दिल्ली विश्वविद्यालय में विभागवार आरक्षण के खिलाफ नॉर्थ कैम्पस में आक्रोश मार्च निकाला गया। वहीं बीएचयू में भाजपा सरकार का पुतला दहन करके यह ऐलान किया गया कि 200 प्वाइंट रोस्टर का अध्यादेश पारित करो, वर्ना कुर्सी खाली करो…
गुरुवार को देशभर के विश्वविद्यालयों में अलग-अलग जगहों पर 13 प्वाइंट रोस्टर यानी विभागवार आरक्षण के खिलाफ आक्रोश रैली और सरकार के खिलाफ पुतला दहन किया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय में मनुवादी रोस्टर के खिलाफ़ ऐतिहासिक “आक्रोश मार्च” निकाला गया। इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के साथ साथ जामिया, जेएनयू, आंबेडकर यूनिवर्सिटी के सैकड़ों शिक्षक, शोधार्थी, छात्र व सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ तमाम संगठनों के साथी शामिल हुए। इसी प्रकार जेएनयू, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी सरकार के खिलाफ पुतला फूंका गया। इस तरह से देशभर के शिक्षक व छात्र इस आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। डीयू के शिक्षकों ने शुक्रवार को इस आंदोलन को औऱ आगे बढ़ाते हुए कैंडल मार्च भी निकाले जाने का ऐलान किया है।
जेएनयू, लखनऊ विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी आक्रोश मार्च
विरोध प्रदर्शन का स्वरूप बढ़ता जा रहा है। देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों के साथ-साथ राज्यस्तरीय विश्वविद्यालयों के शिक्षक व छात्र विभागवार आरक्षण के खिलाफ सड़कों पर उतर गए हैं। जानकारी के मुताबिक लोगों में काफी गुस्सा है वे इसको लेकर जगह-जगह आक्रोश मार्च भी निकाल रहे हैं।
बीएचयू में पुतला दहन
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय पर आयोजित आक्रोश सभा को बीएचयू के बहुजन साथियों ने पुरजोर समर्थन दिया। प्रतिनिधित्व विरोधी भाजपा सरकार का पुतला दहन की प्रक्रिया में पुलिस और छात्रों के मध्य लंबा संघर्ष चलता रहा। बाद में आक्रोशित छात्रों के द्वारा मोदी सरकार के प्रतिनिधित्व विरोधी आदेशों को दहन किया गया। OBC,SC,ST,MT संघर्ष समिति BHU के अध्यक्ष रवींद्र प्रकाश भारतीय ने कहा कि सत्ता पक्ष की मानसिकता भाजपा के उन मनुवादी पुतलों को बचाने की थी जिसका बहुजन छात्र पहले ही अपने अन्तर्मन में दहन कर चुके हैं। भाजपा सरकार ने वादा किया था कि वे 200 पॉइंट रोस्टर पर अध्यादेश लाएंगे परन्तु उन्होंने धोखा किया। सभा को कन्हैया लाल यादव, राहुल यादव,नरेश राम,कृष्ण कुमार यादव, बालगोविंद, रीना कुमारी, शुभम आहाके, नीतीश,राहुल यादव आदि छात्रों ने संबोधित किया। सभा को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की शिक्षिका डॉ. शोभना नार्लीकर ने भी समर्थन देते हुए मनुवादी सरकार के खिलाफ छात्रों से कड़े संघर्ष का आह्वान किया।
इस आंदोलन के आयोजन की प्रक्रिया में सूर्यमणि, अजय कुमार, लालचंद, धीरज भारती, विवेकानंद, मनोज कुमार, उमेश यादव, अनुपम, विश्वनाथ, राहुल भारती, भुवाल यादव,सौरभ यादव, हरीश कुशवाहा, हिमाद्रि, मदनलाल, मनीष भारती, आदित्य वर्मा, अर्चना, हरेंद्र कुमार, मिथिलेश कुमार जैसे सैकडों जिम्मेदार साथियों ने अपना सहयोग दिया। आंदोलन की प्रकिया जारी रहेगी।
क्या है पूरा मामला
उच्च शिक्षा का चरित्र मूलतः जातिवादी है। इसे कई स्तरों पर समावेशी व सामाजिक न्याय परक होना था, जो कभी हुई ही नहीं। देश के वंचितों-शोषितों की बहुसंख्यक आबादी अव्वल तो उच्च शिक्षा तक कभी पहुँच ही नहीं पाई। अव्वल तो ये कि इंदिरा साहनी केस, सब्बरवाल केस, वी. नागराज केस जैसे न्यायिक संघर्षों की एक लम्बी लड़ाई के बाद उच्च शिक्षा जैसे सत्ता-प्रतिष्ठानों में आरक्षण लागू होने में ही पाँच दशक बीत गए। आज़ादी के पचास साल तक इन शिक्षण संस्थानों पर जन्मजात मेरिटधारी सवर्ण जातियों का ही कब्जा रहा। आरक्षण की ज़रूरत ऐसे ही अमानवीय और अन्यायप्रिय लोगों के कारण पड़ी। तब 1997 में SC-ST आरक्षण और 2007 में जाकर OBC आरक्षण उच्च शिक्षा में लागू किया गया। तब से दो स्तर पर साज़िशें हुईं- पहला ये कि उच्च शिक्षा में निजीकरण किया जाने लगा और दूसरा ये कि स्थायी नियुक्तियों की प्रक्रिया में कमोबेश विराम सा लगा दिया गया।
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सामाजिक प्रतिनिधित्व में 1931 की जाति-जनगणना के आंकड़ों की बुनियाद पर SC 15%, ST 7.5%, OBC 52% आबादी का विभाजन कुछ इस प्रकार है, जो आज कम से कम 85% आबादी को कवर करता है। अब इनके उच्च शिक्षा में हिस्सेदारी का आज 2018 का आंकड़ा कमोबेश कुछ इस प्रकार हैं कि
15% आबादी वाले SC 7%
7.5% आबादी वाले ST 2.12%
54% आबादी वाले OBC 5%
15% आबादी वाले सवर्ण 85%
आरक्षण लागू होने के बाद पदों के क्रम-विभाजन को ही ‘रोस्टर’ कहा गया. अब पहली बार रोस्टर ऐसा बना, जिससे कुछ सीटें 85% आबादी वाले आरक्षित वर्ग को मिलीं। इसका वितरण को समझें। माना कि कुल पदों की संख्या 100 है। अब रोस्टर का विभाजन इस प्रकार होगा-
ST का आरक्षण 7.5% है। 100/7.5=13.33 यानी हर 14वाँ पद ST को आरक्षित होगा।
SC का आरक्षण 15% है। 100/15=6.66 यानी हर 7वाँ पद SC को आरक्षित होगा।
OBC का आरक्षण 27% है। 100/27=3.70 यानी हर चौथा पद OBC को आरक्षित होगा।
ताज़ा मामला ‘असंवैधानिक’ विभागवार रोस्टर प्रणाली के लागू किये जाने का है। प्रावधान यह रहा कि विश्वविद्यालय/कॉलेज को एक इकाई मानकर पदों के सृजित होने की तिथि के बढ़ते क्रम से रोस्टर को फिक्स्स किया जाएगा। लेकिन बीएचयू के एक शोधछात्र की पहल पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल बेंच ने एक फैसला सुनाया कि विश्वविद्यालय/कॉलेज वार रोस्टर प्रणाली लागू होगी, जिसे 13 प्वाइंट रोस्टर भी कहा जाता है।
यह है उच्च शिक्षा का मूल चरित्र। इसकी एक एक परत और उघाड़ते चलेंगे तो और भी बदबू मिलेगी। अब मनुवादी सरकार ने न्यायालयों के सहारे विभागवार रोस्टर लागू करके बची खुची सम्भावनाओं को हमेशा के लिए दफ़न कर दिया है।
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