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डीयूः हिंदू कॉलेज में प्राचार्य पद के लिए 25 अगस्त को साक्षात्कार, यूजीसी नियमों की सरेआम अवेहलना  

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) से सम्बद्ध कॉलेजों में स्थायी प्राचार्यों की नियुक्ति करने संबंधी स्क्रीनिंग का काम होने के बाद इस कड़ी में हिन्दू कॉलेज में  25 अगस्त को प्राचार्यों के साक्षात्कार की तिथि निश्चित कर दी गई है। बावजूद इसके, कुछ उम्मीदवारों के अंकों को नहीं दर्शाया गया है। उनका कहना है कि कॉलेज ने स्क्रीनिंग में पारदर्शिता को नहीं अपनाया, जिससे वहां के शिक्षकों में इसको लेकर काफी रोष व्याप्त है। वे 25 अगस्त को होने जा रहे साक्षात्कार को रद करने की मांग कर रहे हैं।

यूजीसी द्वारा विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में शिक्षकों और अन्य शैक्षिक संस्थानों में कर्मचारियों की नियुक्ति हेतु न्यूनतम अर्हताएं तय की गई हैं। उच्चतर शिक्षा में मानकों के रखरखाव के अन्य उपाय संबंधी विनियमन 2018 (जो 18 जुलाई 2018 को जारी की गई) के अंतर्गत कॉलेजों में होने वाली प्राचार्यों की नियुक्तियों में यूजीसी के नियमों को स्वीकार करते हुए पदों को नये मानकों के तहत भरा जाना है। जबकि इन नियमों को ताक पर रख हिंदू कॉलेज पुराने मानकों के आधार पर साक्षात्कार कराने जा रहा है।

दिल्ली विश्वविद्यालय विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज सुमन ने बताया है कि यूजीसी की कॉलेजों में प्राचार्यों की स्थायी नियुक्ति के लिए 18 जुलाई 2018 की अधिसूचना के अनुसार प्रत्येक उम्मीदवार को 110 रिसर्च स्कोर होना अनिवार्य है। कॉलेज लगभग 9 माह पुराने विज्ञापन के अनुसार प्राचार्य पद के लिए साक्षात्कार कराने जा रहा है, जिसमें योग्य उम्मीदवारों की संख्या 12 है। उनका कहना है कि नई अधिसूचना के तहत देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में कार्यरत योग्य उम्मीदवार जो नई अधिसूचना के तहत योग्य हुए हैं उन्हें  “प्रिंसिपल ऑफ़ नेचुरल जस्टिस” के तहत अवसर नहीं दिया जा रहा है।

यूजीसी के नये नियमों और यूजीसी द्वारा जारी अधिसूचना की दिल्ली विश्वविद्यालयों के कॉलेजों की ओर से की जा रही इस अवेहलना को लेकर प्रो हंसराज सुमन ने यूजीसी और एमएचआरडी को पत्र भी लिखा है।

प्रो. सुमन ने बताया है कि डीयू में तीन साल पूर्व एससी, एसटी के कल्याणार्थ संसदीय समिति बनी, जिसने प्राचार्य पदों में आरक्षण और रोस्टर की बात की थी। साथ इन पदों में आरक्षण देने के लिए डीयू को एक रोस्टर रजिस्टर बनाने के लिए कहा था। लेकिन, आज तक न ही प्राचार्य पदों का रोस्टर ही बना और न ही आरक्षण दिया गया।

यूजीसी के नये नियमों के अनुसार कॉलेज विज्ञापन निकाले

प्रो. सुमन ने प्राचार्यों की नियुक्तियों में पूर्णतया पारदर्शिता लाने के लिए डीयू के कुलपति प्रो. योगेश कुमार त्यागी से मांग की है कि कॉलेज प्राचार्य पदों की नियुक्ति के लिए नये नियमों के अनुसार (यूजीसी विनियमन-2018 जो कि 18 जुलाई से प्रभावित है) विज्ञापन फिर से दे। साथ ही उनका यह भी कहना कि कॉलेज द्वारा जारी स्क्रीनिंग मार्क्स की सूची को विश्वविद्यालय भेजा जाए और विश्वविद्यालय अपनी वेबसाइट पर योग्य उम्मीदवारों की स्वयं घोषणा करें ताकि, पारदर्शिता बनी रहे।

इन कॉलेजों में होना है साक्षात्कार

अभी भी एक दर्जन से अधिक कॉलेजों में प्राचार्य पद पर साक्षात्कार होना है। इनमें हिंदू कॉलेज, मोतीलाल नेहरू कॉलेज, मोतीलाल नेहरू कॉलेज(सांध्य), सत्यवती कॉलेज, सत्यवती कॉलेज (सांध्य), श्री अरबिंदो कॉलेज, श्री अरबिंदो कॉलेज (सांध्य),  भारती कॉलेज, श्यामप्रसाद मुखर्जी कॉलेज, विवेकानंद कॉलेज, भगत सिंह कॉलेज (सांध्य), स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज, राजधानी कॉलेज  के अलावा कुछ अन्य कॉलेज शामिल हैं। इन सभी कॉलेजों ने अपने विज्ञापन पहले ही दिए हुए हैं और इनकी स्क्रीनिंग भी हो चुकी है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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पागल हो चुका विकास लोकतंत्र से भीड़तंत्र की तरफ भाग रहा है

तस्वीर गूगल साभार

देश के अधिकतर बेरोजगार युवा उन्मादी भीड़ में तब्दील हो चुके हैं या फिर कतार में हैं। वहीं, पागल हो चुका विकास अब लोकतंत्र से भीड़तंत्र की तरफ भाग रहा है। इस भीड़ के हाथों में डंडे हैं तो सिर पर खून सवार। किसी भी अनजान पर जरा सा संदेह होने पर उसे निर्ममता से पीट-पीटकर मौत की नींद सुलाने वाली इस उन्मादी भीड़ को अपने किए पर कोई शर्मिंदगी या पछतावा भी नहीं होता है। इन्हें लगता है कि ये जो कर रहे हैं वो बिल्कुल सही है। बाकी इनकी इस गुमराह सोच को आए दिन राजनेता अपने बयानों या करतूतों के जरिये बल देते रहते हैं।

मॉब लिंचिंग के मामलों की बात करें तो वर्ष 2014-18 के बीच 84 हमलों में 33 लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। इनमें 56 फीसद मुस्लिम और 11 फीसद दलित थे। ऐसे ही गौतस्करी के नाम पर 2017 में 11, जबकि 2018 में अबतक 4 लोगों को भीड़ ने मौत के घाट उतार दिया है। उल्लेखनीय है कि सरकारें मॉब लिंचिंग के मामलों का रिकॉर्ड नहीं रखती हैं। ये आंकड़ें नागरिक संस्थाओं और कुछ अखबारों ने जुटाए हैं।

-अकबर खान

 

सुप्रीम कोर्ट भी लगा चुका है फटकार

सुप्रीम कोर्ट भीड़तंत्र पर अपनी नाराजगी जता चुका है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने गत दिनों कहा था कि गौरक्षा के नाम पर कोई भी कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता है। यह सरकार का दायित्व है कि भीड़तंत्र लागू न हो और कानून व्यवस्था का शासन बना रहे। इसके साथ ही भय और अराजकता के समय में सरकारों को सकारात्मक रूप से कदम उठाने ही होंगे, क्योंकि हिंसा की इजाजत नहीं दी जा सकती है।

मॉब लिंचिंग को नेता दे रहे बढ़ावा

आपको याद होगा गौमांस रखने के शक पर मोहम्मद अखलाक की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। बाद में उनके हत्यारोपित की जेल में मौत हो गई थी। उसके शव को तिरंगा में लपेटा गया था और उसके अंतिम संस्कार में केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा शामिल हुए थे। बिल्कुल इसी तरह कुछ दिनों पहले केंद्रीय राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने झारखंड में भीड़ द्वारा मारे गए अलीमुद्दीन अंसारी की हत्यारों (इन्हें फास्ट ट्रैक अदालत ने दोषी ठहराया है)  का माला पहनाकर सत्कार किया। इनके अलावा बीजेपी नेता ज्ञान देव आहूजा भी अकबर खान उर्फ रकबर के हत्यारोपितों को छोड़ने की मांगी कर चुके हैं। इस तरह की बयानबाजी या कारगुजारी से उन्मादी भीड़ को बढ़ावा मिल रहा है, क्योंकि इससे यह संदेश जाता है कि उन्हें सत्तारूढ़ दल के कुछ नेताओं का वरदहस्त प्राप्त है।

-जयंत सिन्हा

 

-महेश शर्मा

पुलिस प्रशासन की नाकामी भी है जिम्मेदार

दरअसल, बच्चा चोरी या गौतस्करी के शक में लिंचिंग करने वाले लोगों का पुलिस प्रशासन से विश्वास उठ चुका है। उन्हें लगता है कि इन सबका समाधान निकालने के लिए उन्हें ही कुछ करना पड़ेगा। यही कारण है कि अलग-अलग इलाकों में छोटे-बड़े वाट्सएप ग्रुप बने हैं। इन ग्रुप के सदस्य किसी भी अनजान पर जरा सा शक होने पर अन्य सदस्यों को वाट्सएप से सूचना देते हैं और फिर जुटती है एक भीड़। इस भीड़ का एक ही मकसद होता है और वह है संदिग्ध को रास्ते से हटा देना।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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