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अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस पर मातृ भाषा का बढ़ता दायरा और हिंदी की स्थिति पर परिचर्चा आयोजित

तस्वीरः गूगल साभार

अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस के उपलक्ष्य में ‘रिसर्च इंस्टीट्यूट फ़ॉर दलित आदिवासी एंड माइनॉरिटीज (रिदम) के तत्त्वावधान में मातृ भाषा का बढ़ता दायरा और हिंदी की स्थिति विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में आयोजित परिचर्चा में मातृ भाषा की भारत में स्थिति तथा विश्व में उसकी बढ़ रही संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की गई। चर्चा में रिदम के निदेशक प्रो. हंसराज सुमन, डॉ. केपी सिंह यादव, डॉ. प्रदीप कुमार सिंह, डॉ. मनोज कुमार, डॉ. सौम्या सिंह आदि ने भाग लिया।

कार्यक्रम से पूर्व लोगों को जानकारी दी गई कि दुनिया में पिछले 18 साल से अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस मनाया जा रहा है। मातृ भाषा के लिए शहीद हुए युवाओं की स्मृति में यूनेस्को ने 1999 में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। पहली बार 21 फरवरी 2000 को अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस मनाया गया था।

परिचर्चा में छात्रों, शिक्षकों को संबोधित करते हुए रिदम के निदेशक प्रो. हंसराज ‘सुमन’ ने अपने वक्तव्य में बोलते हुए कहा कि राष्ट्रभाषा तभी बचेगी जब मातृ भाषा बचेगी, इसलिए मातृ भाषा को अत्यंत संवेदनशील विषय मानते हुए इसके लिए प्राथमिक स्तर पर प्राथमिकता देते हुए सरकार और आम लोगों को मिल जुलकर कार्य करना होगा। उन्होंने बताया कि भारत जैसे बहुभाषा भाषी और बहु सांस्कृतिक समृद्ध देश के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी मातृ भाषाओं के संरक्षण के लिए तकनीकी भाषा आयोग की तर्ज पर मातृ भाषा आयोग बनाए। मातृ भाषाओं के संरक्षण के साथ शैक्षणिक कार्यक्रमों में सम्मिलित किए जाएं।

प्रो. सुमन ने बताया कि विज्ञान के छात्र आमतौर पर गांव से आते हैं, अगर उनको उनकी भाषा में विज्ञान की शिक्षा दी जाए तो भारत वर्ष दुनिया के किसी भी देश के वैज्ञानिकों, अनुसंधानों से आगे बढ़ सकता है। आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम जिस भाषा में ज्यादा सबसे सक्ष्म हैं उसमें कोई भी शिक्षा दीक्षा नहीं है और अंग्रेजी पढ़ना एक तरीके से मजबूरी है। आधा जीवन अंग्रेजी समझने में ही लग जाता है तो वैज्ञानिक आविष्कारों के लिए समय कब मिलेगा।

प्रो. केपी सिंह यादव ने मातृ भाषा दिवस पर अपने विचार रखते हुए कहा कि मातृ भाषा दिवस का मनाया जाना इस बात का सूचक है कि दुनियाभर में मातृ भाषा पर संकट गहराता जा रहा है। आज वही भाषा समृद्ध हो रही है जो सीधे तौर पर बाजार से जुड़ी हुई है। अंग्रेजी के चक्कर में हम अपनी मां को भूलते जा रहे हैं, हमें मालूम होना चाहिए कि सारे संस्कार, सारी सांस्कृतिक अस्मिताएं और सारे लोक व्यवहार मूल रूप से हमारी मातृ भाषा में ही संरक्षित रहते हैं।

श्री अरबिंदो कॉलेज में हिंदी शिक्षक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने मातृ भाषा दिवस पर अपनी शुभकामनाएं देते हुए कहा कि मातृ भाषा और अस्मिता एक ही है। मातृ भाषा पर संकट अपनी अस्मिता पर संकट है, हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी स्वयं अनेक मातृ भाषाओ से मिलकर बनी है और यदि हम समस्त मातृ भाषाओ का प्रयोग बंद कर दे तो हिंदी भी खतरे में पड़ जाएगी।

परिचर्चा में हिंदी के छात्रों/शिक्षकों ने अनेक सवाल-जवाब किए और कहा कि भारत की संस्कृति को यदि सही से जानना है तो हिंदी को जानना जरूरी है। अपनी मातृ भाषा को जानना जरूरी है। साथ ही हिंदी में रोजगार के अवसरों की चर्चा की गई।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

1 Comment on "अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस पर मातृ भाषा का बढ़ता दायरा और हिंदी की स्थिति पर परिचर्चा आयोजित"

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