के बाद भी विश्वविद्यालय कर रहे मनमानी

41 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 5997 पद रिक्त हैं। फीसद के आधार पर 35 फीसद शिक्षकों के पद खाली थे (1 अप्रैल 2017 तक के सरकारी आंकड़ों के अनुसार)।

मानव संसाधन मंत्री ने शिक्षक संघ के सदस्यों को यह आश्वासन दिया था कि रिक्त पदों पर भर्ती के लिए विभागवार रोस्टर नहीं बनाए जाएंगे लेकिन, इस आश्वासन के बावजूद झारखंड, पंजाब के अलावा 6 विश्वविद्यालयों के विज्ञापन में विभागवार रोस्टर के आधार पर पद निकाले गए।

विश्वविद्यालय प्रशासन ने अभी तक कॉलेजों को विभागवार रोस्टर बनाने संबंधी कोई नियम/पत्र नहीं भेजा है साथ ही, रोस्टर बनाने के आधार के संबंध में कोई नीति नहीं बनाई। कॉलेजों ने अपनी मर्जी से रोस्टर बनाना शुरू कर दिया, इससे अफरा तफरी का माहौल पैदा हो गया है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

1 Comment on "विश्वविद्यालयों से आरक्षित वर्गों की सीटें गायब, शिक्षकों में दहशत"

  1. Dr.L.N.Mahawer | November 7, 2018 at 5:53 AM | Reply

    Such kind of process will wipe out the representation of SC ST & OBC from SU and Deemed University in India.It is violation of constitutional provisions.

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