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मोदी का “टाइम” पर मोदी के मायने से भारत के टुकड़े-टुकड़े गैंग का चीफ बनने तक का सफर

भारत का डिवाइडर इन चीफ (आतिश तासीर का लेख)

दुनिया की प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम के 10 मई 2019 के अंक के कवर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर छपी है। कवर पर शीर्षक

हिंदी में लिखें तो मतलब- भारत को बांटने वाला सरदार।

लेख में ये दावा किया गया है कि मोदी ने जिस मोड़ पर भारत को ला दिया है, वहां से अब वो चाहकर भी भारत को ये नहीं बता सकते कि हिंदू धार्मिक राष्ट्र, मध्यकालीन भारतीय इतिहास, अंधविश्वास और जादू-टोना को छोड़कर ही महाशक्ति बना जा सकता है। टाइम के लेख में ये कहा गया है कि मोदी भारत को दक्षिण कोरिया जैसी आर्थिक तरक्की देने का दावा तो करते हैं, लेकिन इसके लिए ऐतिहासिक गौरव का रास्ता अख़्तियार करने लगते हैं। 2014 में मुंबई में डॉक्टरों और मेडिकल पेशेवरों को मोदी द्वारा दिए गए संबोधन का भी ज़िक्र किया गया है, जिसमें मोदी ने भगवान गणेश को प्लास्टिक सर्जरी का जनक करार दिया था।

टाइम पत्रिका में इससे पहले भी कवर पर नरेन्द्र मोदी दो बार छप चुके हैं।  2015 में नरेन्द्र मोदी का पूरे पन्ने पर तस्वीर छपी थी जिसका शीर्षक था: व्हाइ मोदी मैटर्स। यानी मोदी क्यों अहमियत रखते हैं। उससे पहले ‘मोदी मतलब कारोबार’ नाम से भी उनकी तस्वीर टाइम के कवर पर छप चुकी है।

ब्रिटिश पत्रकार आतिश तासीर ने अपने लेख में नरेन्द्र मोदी की नीतियों और नीयत पर कई बार चोट की है। “क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र मोदी सरकार को पांच साल और झेल सकता है?” नाम से लिखे गए इस लेख में जो कहा गया है, वो निश्चित रूप से मोदी की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय छवि को तार-तार कर देने वाला है।
लेख में नरेन्द्र मोदी की तुलना तुर्की के राष्ट्रपति तैय्यप एर्दोआन और ब्राज़ील के जैर बोल्सोनारो से की गई है। आपको बता दें कि दुनिया में इन दोनों की छवि बहुसंख्यकों की भावना का दोहन करने वाले तानाशाही प्रवृत्ति के नेता के तौर पर बनी हुई है।
नरेन्द्र मोदी के रवैये पर ये लेख हर वाक्य में सवाल उठाता है। आतिश तासिर ने अमेरिकी इतिहासकार एने एप्पलबॉम को उद्धृत करते हुए लिखा, “जिन लोगों को ये पता ना था कि वे एक-दूसरे से पहले असहमति रखते थे, ऐसे लोगों के बीच के अनिर्णित बंटवारे” को मोदी हवा देते रहते हैं।

लेख में ये कहा गया है कि नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में देश के बुनियादी उसूलों को तोड़ा गया. भारतीय राष्ट्र-राज्य, इसको बनाने वाले लोग, अल्पसंख्यों के लिए सुरक्षित जगह के तौर पर इसकी पहचान और विश्वविद्यालय से लेकर कॉरपोरेट हाउस और मीडिया जैसी संस्थाओं को बुरी तरह नष्ट कर दिया गया है। यह भी लिखा गया कि मोदी ने नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद और हिंदू-मुस्लिमों के बीच भाईचारे की भावना को तहस-नहस कर दिया। बीते पांच साल में अल्पसंख्यकों, दलितों, छात्रों, उदारवादियों, महिलाओं और संस्थानों पर हुए हमलों के लिए मोदी की नीति और राजनीतिक मंशा को ज़िम्मेदार ठहराया गया।

टाइम के लेख में कहा गया है कि मॉब लिंचिंग की लगभग हर वारदात पर नरेन्द्र मोदी ने चुप्पी अख़्तियार की। मुस्लिमों पर हमला करने वाले लोग दलितों पर भी हमले करने लगे, लेकिन दलितों का वोट चाहने वाले मोदी ने इन घटनाओं पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की। टाइम ने लिखा है कि महिलाओं को सुरक्षा देने के मामले में मोदी सरकार का काम-काज बेहद असंतोषजनक है। 2018 की एक रिपोर्ट के ज़रिए ये कहा गया है कि भारत को दुनिया में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित जगह करार दिया गया।
2014 में नरेन्द्र मोदी द्वारा किए गए वादों के हवाले से भी उनकी नीयत टटोलने की कोशिश की गई है। लेख में कहा गया है कि 2014 में नरेन्द्र मोदी ने (हिंदू) सांस्कृतिक ग़ुस्से को आर्थिक तरक़्क़ी का लबादा पहनाकर देश के सामने पेश किया। उनके आर्थिक विकास का जादू चला नहीं, अलबत्ता देश में ज़हरीला धार्मिक राष्ट्रवाद और तेज़ी से पसर गया।

टाइम के लेख के मुताबिक़ 2014 में मोदी ने तो सामुदायिक दुराग्रह के बीच (बेहतरी की) उम्मीद का माहौल तैयार किया, लेकिन 2019 में वो उम्मीद को त्यागकर सिर्फ़ भेद-भाव के सहारे लोगों को ज़िंदा रहने की उम्मीद पाल रहे हैं। मोदी पर ये आरोप लगाया गया है कि वो अपने वादे पूरा करने में बुरी तरह नाकाम रहे और अब फिर से चुने जाने की अपील कर रहे हैं। इस चुनाव में वो जो भी कह लें, लेकिन उम्मीद की बात तक नहीं करते।
2016 में नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी के फ़ैसले पर भी सवाल उठाए गए हैं। टाइम के मुताबिक़ मोदी के इस फ़ैसले ने देश में आर्थिक अफ़रा-तफ़री का जो माहौल बनाया, उससे देश आज तक उबर नहीं पाया है। शुरुआत में मोदी उसे कालेधन के ख़िलाफ़ बड़ा फ़ैसला बताते थे, लेकिन इस चुनाव में वो आर्थिक मुद्दों पर बात करने के बजाए भारत-पाकिस्तान के बीच उपजे तनाव के नाम पर वोट मांग रहे हैं।

योगी आदित्यनाथ और प्रज्ञा सिंह ठाकुर को लेकर भी बीजेपी और नरेन्द्र मोदी की कड़ी आलोचना की गई है। टाइम के लेख में योगी आदित्यनाथ को भगवा वस्त्र पहनकर ज़हरीला भाषण देने और सामाजिक विद्वेष फैलाना वाला व्यक्ति करार दिया गया है। टाइम के मुताबिक़ 2017 में जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत हुई तो इन्हीं योगी आदित्यनाथ को वहां की कमान दी गई।
यही नहीं, टाइम ने योगी आदित्यनाथ के कुछ बयानों का भी उद्धरण दिया है, जिसमें आदित्यनाथ एक हिंदू की हत्या के बदले सौ मुसलमानों को मारने के लिए भीड़ को उकसा रहे हैं और मुस्लिम महिलाओं के शव को क़ब्र से निकालकर बलात्कार करने की अपील कर रहे हैं। टाइम के मुताबिक़ नरेन्द्र मोदी योगी आदित्यनाथ के साथ मंच साझा करते रहे हैं। लेख में मालेगांव बम विस्फ़ोट में आतंकवाद की आरोपी और ज़मानत पर रिहा प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल से बीजेपी का उम्मीदवार बनाए जाने को भारतीय लोकतंत्र पर प्रहार बताया गया है। टाइम पत्रिका के मुताबिक़ प्रज्ञा सिंह ठाकुर की उम्मीदवारी बताती है कि चरम धार्मिक राष्ट्रवाद और अपराध के बीच अब कोई फर्क नहीं रह गया है.
लेख कहता है कि बीते महीने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने मुस्लिम प्रवासियों की तुलना ‘दीमक’ से की थी और इसके बाद बीजेपी के आधिकारिक ट्वीटर हैंडल पर मुस्लिमों के ख़िलाफ़ हिंसक विद्वेष से भरी टिप्पणियां आती रहीं।
लेख में 1984 के दंगों का ज़िक्र भी किया गया है, लेकिन ये बताया गया है कि दंगों के बाद किस तरह कांग्रेस ने ख़ुद को हिंसक भीड़ से अलग करके देखा, लेकिन 2002 के दंगों के बात मोदी ने ख़ुद को भीड़ का समर्थक बना दिया। मोदी की आलोचना करने पर ‘सिकूलर’, ‘लिबटार्ड’ और ‘न्यू यक टाइम्स’ जैसे पदों का इस्तेमाल करने को भी लोकतांत्रिक विचलन करार दिया गया है।

लेख में ये दावा किया गया है कि मोदी ने जिस मोड़ पर भारत को ला दिया है, वहां से अब वो चाहकर भी भारत को ये नहीं बता सकते कि हिंदू धार्मिक राष्ट्र, मध्यकालीन भारतीय इतिहास, अंधविश्वास और जादू-टोना को छोड़कर ही महाशक्ति बना जा सकता है। टाइम के लेख में यह कहा गया है कि मोदी भारत को दक्षिण कोरिया जैसी आर्थिक तरक़्क़ी देने का दावा तो करते हैं, लेकिन इसके लिए ऐतिहासिक गौरव का रास्ता अख़्तियार करने लगते हैं। 2014 में मुंबई में डॉक्टरों और मेडिकल पेशेवरों को मोदी द्वारा दिए गए संबोधन का भी ज़िक्र किया गया है जिसमें मोदी ने भगवान गणेश को प्लास्टिक सर्जरी का जनक करार दिया था।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

साहित्य मौर्या
लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पत्रकारिता के छात्र हैं।

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