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याद आता है कैम्पस

Credit: google

विकास पोरवाल

राहुल भागते दौड़ते किसी तरह लास्ट मेट्रो में घुसा और फिर बिना गिने कई लम्बी लम्बी सांसें फेफड़ों में खींच लीं, जैसे कि मेट्रो के साथ-साथ हवा का हर कतरा भी आखिरी हो ।

क्या साला, कॉलेज में रनिंग चैम्पियन था मैं, कौन सी रेस थी जो मैंने न जीती हो, भागने का इतना शौकीन कि क्लास से भाग-भाग कर मैराथन में पार्टिसिपेट करने चला जाता था और अब साली ये मेट्रो पकड़ने में मेरी सांस उखड़ जाती है । दो टके की नौकरी ने क्या बना दिया है यार !

बाहर के नज़ारों को देख कर भी अनदेखा करता राहुल मन ही मन खुद से इतना सब बोल गया । इतने में 2-3 स्टेशन निकल गए और अब मयूर विहार आने वाला था । साइड गेट के पास पीठ टिकाते हुए और एक मुफीद किनारा पा लेने के बाद उसने फोन निकाला और इयरपीस सेट कर लिए । अब दिन भर की नोटिफिकेशन चेक करने की बारी थी ।

फेसबुक पर किसी ने डीयू कैम्पस की पुरानी पिक शेयर की थी, राहुल के बैच के उसके दोस्त थे-अर्पित, आकाश और राठी । राठी का नाम कार्तिक राठी था, लेकिन सब उसे राठी ही कहते थे, पिक भी उसी ने शेयर की थी और उसमें लिखा था –

तब झूम कर आती थी बरसात भी

अब लगता है कि किसी की गुलाम है

तस्वीर देख कर राहुल यूँ ही मुस्करा उठा । साला कितना भीगे थे चारों उस दिन, देर तक झूमते ही रहे थे । वो अगस्त था शायद और बारिश भी आखिरी थी । पोलिटिकल साइंस में बीए का तीसरा साल शुरू हो गया और इतने साल साथ रहने की वजह से हमारी दोस्ती का रंग भी गढ़ा हो चुका था । मैं आकाश के साथ कैम्पस पहुचा ही था कि तेज़ हवा चलने लगी और इसमें उड़ते हुए राठी और अर्पित भी पहुँचे । आते ही अर्पित ने बकबकाना शुरू किया ,

मौसम है, माहौल है और समां है क्या खूब

जी करे किताबें छोड़कर, जाऊं इसमें डूब।

बेसिकली अर्पित हमें क्लास न जाने के लिए कन्विंस कर रहा था और हमने उसकी बात मान भी ली, लेकिन उसकी आदत थी कि वो कभी भी सीधे कुछ नहीं कहता था, हर बात शेर, कविता में । वो समझता था कि सब उसे चाटू समझ रहे हैं, लेकिन फिर भी बकैती से बाज़ नहीं आता था । तीन साल में कभी भी साले को सीरियस नहीं देखा। जरा सी बात की भूमिका इतनी तगड़ी बनाता था कि राठी उसे ही भूमिका कहने लगा था। तेज़ हवा-आंधी के बाद जोर की बारिश आयी और हम उसमें खूब भीगे । कैम्पस के गार्डेन में उछल-उछल कर नाचते हम चारों खूब मस्ती कर रहे थे । टिप-टिप बरसा पानी से बरसात के मौसम तक के सारे गाने में एक-एक कर सुर मिलाते रहे । हमें देख कर कुछ और लड़के भी आ गए थे और फिर हम चारों की ये तस्वीर जेहन में जगह बना गयी।

इतना सब कुछ याद करते हुए राहुल अब अपने सफर में खोया हुआ था । उसकी उखड़ी सांस भी अब आहिस्ता हो चली थी, लेकिन बीते दिनों की यादों ने दिमाग में दौड़ना शुरू कर दिया था।

इसी के साथ उसकी अंगुलियां फेसबुक के सर्च बॉक्स में बहुत तेज़ी से चलीं

BHUMIKA saxena उसकी क्लासमेट, शुरुआत में बेहद शांत और चुपचाप सी रहने वाली लड़की । एक्चुअली राठी इसलिए भी अर्पित को भूमिका कहता था क्योंकि वो उसे इस नाम से चिढ़ाता था । अर्पित राठी औऱ भूमिका ने एक ही दिन कॉलेज फॉर्म सबमिट किया था। भूमिका आगे खड़ी थी, राठी उसके पीछे और अर्पित उसके उसके पीछे ।

अचानक भूमिका को पेन की जरूरत पड़ी तो उसने राठी से मांगा, वो बेचारा लड़कियों से कम बोल पाता था तो पहले तो हड़बड़ा गया, भूमिका ने कहा कि अरे देख क्या रहे हो पेन दो । अर्पित एक्टिव हो चुका था, आगे निकल कर बोला अरे आप मेरा पेन लीजिये, क्यों पेन ले रहीं हैं । भूमिका न चाहते हुए भी मुस्कुरा दी और राठी पीछे मुड़ कर आंखों ही आंखों में उसे हरामी साले कहकर आगे बढ़ गया ।

‌कॉलेज वाली दोस्ती का उसूल है, जब तक अपने जैसा बंदा न खोज ले तब तक होती नहीं है, तो अर्पित और राठी की दोस्ती यहीं हुई थी। फॉर्म सबमिट कर जब सब निकलने लगे तो राठी ने कहा कि अबे अपना पेन तो ले ले, अर्पित ने कहा चल यार पेन ही तो है । अर्पित ने ऐसा बोला जरूर था, लेकिन साले का प्लान तगड़ा था । अगले हफ्ते डाक्यूमेंट वेरिफिकेशन के लिये दोबारा आना था, और तब वो पेन मांगने के बहाने भूमिका से बात करने का मौका देखना चाहता था । ऐसा हुआ भी । पांच दिन बाद जब सभी कालेज पहुँचे तो भूमिका गेट पर ही दिख गयी, ऑफिस खुलने में अभी टाइम था । अर्पित मौका देखते ही उससे मुखातिब हुआ, हे, हाई।

‌भूमिका: हम्म, हेलो । और एक अनचाही मुस्कान

‌मैं अर्पित । आपने पेन लिया था मेरा

‌भूमिका: हां, याद है । बट सॉरी, वो मैं भूल गयी।

‌अर्पित : आरर कोई नहीं, मैं दूसरा पेन लाया हूं । राठी एक हरामी को शरीफ बनते देख रहा था । किसी का वेट कर रही हैं आप, अर्पित ने पूछा

‌भूमिका: नहीं, वो ऑफिस खुलने में टाइम है तो वही देख रही हूं ।

अब अर्पित ने तगड़ा दांव मारा, ओह तो हम लोग पहले ही आ गए हैं, मैंने तो चाय भी नहीं पी सुबह से। (राठी का मुंह खुला रह गया कितना सफेद झूठ, रास्ते मे चार पराठे चाप गया और इतना भोला बन रहा है).  चलो न , चाय पीते हैं, चल राठी आ । फिर तीनों छात्रा मार्ग की ओर चल पड़े । यहां नुक्कड़ पर सुदामा जी की चाय मिली । चाय नहीं अमरौती । सबकी पसन्द । राठी भूमिका और अर्पित तीनों वहां पहुँचे । मैं और आकाश वहां पहले से मौजूद थे। टपरी के आसपास 10 से 12 ही लोग थे । इनमें भी पांच तो हम ही थे, आकाश मेरे ही शहर सहारनपुर से था तो हम दोस्त तो नहीं, लेकिन साथ देने वाले बन चुके थे । इस पूरे टाइम अर्पित की बकबक चालू थी । बस वही बोल रहा था बाकी सब चुप थे । तो क्या नाम बताया आपने? अर्पित भूमिका से बोला, लेकिन हम सबने भी सुन लिया था ।

भूमिका: नाम, मैंने कब नाम बताया, जबरदस्ती, अच्छा तरीका है नाम जानने का ।

इतना सुनना था कि मैं हंस पड़ा, आकाश भी अपनी हंसी नहीं रोक पाया औऱ राठी जो अब तक सिर्फ सुन ही रहा था जोर से खिलखिला पड़ा । चुप था तो केवल अर्पित, बेचारे के पास अब कुछ बोलने को नहीं बचा था ।

खैर भूमिका ने कहा, बाई द वे, मैं भूमिका, भूमिका सक्सेना ।

अर्पित ने कहा तो सीधे ही बता देती इतनी भूमिका बनाने की क्या जरूरत थी, फिर वो हमारी ओर घूम कर बोला फालतू में फ्री के मज़े ले लिए । मैं कहा, फ्री में क्यों चलो चाय मैं स्पांसर करता हूँ । फिर हमने सुदामा जी से चाय ली और पीने बैठ गए । दोस्ती का वो पहला गर्मागर्म प्याला था । बातों में पता चला कि हम पांचो ही पोलिटिकल साइंस के स्टूडेंट हैं । इसके बाद तो ये आंच कभी मंद पड़ी ही नहीं । सुदामा जी की चाय खौलती रही, पण्डित जी के समोसे छनते रहे और टॉम अंकल के पराठों पर मस्ती का मक्खन लगता रहा । अर्पित औऱ भूमिका का पहले का किस्सा राठी ने मज़े ले लेकर सुनाया और हम उसे भूमिका ही कहने लगे ।

सच में क्या दिन थे वो, तीन साल सिर्फ मस्ती । डीयू का हर प्रोग्राम हमारे बिना अधूरा, हम एक दूसरे के बिना अधूरे । कैंपस में हर ओर मशहूर हमारी दोस्ती । ग्रेजुएशन के बाद हमने एक साल हिंदी पत्रकारिता भी पढ़ी । साउथ कैम्पस में भी हमारी दोस्ती की हवा है । फिर ज़िन्दगी नौकरी के मोड़ पर ले आयी औऱ सब अलग-अलग हो गए । पुरानी यादों में खोया राहुल अगले स्टेशन की अनाउंसमेंट से निकल आया, मेट्रो अब उसकी मंज़िल आदर्श नगर की ओर बढ़ रही थी । उसने राठी को फोन लगाया और एक बार फिर कैम्पस की यादें ताज़ा करने में जुट गया ।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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