बैठक हो सकती है हंगामेदार
पिछले हफ्ते भारत सरकार द्वारा डीयू (दिल्ली विश्वविद्यालय) के शिक्षकों के लिए अधिसूचित यूजीसी नियमावली (रेगुलेशन) 2018 को दिल्ली विश्वविद्यालय में लागू करने के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन हुआ था। इस उच्च स्तरीय कमेटी की बैठक कल (24सितम्बर) होगी।
दशकों से लंबित मुद्दों को लेकर हो सकती है जबरदस्त बहस
इस बैठक में दशकों से लंबित मुद्दों को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन और एसी मेम्बरों (विद्वत परिषद सदस्य) के बीच जबरदस्त बहस हो सकती है। बैठक के हंगामेदार होने के भी आसार हैं। इन लंबित मुद्दों में तदर्थ (एडहॉक) सर्विस को पदोन्नति के लिए जोड़ना, एडहॉक को स्थायी नियुक्ति (परमानेंट अपॉइंटमेंट) के समय महत्व देना, नियुक्ति प्रक्रिया में एडहॉक सर्विस को अधिक महत्व देना, प्राचार्य के पदों में आरक्षण लागू करवाना, कॉलेजों में प्रोफेसरशिप को लागू करवाना, वाइस प्रिंसिपल की नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने और प्राचार्य के समकक्ष बनवाना आदि ऐसे मुद्दे हैं जिनपर बात तो होगी लेकिन, आम सहमति होनी आसान नहीं, इसलिए बैठक हंगामेदार होने की पूर्ण सम्भावना है।
तीन वर्ष में तीन शोध पेपर प्रकाशित करने की अनिवार्यता हो समाप्त
हाई पावर्ड कमेटी के सदस्य प्रो. हंसराज ‘सुमन’ ने बताया है कि कल होने वाली बैठक में उप प्राचार्य का कार्यकाल दो वर्ष सुनिश्चित करवाना, कॉलेजों में प्रोफेसरशिप के लिए तीन वर्ष में तीन शोध पेपर प्रकाशित करने की अनिवार्यता को समाप्त करना आदि मुद्दे हैं। इसके अलावा 4500 पदों के लिए कई बार विज्ञापन आए और उम्मीदवारों से करोड़ों रुपये शुल्क के रूप में लेने के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया के शुरू न होने का मुद्दा, रिटायर्ड टीचर्स को पेंशन न मिलने आदि के मुद्दे बैठक में प्रमुखता से उठाए जाएंगे।
सेवा शर्तों को लागू कराने का है मुद्दा
प्रो. सुमन ने बताया है कि भारत सरकार ने यूजीसी नियमावली 2018 के रूप में शिक्षक समुदाय को ऐतिहासिक सेवा शर्ते दी हैं, अब इन्हें इनकी मूलभावना के अनुरूप दिल्ली विश्वविद्यालय में लागू करना हमारी पहली प्राथमिकता है। हमारी कोशिश है कि इन सेवा शर्तों को दिल्ली विश्वविद्यालय में इस तरह से लागू कराना है कि अधिक से अधिक शिक्षकों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके और दशकों से लंबित समस्याओं के निराकरण की दिशा में आगे बढ़ा जा सके। उनका कहना है कि छठे वेतन आयोग के समय के लंबित पदोन्नति के मामलों को शिक्षक विरोधी एपीआई से मुक्ति दिलाना भी हमारी प्राथमिकता है।
प्रो. सुमन ने आगे बताया है कि यूजीसी के नियमावली से कॉलेजों में ख़ुशी का माहौल है। सबसे ज्यादा ख़ुशी एसोसिएट प्रोफेसर में है। इस नियमावली से जल्द ही वे प्रोफेसर बन जायेंगे। बता दें इससे पहले कॉलेजों में एसोसिएट प्रोफेसर के बाद किसी प्रकार की कोई पदोन्नति (प्रमोशन) नहीं होती थी। इस नियमावली से कॉलेजों में प्रोफेसर का नया पद सृजित कर दिया गया है।
कैपिंग हटी
कॉलेजों में प्रोफेसर के लिए पहले कैपिंग लगी हुई थी। अब यह कैपिंग भी हटा दी गई है, जो एसोसिएट प्रोफेसर अपनी योग्यता रखते है वह सभी प्रोफेसर बन सकेंगे। विभाग या जूनियर, सीनियर कोई नियम नहीं होगा। उन्होंने यह भी बताया है कि प्राचार्य व प्रोफेसर के लिए नये नियमावली में 110 पॉइंट होना अनिवार्य है। पहले इस पद के लिए 400 पॉइंट होना अनिवार्य शर्त रखी गई थी।
प्राचार्य पदों पर हो आरक्षण
कॉलेजों में प्राचार्य पदों पर आरक्षण के लिए एससी, एसटी की कल्याणार्थ संसदीय समिति ने दिल्ली विश्वविद्यालय में इन पदों पर आरक्षण देने के लिए 9 जुलाई 2015 को समिति ने डीयू में आई। समिति ने 18 दिसम्बर 2015 को एक रिपोर्ट लोकसभा में प्रस्तुत की थी जिसमें कहा गया था कि डीयू कॉलेजों के प्राचार्य पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर बनाया जाए। इस तरह से दिल्ली विश्वविद्यालय में एससी के 12, एसटी के 06 और ओबीसी कोटे के 22पद बनते हैं लेकिन, आज तक डीयू ने प्राचार्य पदों का रोस्टर रजिस्टर तक नहीं बनाया। इस मुद्दे को भी बैठक में उठाया जाएगा।
एडहॉक को प्राथमिकता मिले
उन्होंने बताया है कि कल की बैठक में डीयू कॉलेजों में पढ़ा रहे 4500 तदर्थ शिक्षकों (एडहॉक टीचर्स) को स्थायी नियुक्ति के समय उन्हें प्राथमिकता देने का मुद्दा उठाया जाएगा ताकि एक दशक से पढ़ा रहे इन शिक्षकों को लाभ मिल सके। साथ ही काउंट ऑफ़ पास्ट एडहॉक सर्विस को उस समय जोड़ा जा सकता है।
उप प्राचार्य के लिए सेवा शर्तें प्राचार्य के बराबर हो
बैठक में यह मुद्दा उठाया जाएगा कि प्राचार्य के बराबर ही उप प्राचार्य की सेवा शर्तें हों, उसके लिए भी 110 पॉइंट का होना अनिवार्य किया जाए। उसका कार्यकाल हर कॉलेज में एक जैसा हो, इसके लिए डीयू में एक जैसी नीति बने।
कमेटी के अन्य सदस्यों में डॉ. गीता भट्ट, डॉ. रसाल सिंह, डॉ पंकज गर्ग आदि ने इन मुद्दों को गम्भीरता से बैठक उठाए जाने की बात कही है।
ध्यातव्य है कि इस प्रकार की नीति निर्माण संबंधी बैठकों में शिक्षक हितों की वकालत का सारा दारमोदार निर्वाचित प्रतिनिधियों पर ही रहता है क्योंकि वे शिक्षकों के बीच काम करते हुए समस्याओं की बारीकियों को समझते है और उनके लिए संघर्ष करते हैं।
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