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आतंकी हमले को लेकर प्रधानमंत्री के नाम एक खुला पत्र

तस्वीरः गूगल साभार

आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी,

16वीं लोकसभा के लिए चुनाव से ठीक 5 दिन पहले यानी 2 अप्रैल 2014 को आपने एक रैली में आतंकी हमलों में सैनिकों के शहीद होने और दिल्ली में बैठी सरकार के बारे में कहा था, “युद्ध से ज्यादा आतंकी हमलों में जवान मारे गए। पाकिस्तान ने हमारे सैनिकों के सिर काटे। इधर, दिल्ली में बैठी सरकार पाकिस्तानी पीएम को चिकन बिरयानी खिला रही है। जो सरकार अपने जवानों की रक्षा नहीं कर सकती है, ऐसी सरकार की कोई जरूरत नहीं है।”
प्रधानमंत्री जी आज यही बात खुद आप पर लागू होती दिख रही है। अवंतीपोरा में हुए फिदायीन हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए। कई घायल हैं और उनकी हालत गंभीर बनी हुई है। उनके परिवार के साथ-साथ पूरा देश गमगीन है। गुस्से में है। कोई पाकिस्तान से बदला लेने के लिए कह रहा है तो कोई इसे युद्ध का आगाज मान रहा है। इसके इतर, मेरे मन में कई सवाल कौंध रहे हैं। मैं इनका जवाब जानना चाहता हूं। शायद पूरा देश इन प्रश्नों के उत्तर जानने को बेताब है। आखिर कैसे इतना बड़ा आत्मघाती हमला हो गया? क्या यह सरकार की सुरक्षा व्यवस्था की विफलता नहीं है? क्या इंटेलिजेंस एजेंसियों को इसकी भनक तक नहीं लगी या उनके चेताए जाने के बाद भी लापरवाही बरती गई? जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर ही वर्ष 2017 में अमरनाथ यात्रियों पर हमला हुआ था। यहां चेकपॉइंट्स पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी। ऐसे में यहां तैनात सुरक्षाकर्मियों को आतंकी कैसे चकमा दे गया? खबरों के मुताबिक, आतंकी की कार में 350 किलो आईईडी भरा था। इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक कहां से जुटाया गया? यदि इसे कश्मीर में ही तैयार किया गया था तो लोकल इंटेलिजेंस को इसकी खबर क्यों नहीं लगी? अगर जैश-ए-मोहम्मद ने इसे पाकिस्तान से भिजवाया तो यह सीमा सुरक्षा में और बड़ी सेंध है।
प्रधानमंत्री जी एनडीए 1 में अटल जी ने कश्मीर में जम्हूरियत, इंसानियत और कश्मीरियत का नारा दिया था, जिसका वहां के लोगों खासकर युवाओं पर सकारात्मक असर पड़ा था। जब आप तख्तनशीं हुए तो उम्मीद थी कि आप अटल जी के नक्शेकदम पर चलते हुए इस संवाद को एक कदम आगे ले जाएंगे, मगर आपके कार्यकाल में तो कश्मीर जलने लगा। 1989-90 के बाद अगर सबसे ज्यादा कश्मीर में उथल-पुथल रही तो वर्ष 2016 के अंत में। तब 132 दिन कश्मीर बंद रहा था। बातचीत को नजरअंदाज करना इतना भारी पड़ा कि 2017 में 126 और 2018 में 191 कश्मीरी युवाओं ने आतंक का रास्ता चुना। अवंतीपोरा में आत्मघाती हमला करने वाला आतंकी आदिल अहमद डार भी 2018 में ही जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा था। बताया जा रहा है कि एक ऑपरेशन में 31 मई को उसका घर जला दिया गया था, उसमें वह बच निकला था। यदि आपने 5 वर्षों में इन युवाओं से बातचीत की होती। कश्मीर की स्वायत्तता पर हमले नहीं होने दिए होते, पीडीपी के साथ गठबंधन तोड़कर राज्य में अस्थिरता नहीं लाई होती तो ये युवा भटकते नहीं। क्या आपको नहीं लगता आप कश्मीर और वहां के युवाओं को समझने में फेल हो गए? आपकी कश्मीर नीति बुरी तरह फ्लॉप हो गई? सीमा सुरक्षा में नाकाम हो गए?
प्रधानमंत्री जी अवंतीपोरा में हुआ हमला इतिहास में दर्ज हो गया है। यह याद रखा जाएगा कि इस दिन इतनी बड़ी संख्या में हमारे जवान शहीद हुए। इसके साथ ही सुरक्षा में हुई इतनी बड़ी चूक की जवाबदेही भी पूछी जाएगी। क्या आपको नहीं लगता इतनी बड़े हमले की जिम्मेदारी आपकी सरकार को लेनी चाहिए? आपकी सरकार में गृह मंत्री को तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए? जनता और शहीद जवानों के परिजन इसके इंतजार में हैं कि आतंकी हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया जाए और सुरक्षा में हुई चूक की जिम्मेदारी ली जाए।

(लेखक ललित मोहन बेलवाल हैं। इसमें लिखी बातों से फोरम4 का सहमत होना कतई जरूरी नहीं है। यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक की सहमति से यह लेख उनके फेसबुक पोस्ट से ली गई है।) 

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

ललित मोहन बेलवाल
ळेखक पत्रकार हैं।

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