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पथ का हर एक कंकर हटा कर जायेंगे 

तस्वीरः गूगल साभार

समय के पृष्ठ पर हम शिलालेख बने या ना बने

मानस पटल पर ज़रूर निशाँ छोड़  कर  जायेंगे

 

ख़्वाब देखें ज़रूर मगर, बदले में

हक़ीक़त नहीं सदा ही ज़िल्लत मिलीं

महलों की बात तो बहुत दूर की थी, असल में

रोटी, कपड़ा और मकान की भी क़िल्लत मिलीं

 

इतिहास की आकाश गंगा के हम सूर्य बने या ना बने

तुम्हारे हिस्से का अंधकार ज़रूर  मिटा के जायेंगे

 

पाँव में हमारे चुभें है सदियों तक जो

काँटे वो तुम्हारे पाँव में ना चुभने देंगे

पाँव हमारे जकड़े रहे सदियों तक जो

बेड़ियाँ वो तुम्हारे पाँव में ना पड़ने देंगे

 

तुम्हारी राहों की  मख़मली क़ालीन बने या ना बने

पथ का हर एक कंकर हटा कर जायेंगे

 

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

डॉ. संजय यादव
संजय पेशे से चिकित्सक हैं औऱ कविता लिखने का शौक रखते हैं।

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