लोकसभा चुनाव 2019 की तारीख ऐलान होने के साथ ही राजनीतिक महाकुंभ में उथल-पुथल का दौर जारी है। कब किसके पाले में गेंद जा के मिल जाए इसका अंदाज़ा लगाना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन, क्या आगामी आम चुनाव अपने असल मुद्दों पर है? क्या सभी राजनीतिक पार्टियां आम जनता के मूल समस्याओं पर चुनाव मैदान में दिख रही रही हैं? यही आज सबसे बड़ा सवाल आसमां में तैर रहा है।
हालिया सालों में लोकसभा चुनाव जिस तेजी के साथ अपना असला मुद्दा खो रहा है उसका परिकल्पना करना भारतीय जनता के लिए ज़रूरी है। लोकसभा और विधानसभा में जो अलग-अलग मुद्दे हुआ करते हैं वो आज कही विलुप्त होता दिख रहा है। अमूमन लोकसभा चुनाव का विषय देश से संबंधित होता है तो वही विधानसभा का मुद्दा राज्य से संबंधित होता है, लेकिन कुछ वर्षों में इसका नज़ारा बदला हुआ दिखा है।
लोकसभा चुनाव में जहां राष्ट्रीय स्तर पर देश की सुरक्षा, देश-विदेशों के आपसी संबंध, देश में घटती-बढ़ती बेरोजगारी की समस्या, वैश्विक स्तर पर भारत के समाजिक, आर्थिक और व्यापारिक सम्बंध जैसे मुद्दों पर कायम रहती है तो वही विधानसभा में शहरी स्तरों पर बेहतर शिक्षा, रोजगार के नए-नए आयाम, ग्रामीण स्तरों पर बेहतर आर्थिक समस्याओं का निदान जैसे मुद्दे होते हैं।
लेकिन, भारतीय राजनीतिक पटल का विडंबना है कि 2019 आम चुनाव का राजनीतिक आगाज ‘चौकीदार चोर है’, और ‘फिर से चौकीदार’ से प्रारम्भ होता है, जिसमें असल मुद्दे से भटका दिया जाता है। बीजेपी हो या कांग्रेस पार्टी आज इसी विषय में उलझे हुए हैं कि कल कौन सी #टैग वाली पोस्ट को वॉयरल करना है। इस कड़ी से देश की लगभग सभी क्षेत्रीय पार्टियां भी अछूती नहीं है।
राजनीतिक महाकुंभ में कहानी यहीं खत्म नहीं होती। बीते कुछ महीनों में चुनाव का परिपेक्ष्य और भी तेजी से बदला है। पाकिस्तान से भिड़ंत का मामला हो, नीरव और माल्या का मामला हो या राफेल का मामला हो। इन सभी मुद्दों ने लोकसभा चुनाव का जमीनी स्तर और भी बदल दिया है।
सत्ता को अपने हाथों में काबिज़ करने के लिए आज तरह-तरह के पैतरे राजनीतिक मैदान में अपनाए जा रहे हैं। मौजूदा सरकार का 15 लाख हर भारतीय के खाते में जमा कराने वाला वादा हो या विपक्षी पार्टी का सबसे गरीब परिवार को सालाना 72000 हज़ार रुपया देना हो। सिर्फ राजनितिक जुमला साबित होता दिख रहा है।
बहरहाल, जिस रफ़्तार से हर चुनावी मैदान में मुद्दों से भटकाने की कोशिश होती है, इसका आगामी परिणाम क्या होगा यह सबसे कठिन परिस्थति हो सकता है। चुनाव तथ्यों पर वाद-विवाद ना हो के किसी #टैग विषयों पर शब्दों पर वाक्य युद्ध हो तो भारतीय राजनीति को राम भरोसे पर छोड़ना पड़ेगा।
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