-साहित्य मौर्या
उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िला अस्पताल में बीते 50 दिनों में लगभग 80 बच्चों की मौत हो चुकी है। मरने वाले बच्चे अधिकतर डायरिया, न्यूमोनिया, बर्थ स्पेक्सिया, हेपेटाइटिस बी, मीनिंजाइटिस, इंसेफ्लाइटिस जैसी बीमारियों से पीड़ित थे। आज देश के सामने एक बड़ी चुनौती है कि हमारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र किस तरह से सक्षम हो और कार्य करे कि ऐसे मामलों में कमी हो सके? भारत के अन्य शहरों में भी ऐसे कई मामले देखे गए हैं कि बेहतर स्वास्थ्य उपकरण सुविधा, डॉक्टरों की कमी और दवाओं की कमी से हर साल हज़ारों माँ का आँचल खाली होता जा रहा है।
एक तरफ भारत सरकार आयुष्मान भारत योजना (हेल्थ बीमा) के तहत पाँच लाख रुपये देने की योजनाबद्द तरीका अपना रही है तो वहीं, दूसरी तरफ़ गाँवों और ज़िला अस्पतालों में हज़ारों बच्चें बीमारियों से दम तोड़ रहे हैं। पिछले साल ही गोरखपुर में इंसेफ्लाइटिस से तक़रीबन 100 से अधिक बच्चों की मौत हुई थी।
मौजूदा समय में सरकार को इन घटनाओं को संजीदगी से लेते हुए सभी ज़िला अस्पतालों में मूलभूत सुविधों को सुधारने की ज़रूरत है। कल के बेहतर स्वास्थ्य के लिए आज से सरकार को सभी ग्रामीण, क़स्बों और ज़िला अस्पतालों में स्वच्छता और बीमारियों के प्रति जागरूकता फैलने में और तेज़ी लाने की ज़रूरत है। अस्पतालों को हर मूलभूत उपकरणों, दवाओं से संपन्न रखने की ज़रूरत है। प्रशिक्षित डॉक्टरो की कमी को दूर करने और किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए सभी ज़िला अस्पतालों को हमेशा चौकन्ना रहना होगा। किसी भी घटना को सरकारी अनियमिता पर दोष डालनें से बेहतर होगा की ऐसे हादसों के होने से पूर्व ही उसका समाधान निकाला जाए।
लिहाज़ा, इन सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार करते हुए सरकार और अस्पतालों को सार्थक दिशा में आगे बढ़ने की ज़रूरत है। अन्यथा हर साल हज़ारों मासूम बच्चों की जान जाती रहेगी और हम हाथ पे हाथ धरे बैठें रह जाएँगे।
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