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55 फीसद सीटें विश्वविद्यालयों में हैं खाली, जल्दबाजी में इन खाली पदों को क्यों भरा जा रहा है?

ऑल इंडिया यूनिवर्सिटीज एंड कॉलेजिज एससी, एसटी, ओबीसी शिक्षक संघ ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से जारी (21 फरवरी2019) बयान में विभागवार रोस्टर (डिपार्टमेंट वाइज रोस्टर यानी 13 पॉइंट रोस्टर) को पिछले दरवाजे से मंजूरी दिए जाने की कड़े शब्दों में निंदा की है और कहा है कि मंत्रालय केंद्रीय विश्वविद्यालयों को किस रोस्टर के तहत सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों को भरने का निर्देश देगा। शिक्षक संघ का कहना है कि जिन विश्वविद्यालयों ने इन पदों को भरने के विज्ञापन निकाले थे, उन विज्ञापनों की समय सीमा समाप्त हो चुकी है।

शिक्षक संघ के नेशनल चेयरमैन प्रो. हंसराज ‘सुमन’ व महासचिव प्रो. केपी सिंह यादव ने बताया है कि भाजपा सरकार की आरक्षण विरोधी नीतियों के चलते पिछले दिनों देशभर के तमाम विश्वविद्यालयों में आरक्षण को लेकर तथा 13 पॉइंट रोस्टर के खिलाफ आंदोलन होते रहे हैं और अभी भी जारी है।

उन्होंने बताया  है कि लोकसभा में सरकार ने 200 पॉइंट पोस्ट आधार पर रोस्टर की बहाली के लिए अध्यादेश लाने का प्रस्ताव रखा था। इसके बावजूद सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में 13 पॉइंट रोस्टर के माध्यम से नियुक्ति की जाने लगी है। यह प्रक्रिया पूरे देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी शुरू होने जा रही है।

उन्होंने बताया है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने लोकसभा में बयान दिया था कि उसके ठीक विपरीत कल जो (21 फरवरी) कहा कि अगले सप्ताह कैबिनेट की होने जा रही बैठक में यह प्रस्ताव लाने के लिए भेजा है जिसमें केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अध्यादेश की मंजूरी से पहले सभी पद भरे जा सके। उन्होंने बताया है कि 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लगभग 6 हजार पद खाली है इसमें सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पद है।

इनमें अनुसूचित जाति के 873, अनुसूचित जनजाति के 493, ओबीसी के 786 तथा पीडब्ल्यूडी के 264 पद खाली हैं जबकि शिक्षकों के कुल स्वीकृत पद 17,092 हैं।

एससी कोटे के लिए स्वीकृत प्रोफेसर के 224 पदों में सिर्फ 39 और एसटी कोटे के लिए स्वीकृत 104 में से 15 पदों पर नियुक्तियां हुई हैं।

ये हैं आंकड़े

40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के 2,426, एसोसिएट प्रोफेसर के 4,805 , सहायक प्रोफेसर के 9,861 पद हैं। कुल 17,092 स्वीकृत पद हैं।

17092 में से 5606 पद अभी भी हैं खाली

प्रोफेसर-1,301

एसोसिएट प्रोफेसर-2,185

सहायक प्रोफेसर-2,120

कुल खाली पद- 5,606 (लगभग 55 %)

आरक्षित वर्ग की सीटें हैं खाली

अनुसूचित जाति

प्रोफेसर-185

एसोसिएट प्रोफेसर-357

सहायक प्रोफेसर-331

अनुसूचित जनजाति

प्रोफेसर-96

एसोसिएट प्रोफेसर-204

सहायक प्रोफेसर-193

वहीं ओबीसी उम्मीदवारों के 783 पद खाली है जबकि पीडब्ल्यूडी के 264 पदों को अभी तक भरा नहीं गया है।

राजधानी में सबसे ज्यादा शिक्षकों के पद खाली, दूसरे नम्बर पर उत्तर प्रदेश

प्शिक्षकों के सभी वर्गों असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसरों के सबसे ज्यादा (1261 पद) अकेले देश की राजधानी दिल्ली के विश्वविद्यालयों में खाली पड़े हुए हैं। इसके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कॉलेजों में 4500 एडहॉक शिक्षक पिछले दस से अधिक वर्षो से पढ़ा रहे हैं, लेकिन आज तक स्थायी नहीं किया गया है।

खाली पड़े पदों की सूची में दूसरे नम्बर पर उत्तर प्रदेश के चार केंद्रीय विश्वविद्यालयों में खाली हैं।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी-343

इलाहाबाद विश्वविद्यालय-570

बीएचयू-396

बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर यूनिवर्सिटी लखनऊ-37

अन्य राज्यों की ये हैं स्थिति

उत्तराखंड की हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय में 202

जम्मू व कश्मीर के दो विश्वविद्यालयों में 139

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में-171

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय-114

पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय-53

गुरु घासीदास विश्वविद्यालय-216

डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय-128

पांडिचेरी विश्वविद्यालय-143

आसाम यूनिवर्सिटी-68

मणिपुर यूनिवर्सिटी-115

राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय-65

विश्व भारती विश्वविद्यालय-160

मंत्रालय द्वारा पदों को भरने पर चिंता जताई

प्रो. सुमन ने कहा कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय जिस हड़बड़ी से केंद्रीय विश्वविद्यालयों के रिक्त पदों को भरने की हरी झंडी दिखा रहा है उससे जाहिर है कि आने वाले 30 सालों में आरक्षित वर्गों के रिक्त पद कभी आएंगे ही नहीं?

उनका कहना है कि संविधान प्रदत्त आरक्षण के नियम अभी तक केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ठीक से लागू ही नहीं हुए हैं। प्रति वर्ष सैंकड़ों की संख्या में आरक्षित श्रेणी के योग्य उम्मीदवार शिक्षण के क्षेत्र में अपनी सेवाएं देने के लिए आवेदन करना चाहते हैं और सामान्य वर्गों की रिक्तियां आने के कारण वे शिक्षा के क्षेत्र में नौकरी करने से वंचित रह जा रहे हैं। यह भारतीय संविधान की सामाजिक न्याय, गैर बराबरी को खत्म करने का नियम तथा प्रशासन और शिक्षा में समान भागीदारी के खिलाफ है। इस तरह से एमएचआरडी जल्दबाजी में आरक्षित वर्गो के पदों को सामान्य वर्गों से भरने की कोशिश कर रहा है। इसमें सरकार की आरक्षण विरोधी मंशा साफ दिखाई देती है।

प्रो. यादव का कहना है कि यदि सरकार इस तरह के आदेशों को नहीं रोकेगी तो आरक्षित वर्गों के शिक्षकों का आंदोलन सरकार के खिलाफ और तेज होगा। आगामी लोकसभा के चुनाव में सरकार को आरक्षित वर्ग की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा, संभव है कि सरकार को समय रहते अगर नहीं चेती तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

जल्द बुलाई जाएगी बैठक

एमएचआरडी द्वारा जल्दबाजी में लिए जा रहे शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया संबंधी निर्णय को लेकर शिक्षक संघ जल्द ही आपातकालीन बैठक बुलायेगा।

बैठक में तय किया जायेगा कि सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरना है या सरकार के विरुद्ध संसदीय समिति, एससी एसटी कमीशन में याचिका दायर करें।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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