इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस (IHC) के 79वें सत्र को सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय ने अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया है। 1938 से इतिहासकारों का हर साल होने वाला यह सत्र इस वर्ष सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में होना था। इसकी घोषणा जुलाई में की गई थी। इसके लिए डेलिगेट्स आवेदन की फीस भी जमा कर चुके हैं। विश्विद्यालय का कहना है कि फंड की कमी के चलते सत्र को स्थगित करना पड़ा है, वहीं आइएचसी इसे राजनीतिक हस्तक्षेप के रूप में देख रही है।
विश्वविद्यालय का रवैया गैर-जिम्मेदाराना: आईएचसी
इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस ने अपनी आधिकारिक वेबसाईट पर बुधवार को एक आवश्यक नोटिस डालते हुए जानकारी दी कि उन्हें 11 दिसंबर की रात 11:48 पर एक अज्ञात शख्स ने “टीम आईएचसी” (Team IHC) के नाम से ईमेल के जरिए जानकारी दी कि पुणे विश्वविद्यालय को फंड की कमी के चलते 79वें सत्र को स्थगित करना पड़ रहा है। विश्वविद्यालय ने भी अपनी आधिकारिक वेबसाईट पर इसकी घोषणा की है।
आईएचसी ने इसे गैर-जिम्मेदाराना रवैया बताते हुए कहा है कि आखिरी वक्त पर इस तरह सत्र को स्थगित करने का अर्थ उसे रद्द करने जैसा है। आईएचसी सचिव प्रोफेसर महालक्ष्मी रामाकृष्णन ने इसे नियमों के खिलाफ बताया है। उन्होंने बयान दिया है कि विश्विद्यालय ने यह फैसला करने से पूर्व आईएचसी से अनुमति नहीं ली। बिना ईसी (विद्वत परिषद) की बैठक के इस तरह का फैसला लेना गलत है।
द टाईम्स ऑफ इंडिया का कहना है कि प्रोफेसर रामाकृष्णन ने उन्हें ईमेल के जरिए बताया है कि उन्होंने 28 से 30 दिसंबर तक पुणे में होने वाले इतिहासकारों के सत्र की पूरी तैयारियां कर ली थीं। मनमाने ढंग से रद्द करने के यूनिवर्सिटी के फैसले से हमें और महाराष्ट्र समेत पूरे देश के करीब 1000 प्रतिनिधियों (डेलिगेट्स) को धक्का लगा है।
फंड की कमी नहीं, राजनीतिक दबाव है जिम्मेदार
आईएचसी का कहना है कि विश्वविद्यालय ने हर प्रतिनिधि (डेलीगेट) से मेनटेनेंस फीस के तौर पर 2000 रुपये लिए हैं। ऐसे में फंड की कमी कैसे हो सकती है! प्रोफेसर रामाकृष्णन ने पुणे विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर यह फीस वापिस करने की मांग की है। साथ ही 14 दिसंबर को आईएचसी की ईसी बैठक भी बुलाई है।
आधुनिक राजनीतिक इतिहास के प्रोफेसर एस इरफ़ान हबीब (अलीगढ़ विश्विद्यालय वाले इरफान हबीब नहीं) ने ट्वीट करते हुए विश्वविद्यालय के इस फैसले की आलोचना की है। द टाइम्स ऑफ इंडिया से की गई बातचीत में उन्होंने इसे राजनीतिक दबाव बताया है। उनका कहना है कि विश्विद्यालय ने राजनीतिक दबाव के कारण यह फैसला लिया है। हो सकता है राज्य सरकार के दबाव में उन्होंने यह फैसला लिया हो।
Shocking to know that Savitri Bai Phule university in Pune suddenly decided not to host the 79th Indian History Congress session. IHC session was supposed to be held by the end of this month. Law and order issues are cited as one major reasons by the university hosts.
— S lrfan Habib (@irfhabib) December 12, 2018
दरअसल इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस एक स्वतंत्र वैचारिक संस्था रही है। इतिहास की मनमानी और गलत व्याख्याओं पर वह प्रश्न उठाती रही है। वर्ष 2001 में नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने आईएचसी के 61वें सत्र में अटल बिहारी वाजपेयी की आलोचना की थी। उन्होंने उनके मिथ और इतिहास की समझ पर प्रश्न उठाए थे।
वहीं पिछले वर्ष आईएचसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक प्रस्ताव (रिजोल्यूशन) पास किया था। दरअसल मोदी ने गणेश और कर्ण के निर्माण की व्याख्या के लिए प्लास्टिक सर्जरी और आनुवंशिक विज्ञान का हवाला दिया था। इसी की आलोचना करते हुए यह प्रस्ताव पास किया गया था। आईएचसी के वाइस प्रेसिडेंट और अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय के प्रोफेसर इरफान हबीब भी प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस की आलोचना करते रहे हैं। हाल ही में शहरों के नाम बदलने को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ की भी उन्होंने आलोचना की थी।
आईएचसी के इतिहास में पुणे और महाराष्ट्र का है विशेष महत्व
इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस का पहला सत्र भारत इतिहास संशोधक मंडल के अंतर्गत 1935 में पूना (पुणे) में आयोजित किया गया था। महाराष्ट्र के जाने माने इतिहासकार प्रोफेसर डीवी पोतदार (D.V. Potdar) ने इसकी पहल की थी। तबसे 1938 से हर वर्ष आइएचसी इतिहासकारों का यह सत्र आयोजित करता रहा है। इसके सदस्यों की संख्या भी लगातार बढ़ती रही है। 1963 में भी पुणे ने इस सत्र का आयोजन किया था। महाराष्ट्र के कई इतिहासकार, जैसे प्रोफेसर डीवी पोटडार, जीएच खरे, प्रोफेसर एचडी संकालिया, प्रोफेसर एआर कुलकर्णी, प्रोफेसर एमके धावलिकर और पुणे के प्रोफेसर के पाण्डया, आईएचसी के जनरल प्रेसिडेंट (General President) रह चुके हैं। मुंबई 1947, 1980 और 2012 में तीन दफा इस सत्र का आयोजन कर चुका है। पुणे और महाराष्ट्र के इतिहासकारों ने हमेशा से आईएचसी के सत्र में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है। इस वर्ष के सत्र में 7000 डेलिगेट्स में से 400 डेलिगेट्स महाराष्ट्र से हैं। महाराष्ट्र का आईएचसी के इतिहास में क्या महत्व है, यह इससे भी पता चलता है कि आईएचसी का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार मराठा कार्यकर्ता और शिवाजी का इतिहास लिखने वाले वीके रजवाड़े के नाम पर है और फिर पुणे मराठा साम्राज्य की राजधानी भी रही है।
-सुकृति गुप्ता
Be the first to comment on "पुणे यूनिवर्सिटी ने आईएचसी का 79वां सत्र किया स्थगित, प्रोफेसर एस इरफान हबीब ने कहा, फंड नहीं, राजनीतिक दबाव है वजह"