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‘आर्टिकल – 15’ आजकल लोगों के बीच क्यों चर्चित है?

बॉलीवुड में आये दिन अनेक विषयों पर फ़िल्में आती रहती हैं। हालांकि इस एक फिल्म पर जबरदस्त चर्चा हो रही है। यह फिल्म आयुष्मान खुराना की आने वाली फ़िल्म ‘आर्टिकल -15’ हैं जिसका विषय अन्य फिल्मों से अलग है। ‘आर्टिकल – 15’ भारतीय संविधान से जुड़ा है, जिसमें भारत में रहने वाले सभी नागरिकों को एक सामान अधिकार देने की बात की गयी हैं।

आर्टिकल 15 यानी समानता का अधिकार

धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर राज्य अपने किसी भी नागरिक से कोई भेदभाव नहीं करेगा।”

इसमें कहा गया है कि जाति के आधार पर किसी के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जायेगा सब समान हैं सविंधान और कानून की नज़र में। लेकिन, आज़ादी के इतने समय बाद भी हम देखते हैं की हमारे समाज की वास्तविकता कुछ और ही है। इसी पर यह फिल्म आधारित है।

भारतीय समाज की इसी जातिगत समस्या को इस फ़िल्म में दिखाया गया है, अनुभव सिन्हा के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म का ट्रेलर रिलीज़ हो चुका है, जिसको देखने पर पता चलता हैं कि इसमें भारतीय समाज में काफ़ी लम्बे समय से चली आ रही व गहरी जड़ें जमा चुकी जाति व्यवस्था का मुद्दा उठाया गया है।

फ़िल्म का ट्रेलर देखकर ऐसा लगता हैं जैसे बदायूं में हुए गैंगरेप पर यह फ़िल्म आधारित हो।

देखिए ट्रेलर

लेकिन, मनोज पाहवा ने एक इंटरव्यू में बताया कि यह फ़िल्म पूरी तरह से बदायूं गैंगरेप पर आधारित नहीं है।

हम कह सकते हैं की इस फ़िल्म में उस घटना के कुछ अंश शामिल किये गए हैं। फ़िल्म के ट्रेलर को देखने से पता चलता हैं कि कैसे मजदूरी करने वाली लड़कियों को तीन रुपये दिहाड़ी बढ़ाने की मांग करने पर गैंगरेप करके पेड़ से लटका दिया जाता हैं क्यूंकि वें दलित थीं।

फ़िल्म में आयुष्मान खुराना ने एक सख्त पुलिस अफसर की भूमिका निभाई है जो खुद जाति से सरयूपारीक ब्राह्मण हैं।

इसके अलावा मनोज पाहवा, सयानी गुप्ता, कुमुद मिश्रा, मोहम्मद जीशान अय्यूब भी अपने अभिनय से आकर्षित करते हैं। फ़िल्म में समाज की एक बड़ी समस्या को उठाया गया हैं, अनुभव सिन्हा ने फ़िल्म ‘मुल्क’ का भी निर्देशन किया था। उनकी फिल्मों में समाज की समस्याओं को देखा जा सकता हैं, इस फ़िल्म के द्वारा भी वे दर्शकों को समाज की इस बड़ी समस्या से परिचित करना चाहते हैं।

हालांकि फ़िल्म 28 जून को रिलीज़ होंगी आप सभी अपने नजदीकी सिनेमाघरों में जाकर इस फ़िल्म को देख सकते हैं।

आर्टिकल 15 फिल्म कितना महत्व रखेगी?

फिल्म के ट्रेलर में तो एक तरह से भेदभाव खत्म करने की बात की जा रही है। फिल्म रिलीज नहीं हुई लेकिन लोगों ने प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी है।

हमने भी डीयू के असिस्टैंट प्रोफेसर लक्ष्मण यादव से इस फिल्म को लेकर बात की। उनका कहना है कि “भारतीय सिनेमा के लिए ‘जाति’ उपेक्षित विषय नहीं रहा। हर दौर में जाति के सवालों पर फ़िल्में बनीं और सराही गईं। लेकिन, इनका रुझान जातिगत शोषण को दिखाना और अंत में एक प्रतीकात्मक प्रतिरोध दिखाना ही था। इस पर ही फिल्म ख़त्म हो जाया करती थी। हालांकि यह सांकेतिक सिनेमाई प्रतिरोध भी मायने रखता था। पिछले कुछ वर्षों में जातिगत दमन, शोषण घटने की बजाय बढ़ा और क्रूर हुआ। उसे मुख्यधारा सिनेमा में कोई ख़ास जगह नहीं मिली।”

लक्ष्मण कहते हैं कि “अनुभव सिन्हा की आने वाली फ़िल्म ‘आर्टिकल 15’ का ट्रेलर एक संभावना के बतौर देखा जा रहा है। इसमें गुजरात के ऊना में दलितों के मारे जाने से लेकर यूपी के बदायूँ में दलित लड़कियों की हत्या जैसे मुद्दों पर आधारित है, जिसके बहाने जाति को लेकर भारतीय मानसिकता के साथ पुलिसिया तंत्र की असलियत बताने की कोशिश ट्रेलर में है। इस आधार पर आप इस फ़िल्म को एक संभावना के बतौर देखा जा सकता है। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि इसमें पुलिसिया हीरो ही दलितों को बचाने वाले नायक बनकर आएगा। मौजूदा पुलिसिया तंत्र में एक ऐसा रोबिनहुड हीरो आकार न्याय दिला देगा, जिसे जाति क्या होती है, यही नहीं पता। यह फ़िल्म मौजूदा सत्ता तंत्र व पुलिसिया सिस्टम को इसी बहाने न्याय के लिए और भरोसेमंद बनाने की एक कोशिश करती है।”

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

रजत तिवारी
दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी पत्रकारिता के छात्र हैं

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