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जब मेहनतकश आएंगे

प्रतीकात्मक तस्वीर

जग में फैलाई है,

गंदगी चंद घरानों ने।

सवर्ण, मंत्री-संत्री,

राजा-महाराजा,

और हुक्मरानों ने।

 

की है मेहनत,

मेहतर, मजदूरों,

और किसानों ने।

की सफाई,

दुनिया बनाई,

फसल उगाई।

 

कलम नहीं,

झाड़ू थमाई।

मेहनत बेमौल,

लूट मचाई।

फ़सल दाम कमतर,

बोली लगाई।

रही मुफ़्लिसी, भुखमरी,

और कम आई कमाई।

 

टूटेगी जंजीरें भी,

गुलामी की।

संघर्ष की राह,

जब अपनाएंगे।

 

आएगी चेतना भी,

बुद्ध-प्रबुद्ध हो जाएंगे।

कलम-किताब की शरण,

जब मेहनतकश आएंगे।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

सुमित
अतिथि शिक्षक, भगिनी निवेदिता कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय (एनसीवेब), एसएफआई उपाध्यक्ष दिल्ली राज्य, राजनीतिक कार्यकर्त्ता भी हैं। संपर्क: sumitktr2@gmail.com

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