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वाटरमैन ऑफ इंडिया डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा “हवा और जल बुनियादी मानवाधिकार”

नई दिल्ली। कालिंदी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग ने “हाशिये के समुदाय के मानवाधिकार: एक कदम सुरक्षा की ओर” पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया। सेमिनार का उद्देश्य युवाओं को समाज के हाशिए के वर्गों और समानता के अधिकार की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील बनाना था। प्रधानाचार्या, डॉ. अनुला मौर्या ने सेमिनार का उद्घाटन किया और विशिष्ट अतिथियों का स्वागत किया जिसमें शोधकर्ता, मीडियाकर्मी और मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल रहे। इस अवसर पर वाटरमैन ऑफ इंडिया के नाम से विख्यात राजेंद्र सिंह, आईसीएसएसआर के निदेशक डॉ. अजय गुप्ता, बालाजी कॉलेज ऑफ एजुकेशन के निदेशक डॉ जगदीश चौधरी और मीडिया पेशेवर महताब आलम, राजीव राय और दिनेश तिवारी ने अपनी उपस्थिति के साथ उद्घाटन समारोह की गरिमा बढ़ाई।

डॉ. मौर्या ने पत्रकारिता विभाग के प्रयासों की सराहना की और छात्रों को आत्मनिर्भर होने के लिए प्रोत्साहित किया ताकि वे निडर होकर जीवन की बाधाओं का सामना कर सकें। डॉ. गुप्ता ने जाति, लिंग और अक्षमता पर आधारित समाज में मौजूद हाशिए के लोगों के मानव अधिकारों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने पैरालाम्पिक्स के उदाहरण देते हुए समझाया कि कैसे “दिव्यांग खिलाड़ियों ने हाल के वर्षों में अच्छा प्रदर्शन किया है”। डॉ. जगदीश चौधरी ने वैज्ञानिक सोच बनाने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि मनुष्य अन्य प्रजातियों से बेहतर है क्योंकि उसके पास चुनाव का अधिकार है।

जल संरक्षक और पर्यावरणविद् राजेंद्र ने कहा कि “ताजा हवा और शुद्ध पानी हर व्यक्ति का सबसे बुनियादी मानव अधिकार है”। उन्होंने बेहतर संसाधनों के लिए प्राकृतिक संसाधनों, विशेष रूप से नदियों को बचाने की आवश्यकता पर बल दिया।

शारदा ने हाल ही में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता नादिया मुराद का उदाहरण देते हुए कहा कि कैसे राजनीतिक रूप से अस्थिर क्षेत्रों के लोग आत्मशक्ति और प्रेरणा के साथ अपने अधिकारों का दावा कर सकते हैं। मीडिया पेशेवर आलम ने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में काम कर रहे पत्रकारों के मानवाधिकारों के संघर्ष और कमी पर प्रकाश डाला और पत्रकारों की रक्षा के लिए कानून बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। युवा छात्रों को प्रेरित करते हुए दिनेश तिवारी ने कहा कि बदलाव लाने के लिए पहल करनी होगी। राजीव राय ने कहा कि “समाज के लिए कुछ सही करने के लिए, हम बुद्धिजीवियों को पहले अपने विचारों को क्रिया में परिवर्तित करना चाहिए”।

दो-दिवसीय सेमिनार में अकादमिक शोधकर्ता और छात्रों ने लिंग, कानून, मीडिया, हाशिए के  समुदायों के मानवाधिकारों और सामाजिक समावेश के मुद्दों पर व्यापक भागीदारी दिखाई। डॉ. मौर्या ने एक सफल कार्यक्रम आयोजित करने के लिए संगोष्ठी की संयोजिका डॉ सुनीता मंगला, और सह-संयोजका सुश्री मनीषा और पत्रकारिता विभाग को बधाई दी।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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