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विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे अतिथि शिक्षकों का वेतन हो दोगुनाः हंसराज सुमन

अतिथि शिक्षकों के साथ होता है भेदभाव, एमएचआरडी और यूजीसी को लिखा पत्र

ऑल इंडिया यूनिवर्सिटीज एंड कॉलेजिज एससी, एसटी, ओबीसी टीचर्स एसोसिएशन के नेशनल चेयरमैन व विद्वत परिषद के सदस्य प्रो हंसराज ‘सुमन’ ने एमएचआरडी मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर और यूजीसी के चेयरमैन प्रो डीपी सिंह को पत्र लिखकर अतिथि शिक्षकों के साथ हो रहे भेदभाव के बारे में बताया है। उन्होंने मांग की है कि देशभर के केंद्रीय, राज्य और मानद विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य करने वाले अतिथि शिक्षकों (गेस्ट टीचर्स) का वेतन भी स्थायी शिक्षकों की तरह सातवें वेतन आयोग के अनुसार दिए जाएं। साथ ही यह भी कहा है कि स्थायी शिक्षकों की तरह उन्हें भी टीए/डीए और मेडिकल सुविधा दी जानी चाहिए।

विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ा रहे हैं लाखों अतिथि शिक्षक

अपने पत्र में उन्होंने लिखा है कि सातवें वेतन आयोग के मद्देनज़र जिस तरह से स्थायी एवं तदर्थ शिक्षकों के वेतन में वृद्धि हुई उसके मुकाबले अब तक अतिथि शिक्षकों (गेस्ट टीचर्स) का मानदेय नहीं बढ़ाया गया है। उन्हें आज भी प्रति लेक्चर 1000 रुपये ही दिए जा रहे हैं। कम से कम प्रति लेक्चर 1000 की जगह 2500 रुपये किए जाए। साथ ही जहां उन्हें महीने में अधिकतम 25000 रुपये दिए जाते हैं और अतिथि शिक्षकों को कोई टीए/डीए नहीं मिलता है। इसलिए अधिकतम राशि को बढ़ाकर 50000 रुपये किए जाएं।उन्होंने बताया है कि अकेले डीयू के कॉलेजों में 2000 से अधिक विभिन्न विषयों में अतिथि शिक्षक पढ़ा रहे हैं। देश में 813 विश्वविद्यालय और लगभग 42338 हजार कॉलेज हैं, जिनमें लाखों गेस्ट अतिथि शिक्षक अलग -अलग विभागों में अध्यापन कार्य कर रहे हैं।

दिल्ली विश्ववविद्यालय की यह है स्थिति

प्रो सुमन ने बताया है कि अकेले दिल्ली विश्वविद्यालय में हजारों अतिथि शिक्षक (गेस्ट टीचर्स) विभिन्न कॉलेजों/विभागों में पढ़ा रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के अलावा ये अतिथि शिक्षक दूसरे स्थानों पर भी पढ़ा रहे हैं जैसे एसओएल (स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग) में पर्सनल कॉन्ट्रेक्ट प्रोग्राम (पीसीपी) के अंतर्गत 3000 शिक्षक कक्षाएं ले रहे हैं। इसी तरह से नॉन कॉलेजिएट वीमेंस बोर्ड के 26 केंद्रों पर लगभग 1200 शिक्षक विभिन्न विषयों के है जो शनिवार व रविवार तथा छुट्टी के दिनों में कक्षाएं लेते हैं। दिल्ली के कॉलेजों व अन्य स्थानों पर इग्नू के सेंटर चल रहे हैं यहां पर भी 200 से अधिक एकेडेमिक काउंसलर पीसीपी के माध्यम से कक्षाएं ले रहे हैं। इसके अलावा देशभर में चल रही मुक्त विश्वविद्यालयों में में पीसीपी के माध्यम से कक्षाएं ली जाती है।

विश्वविद्यालयों के विभागों व कॉलेजों में किसी शिक्षक के छुट्टी जाने पर या विभाग में नया पद सृजित होने पर आजकल तदर्थ शिक्षक न नियुक्त कर अतिथि शिक्षक रखे जाते हैं। कुल मिलाकर लाखों अतिथि शिक्षक विभिन्न विश्वविद्यालयों में  है जिन्हें प्रति लेक्चर 1000 रुपये के हिसाब से दिया जा रहा है और उन्हें दो से अधिक लेक्चर प्रति दिन नही दिये जा सकते और 25000 रुपये से अधिक महीने में नहीं दिए जा सकते। चाहे उन्होंने उससे अधिक कक्षाएं ली हों।

अतिथि शिक्षक रखते हैं तदर्थ के समान योग्यता

प्रो सुमन ने पत्र में लिखकर स्पष्ट किया है कि अतिथि शिक्षक (गेस्ट टीचर्स) भी स्थायी, टेम्परेरी व एडहॉक टीचर्स के समान योग्यता रखते हैं। एमए/एमकॉम/एमएससी के साथ-साथ राष्ट्रीय पात्रता परीक्षास (नेट) जेआरएफ उत्तीर्ण, एमफिल-पीएचडी के बाद ही उन्हें इस पद के योग्य माना जाता है। उनका भी विश्वविद्यालय के विभागों में पैनल बनता है, कॉलेजों की मांग के आधार पर ही उनकी नियुक्ति एडहॉक, टेम्परेरी की तरह की जाती है। उन्हें दैनिक आधार पर प्रति लेक्चर 1000 रुपये और महीने में 25000 रुपये अधिकतम दिए जाते हैं। कभी छुट्टी, कभी कोई कार्यक्रम कुल मिलाकर 15000 से 25000 तक सीमित है। कॉलेजों में इन्हें दोयम दर्जे के नागरिक के समान समझा जाता है।

अतिरिक्त सेवाओं के एवज में कोई भुगतान नहीं

प्रो सुमन ने कहा कि अतिथि शिक्षकों का वेतन इसलिए बढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि ये शिक्षक यूजीसी और विश्वविद्यालय अध्यादेश द्वारा निर्धारित वे सभी योग्यताएं रखते हैं जो स्थायी, टेम्परेरी, एडहॉक के लिए मान्य हैं। इन अतिथि शिक्षकों को किसी तरह की मेडिकल सुविधा भी नहीं मिलती है और न ही गैजेटेड अवकाश का वेतन, छुट्टियों में भी इन्हें आर्थिक नुकसान होता है।

प्रो सुमन ने आगे बताया है कि यह भेदभाव यहीं तक सीमित नहीं है, शिक्षणेत्तर गतिविधियों जैसे-परीक्षा मूल्यांकन के अतिरिक्त तमाम ऐसे कार्यक्रमों में भी इन शिक्षकों की सेवाएं ली जाती हैं, जिसके लिए उन्हें किसी भी तरह का भुगतान नहीं किया जाता।

दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों, एसओएल, नॉन कॉलेजिएट वीमेंस बोर्ड, इग्नू, आईपी यूनिवर्सिटी, अम्बेडकर विवि के अलावा देशभर की विश्वविद्यालय व कॉलेजों में वर्षों से कार्यरत्त गेस्ट टीचर्स की वास्तविक स्थिति यह है कि इन्हें वर्ष में अधिकतम सात माह का रोजगार उपलब्ध हो पाता है। कभी ग्रीष्मकालीन अवकाश, सेमेस्टर ब्रेक, एग्जाम ब्रेक, परीक्षा मूल्यांकन, दाखिला व तमाम ऐसे समय जब कक्षाएं स्थगित रहती है, इनकी सेवाएं नहीं ली जाती और उन्हें किसी भी तरह का कोई भुगतान नहीं किया जाता।

पत्र में यह भी लिखा है कि अतिथि शिक्षकों के रूप में कार्यरत अधिकांश शिक्षक दूसरे प्रदेशों से आए हैं वे दिल्ली महानगर में दस से पंद्रह हजार रुपये मासिक किराए पर घर लेकर रहने को मजबूर हैं। इनमें अधिकांश विवाहित हैं ऐसी स्थिति में 15 से 25 हजार रुपये प्रति माह पाने वाले अतिथि शिक्षक कैसे यहां रह सकता है।

प्रो सुमन का कहना है कि पिछले छह महीने से  परमानेंट टीचर्स को सातवें वेतन आयोग के अनुसार बढ़ा हुआ वेतन मिल रहा है, तदर्थ शिक्षक को भी मिला लेकिन, जो वर्षों से गेस्ट शिक्षक के रूप में कॉलेजों को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उनके वेतन में किसी प्रकार की कोई बढ़ोतरी नही हुई।

ये हैं प्रमुख मांगें

पत्र में यूजीसी से मांग की है कि सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट के लागू होने के साथ ही अतिथि शिक्षक का वेतन भी प्रति लेक्चर 2500 रुपये व मासिक 25000 से बढ़ाकर 50000 रुपये करने के साथ अतिथि शिक्षकों को भी 1 जनवरी 2016 से बढ़े हुए वेतन के अनुसार बकाया भत्तों का भुगतान किए जाएं। साथ ही उन्हें तदर्थ शिक्षकों की तरह अतिथि शिक्षकों को भी अनुभव व छुट्टी की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।

उन्होंने यूजीसी से यह भी मांग की है कि देशभर के विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में अध्यापन कार्य कर रहे ऐसे एडहॉक/टेम्परेरी और अतिथि शिक्षकों की संख्या और उनके बारे में पता लगाया जाए कि इससे कॉलेज/यूनिवर्सिटी को क्या लाभ है? वे स्थायी पदों को क्यों नहीं भर रहे हैं? क्या वे इसलिए पढ़ा रहे हैं ताकि उन्हें स्थायी रिक्तियां न भरनी पड़े? जो भी कॉलेज/विश्वविद्यालय स्वीकृत पदों पर स्थायी नियुक्ति नहीं करते, यूजीसी को उन्हें अनुदान देना बंद करना चाहिए।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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