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“हमन हैं इश्क मस्ताना” पढ़िए तो जान जाएंगे कि फेसबुक पर प्यार और शादी के क्या हैं मायने

हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?

अगर साहित्य में आप रुचि ऱखते होंगे तो आपने कबीर की ये पंक्तियां जरूर पढ़ी होंगी। खैर जो भी हो, हम बात कर रहे हैं एक ऐसी किताब के बारे में जिसका नाम है हमन हैं इश्क मस्ताना, इस उपन्यास को विमलेश त्रिपाठी ने लिखा है।

क्या है कहानी में और क्यों पढ़े

यह कहानी वर्तमान समय के अनुसार लिखी गई है। यह हर घर की कहानी है। फेसबुक, वाट्सएप को कहानी में अब धीरे-धीरे जगह मिलने लगी, क्योंकि यह जिंदगी को कभी भी एक नया मोड़ दे देती है। कोई जरूरी नहीं कि सकारात्मक परिणाम ही हों, कभी-कभी नकारात्मक परिणाम भी सामने आते हैं। घर में प्रेम विवाह और सोशल साइट्स पर चैट पर प्यार की बात हो तो यह आज आम बात है, लेकिन इसे किताब में हूबहू वही लिख देना जो लगभग आज समाज में हर घर की कहानी है, आसान काम नहीं है। प्यार की असली हकीकत और आज नौकरी के परिवेश का अच्छा खासा संयोजन प्रस्तुत पुस्तक में आपको मिल जाएगी। आप हर किसी से मोबाइल पकड़ कर चैट में अब भी मशगूल होंगे, लेकिन आपसे अगर इसी कड़ी में एक लड़की प्यार कर बैठे, वह भी बिना मिले, बिना ठीक से जाने तो इसका हश्र भी जरूर कुछ अलग ही होता है। हो सकता है आप कई लड़कों से बात कर रही हों और आपको उनमें से एक लड़का अपनी महिला मित्र समझकर सब कुछ न्योछावर कर देना चाहे। लेकिन, आपको उससे कुछ भी फर्क न पड़े। प्यार एकतरफा हो तो भी कितना कुछ हो जाता है। आप जिसे खूब चाहते हों वह आपको कुछ न समझे और जो आपको चाहता हो उसे आप कुछ न समझें। कुछ इसी तरह की कहानी इस उपन्यास में पढ़ने को मिलेगी।

कहानी बहुत ही साधारण और बोलचाल की भाषा में हिंदी में ही लिखी गई है। आप इस किताब को 3 घंटे में बड़े आराम से खत्म कर सकते हैं। जरा भी रुकावट नहीं आएगी, अगर पढ़ने लगे तो मन करेगा कि खत्म ही कर दें, क्योंकि कहानी अंत में काफी नया मोड़ ले लेती है। शुरुआत में कहानी पढ़ते हुए आपको लग सकता है कि कितना अश्लील साहित्य है, लेकिन धीरे-धीरे आपको समझ आ जाएगा कि यह समय की मांग है और फिर समाज में वही जाना चाहिए जो वास्तविक हो न कि काल्पनिक। काल्पनिकता का सहारा मात्र समझने और रंग भरने के लिए ही होना चाहिए। आप जैसे-जैसे कहानी पढ़ते जाएंगे आपको धीरे-धीरे लगने लगेगा कि आप अब लेखक और पाठक के बीच संबंध कायम कर लिए हैं और आपको अपने हर नकारात्मक सवालों का जवाब स्वतः ही मिल जाएगा जो आप लेखक के बारे में सोच रहे थे।
खैर लेखक के बारे में आप सोचकर क्यों ही पढ़ेंगे। आप को यह पुस्तक केवल इसलिए पढ़नी चाहिए ताकि आप जान सकें कि हम रिश्तों को कैसे निभा रहे हैं। खुद क्या करें और कैसे आगे बढ़ें, क्योंकि अगर आप आगे नहीं बढ़े तो समाज आपको बाहर करे या न करे आप खुद को अलग कर लेंगे। कई जगह आपको यह पुस्तक रुलाएगी भी तो कई जगह आपको अपने आपकी कहानी और उसकी यादों में खोने को विवश करेगी। लेकिन, यह पुस्तक आपको एक नई दिशा देगी। इसलिए भी आप पढ़िए। पुस्तक लिखना सार्थक भी तभी होगा।

इन सवालों के जवाब जरूर मिलेंगे इस उपन्यास में 

प्रेम को खोजकर पाया जा सकता है क्या? क्या देह और प्रेम दो अलग बातें हैं? क्या सदियों से चली आ रही एकनिष्ठता की परिभाषा महज एक मिथक है? क्या एक ही साथ एक व्यक्ति कई व्यक्तियों के प्रेम में नहीं रह सकता क्या? पुरुष और स्त्री इस मायने में कैसे और किस तरह भिन्न हैं? क्या विवाह जैसी संस्था इस सोशल मीडिया के दौर में बेमानी हो चुकी है? उपन्यास ‘हमन हैं इश्क मस्ताना’ उपरोक्त सभी सवालों को बहुत ही चुप तरीक़े से उठाता है। कथा के पात्रों और परिस्थितियों से गुज़रते हुए ये प्रश्न बार-बार पाठक के मन में बज सकते हैं और कुछ-एक घटनाएँ उन्हें विचलित कर सकती हैं। कथा में मुख्यतः पाँच पात्र हैं– चार स्त्री और एक पुरुष। एक पत्नी के अलावा तीनों स्त्रियों से पुरुष का जो संबंध है वह प्रेम के चार दर्शन की तरह हैं– प्रेम विवाह कर चुका एक पुरुष एक समय ख़ुद को प्रेमविहीन पाता है और याहू मैसेंजर और फ़ेसबुक जैसी जगहें उसे दूसरी-तीसरी जगहों पर भटकाती हैं- मान लीजिए कि अमरेश विस्वाल की घर की परिस्थितियाँ अनुकूल होतीं तो क्या वह फिर भी प्रेम में खानाबदोश बन पाता? काजू दे एकनिष्ठ समर्पण चाहती है और अमरेश के विवाहित होने का तथ्य स्पष्ट होते ही उससे अलग हो जाती है। शिवांगी उसके मन को समझती हुई उसे हर परिस्थिति में स्वीकार करती है– वह एक असाधारण स्त्री के रूप में सामने आती है। ये वही स्त्रियाँ हैं जिनके कारण पुरुष सचमुच का पुरुष बन पाता है– लेकिन मंजरी प्रेम के इस कश्मकश में कहीं टूट जाती है– उसका टूटना अमरेश को इस तरह हिलाता है कि वह पूरी दुनिया भूलकर किसी ट्रांस में चले जाने को श्रेयस्कर मानता है– लेकिन फ़ेसबुक की प्रोफ़ाइल डिलीट कर देने भर से क्या यह जद्दोजहद ख़त्म हो जाती है? एक लेखक-कलाकार की भटकन क्या समाप्त हो जाती है? शायद नहीं। अमरेश अंततः कहीं ही तो लौट नहीं पाता। यह क्यों है– क्या जवाब है इसका?

कौन हैं उपन्यासकार

बक्सर, बिहार के गांव हरनाथपुर में जन्म हुआ था। लेखक कलकत्ता विश्वविद्यालय से केदारनाथ सिंह की कविताओं पर पीएचडी कर चुके हैं। कविता और कहानी का अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने के साथ साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था नीलांबर कोलकाता के वर्तमान अध्यक्ष भी हैं। पिछले 8-9 सालों से अनहद कोलकाता ब्लॉग का संचालन एवं संपादन कर रहे हैं। त्रिपाठी के अब तक 3 कविता संग्रह, एक कहानी संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन सहित कई महत्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। कोलकाता में ही रहते हैं।

किताब के बारे में 

अमेजन पर उपलब्ध इस किताब की कीमत मात्र 98 रुपये है। आप इसे यहां से ऑनलाइन मंगा सकते हैं। किताब में 176 पेज हैं। उपन्यासकार से संपर्क करने के लिए starbhojpuribimlesh@gmail.com पर मेल या 9088751215 पर कॉल कर सकते हैं।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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