देश की राजधानी में 96 बेघरों की मौत पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। देश की राजनीति कब किस हद तक जाए ये कोई नहीं बता सकता। कब कौन सी राजनीतिक पार्टी मौतों पर भी सियासी खेल खेलना प्रारम्भ कर दे शायद इसका अन्दाज़ देश के जनता को नहीं है। जब एक गाय मर जाती है या मार दी जाती है तो सिय़ासी लोग पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण भारत को आपस में भिड़ाने लग जाते हैं। अगर वहीं 96 लोगों की मौत होती है ते ये बोल के हाथ साफ़ निकल लेते है की “इन मौतों का हम से कोई लेना देना नहीं”।
हालांकि ये बात नई नहीं है कि भारत के सरज़मीं पर ऐसा पहला वाकया हुआ हो। इससे पहले तमाम पार्टियों ने यही मनोवृत्ति दिखाई है। राजधानी दिल्ली में पिछले दो हफ्ते में तक़रीबन 96 बेघरों की ठंड से मौत हो चुकी है। दिल्ली सरकार की संस्था दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब) ने इन मौतों को सीएचडी (सेंटर फ़ॉर होलोस्टिक डेवलपमेंट) एनजीओ की रिपोर्ट को ये कहते हुए बेबुनियाद बोल दिया की इन मौतों का ठंड से कोई लेना-देना नहीं है। आगे यही संस्था बोलती है की ऐसी मौतें और समय भी होते रहते हैं।
देश की राजधानी में अगर इतनी तादाद में मौतें हो रही हैं तो बाक़ी राज्यों का अन्दाज़ा आप ख़ुद लगा सकते हैं। बेघरों को आश्रय गृह के नाम पर कुछ तम्बू का कपड़ा लगा कर क्या उनके ज़िंदगी के साथ सरकारें खेल नहीं रही? आज भारत में क़रीब करोड़ों ऐसे रैन बसेरे लोग है जो बेहतर आश्रय गृह के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। इन बेघर लोगों के नाम पर सरकारें करोड़ों रुपये का आवंटन या जारी तो कर लेती हैं लेकिन, ये पैसा कहा जाता है और किनके बीच रह जाता है। ये किसी से बात छिपी नहीं है।
सेंटर फ़ॉर होलोस्टिक डेवलपमेंट की रिपोर्ट में 96 लोगों की मौत का कारण जो बताया गया है वह ठंड है। लेकिन, दिल्ली सरकार की संस्था दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब) ने इन मौतों से अपना पल्ला बाहर खींच रहा है। अब सवाल ये है कि 96 बेघर लोगों के मौत का ज़िम्मेवार कौन है? क्या राज्य सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती की इन लोगों के लिए मूलभूत सुविधाएँ जुटाई जाएं? सिर्फ़ राजनीतिक फ़ायदे के लिए इनकार कर देना कहां की समझदारी है?
दिल्ली की मौजूदा सरकार आप और विपक्षी दल भाजपा और कोंग्रेस सिर्फ़ ये साबित करने में लगे हैं कि इन 96 लोगों की मौत का ज़िम्मेदार हम नहीं कोई और है। ये मौतें ठंड से नहीं किसी और वजह से हुई हैं। किसी भी राजनीतिक पार्टी को ऐसे गम्भीर मुद्दों पर आपसी लड़ाई से बेहतर होगा बेघर और रैनबसेरे लोगों के लिए सभी बुनियादी सुविधायों को उपलब्ध कराए। अपने-अपने राजनीतिक फ़ायदे से निकल के उन क़ीमती जानों को हिफ़ाज़त करे जो किसी ना किसी रूप से सरकारों पर निर्भर रहती हैं।
-साहित्य मौर्य, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली
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