कविता में कल्पना और यथार्थ से लोक परिवेश का चित्रण
झारखंड के कवि श्रीधर द्विवेदी के काव्य संग्रह ‘कनेर के फूल’ में संकलित कविताएँ समाज के वर्तमान परिवेश में आम आदमी के मन की आहट के साथ प्रकृति की विविध भाव भंगिमाओं से जुड़ी कवि की अनुभूतियों को अपनी संवेदना में प्रस्तुत करती हैं। इनमें यथार्थ और कल्पना का सुंदर चित्र समाया है और पलामू जिले के गिरि प्रांतर के ग्राम्य परिवेश का नैसर्गिक सौंदर्य इन कविताओं में खास तौर पर प्रकट हुआ है। कविता में जीवन की सहज अनुभूतियों का समावेश इसके पाठ को यथार्थ के सच्चे रंगों से सँवारता है और कवि की कल्पना एक सुंदर संसार के द्वार पर झाँकती सबको पास बुलाती है।
कवि श्रीधर द्विवेदी की काव्य संवेदना को इसी अनुरूप देखा जा सकता है। इन कविताओं में कवि ने अपने आसपास के लोक परिवेश के प्रति गहरे आत्मिक सरोकारों को प्रकट किया है और इसे कवि की कविताओं की प्रमुख विशिष्टता भी मानना होगा।
”सिर रखे बांस की डाली, पग तेज बढ़ाती जाती। महुराई को गिरि बाला, महुआ चुनने को जाती। टपटप झरती थी फूली, वह फूली नहीं समाती। रसगंध मधुक फूलों की, मधुकर का चित्त लुभाती। भौरों का गुनगुन गाना, मधुपान मत्त हो जाना। फिर दंशन दंश दे देकर, मधु संचित कर-कर उड़ जाना। मधुराई की यह क्रीड़ा, जग में चलती रहती है। भौरों सा मानव जीवन, महुराई सी जगती है।” (महुराई)
वर्तमान कविता में जनसामान्य के सुख – दुख की अभिव्यक्ति को इसकी प्रमुख प्रवृत्ति कहा जाता है। सर्जना के इस धरातल पर काव्य चेतना की दृष्टि से इन कविताओं को पठनीय कहा जा सकता है और संवेदना के स्तर पर इनमें संसार के साथ निरंतर एक गहन आत्मीय प्रेम प्रवाहित होता दिखायी देता है।
”सूरज आज सुबह आया, कुछ कुछ सकुचाया। पर आँखें खोल थोड़ा मुसकाया, कुहरे की चादर झीनी पड़ी। तब उसने पलक उठाया, चलो थोड़ी उष्मा तो गिरा दिया।”
प्रस्तुत कविताओं में जीवन के दार्शनिक प्रश्नों पर भी कवि गहन आत्मविमर्श में तल्लीन दिखायी देता है और जीवन की सार्थकता – निरर्थकता से उभरे विचार उसके मन के किसी गहरे ठहराव के करीब से गुजरते प्रतीत होते हैं। इसके बावजूद संसार के प्रति उसके मन में असीम प्रेम समाया है। उसका मन धरती पर बहती नदियों को देखकर पुलकित है और वर्षा – गीत सुनता उसका मन लता विटप से लिपटे जंगल में जाकर झूम उठता है।
झारखंड के पलामू अँचल के ग्राम्य परिवेश और यहाँ के सीधे सरल सच्चे लोगों के जीवन का चित्र इन कविताओं में काफी प्रामाणिकता से उजागर हुआ है और इस अर्थ में श्रीधर द्विवेदी को लोकधर्मी काव्य परंपरा का कवि कहा जा सकता है।
”जाड़े की रात यह, काटे नहीं कटती। कंक्रीट के घर में, बोरसी न जलती। खेत पड़े हैं परती, कहाँ धान रोपाई। काम कोई नहीं है, बंद है धनकटाई। गन्ना का प्लाट, सूना ही है भाई। जिसको पीसकर, भरा लेवें रजाई”(जाड़े की रात)
इस काव्य संकलन की कुछ कविताओं में वर्तमान सामाजित परिवेश की विसंगतियों और विद्रूपताओं पर भी कवि ने प्रहार किया है और वह मौजूदा व्यवस्था के भेड़िया – तंत्र के खिलाफ आक्रोश प्रकट करता है। कवि ने अपने देश और इसकी शस्य श्यामला भूमि के प्रति गहन अनुराग के भाव को भी अभिव्यक्त किया है और अपनी एक कविता शीर्षक ‘ बुद्ध ‘ में संसार और वैराग्य के द्वंद्व में मानव मन की आत्मिक कामनाओं को जानने समझने की चेष्टा की है . इस प्रकार यहाँ कवि की संवेदना और उसकी अनुभूतियों का एक विस्तृत संसार उजागर होता है।
धरती पर दस्तक देती ऋतुएँ और इनकी आवाजाही में वसंत का आगमन इसके साथ गाँव की गलियों के बाहर इसके सीमा प्रांतरों में धूप की तरह फैली महुए की मादक मिठास, गहरी अँधेरी रात में जुगनू की चमक, जाड़े की सुबह और कुहासे के भीतर से झाँकता सूरज इसके साथ कवि का गरमाता कवि का मन मिजाज इसके साथ सर्वत्र नववर्ष की खुशियों को लेकर विचरते लोग इन कविताओं की विषयवस्तु में जीवंतता से शामिल होते दिखायी देते हैं।
वर्तमान कविता में जनसामान्य के सुख-दुख की अभिव्यक्ति को इसकी प्रमुख प्रवृत्ति कहा जाता है। सर्जना के इस धरातल पर काव्य चेतना की दृष्टि से इन कविताओं को पठनीय कहा जा सकता है और संवेदना के स्तर पर इनमें संसार के साथ निरंतर एक गहन आत्मीय प्रेम प्रवाहित होता दिखायी देता है।
पुस्तक विवरण : कनेर के फूल (कविता संकलन), कवि : श्रीधर प्रसाद द्विवेदी, प्रकाशक : विकल्प प्रकाशन, सोनिया विहार, दिल्ली 110094, मोबाइल : 9211559886
संस्कृत के महाकवि कालिदास के काव्यग्रंथ ‘मेघदूतम्’ को विश्व साहित्य में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। यह एक सुंदर प्रेमकाव्य है और इसमें अपने स्वामी कुबेर से गृह निर्वासन के कोपदंड का शापग्रस्त यक्ष इस काल में अपने निवासस्थल रामगिरि पर्वत पर वर्षा ऋतु में बादलों के आगमन पर और आकाश में उनको उड़ता देखकर उन्हें अपनी प्रिया को संबोधित संदेश ले जाने का अनुरोध करता है। कालिदास ने अपनी कल्पनाशीलता और सजीवता से इस प्रेमकाव्य में श्रृंगार और विरह के भावों को अभिव्यक्त किया है। श्रीधर द्विवेदी ने ‘ यक्ष संदेश ‘ शीर्षक इस हिंदी काव्यग्रंथ में कालिदास के मेघदूतम् का सुंदर अनुवाद प्रस्तुत किया है ।
श्रीमद्भागवदगीता को संस्कृत ग्रंथों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। गीता को महाभारत के एक अध्याय शांति पर्व का अंश बताया जाता है और इसमें भारतीय जीवन दर्शन का प्रतिपादन हुआ है। इसमें कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में संसार के माया मोह से घिरे अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्मयोग का ज्ञान प्रदान किया है। इसके अलावा गीता में आत्मतत्व का भी विवेचन हुआ है और धर्म , नीति और ज्ञान का प्रतिपादन भी इस ग्रंथ में है। इस पुस्तक में श्रीधर द्विवेदी ने गीता का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया है ।
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